अद्वैत का अर्थ कृष्ण अपना विस्तार करते है । कृष्ण खुद का विस्तार कर सकते हैं, ये भगवान है । जैसे मैं यहां बैठा हूं, वैसे ही तुम यहां बैठे हो । मान लीजिए आपके घरपे आपके संबंधी की आपको ज़रूरत है, लेकिन अगर कोई पूछता है कि 'श्रीमान फलाना फलाना घर पर है,' तो जवाब होगा... 'नहीं, वे घर पर नहीं है' । कृष्ण ऐसे नहीं है । कृष्ण, गोलोक एव निवसती अखिलात्म भूत: (ब्र.सं. ५.३७) । वे हर जगह उपस्थित है । ऐसा नहीं है कि क्योंकि कृष्ण कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर अर्जुन के साथ बोल रहे थे, इसीलिये वे गोलोक या वैकुण्ठ में नहीं थे, या और कही नहीं थे । आपको भगवद गीता में मिलेगा की कृष्ण, अभी, यहाँ भी है । ईश्वरः सर्व-भूतानाम ह्रद-देशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) । कृष्ण हर किसी के हृदय में है । तुम्हारे हृदय में कृष्ण है, मेरे हृदय में कृष्ण है, हर किसी के हृदय में ।
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