गृह-क्षेत्र-सुत। सुत का अर्थ है शिशु। जब आपको अपार्टमेंट मिलता है, जब आपको पत्नी मिलती है, जब आपको सबकुछ मिलता है .... तो अगली आशा शिशुओं की होती है, सुत। क्योंकि बच्चों के बिना कोई भी गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं होता है। पुत्र-हिनम् गृहम् शून्यम् (चाणक्य पंडित)। एक घरेलू जीवन बच्चों के बिना रेगिस्तान के समान है। बच्चे गृहस्थ जीवन का आकर्षण होते हैं। तो गृह-क्षेत्र-सुत आप्त। आप्त का अर्थ है रिश्तेदार या समाज। सुताप्त-वित्तै: और इन सभी दृष्टांतों को धन के आधार पर बनाए रखना होता है। इसलिए धन की आवश्यकता है, वितै:। इस प्रकार, व्यक्ति इस भौतिक संसार में उलझ जाता है। जनस्य मोहो यम। इसे भृम कहते है।
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