"तो यहां हर जीव प्रभुत्व प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है। प्रतियोगिता। मैं व्यक्तिगत रूप से, राष्ट्रहित की कोशिश कर रहा हूं। हर कोई इस पर प्रभुता करने की कोशिश कर रहा है। यह भौतिक अस्तित्व है। और जब वह अपनी असली चेतना में आता है, ज्ञानवान, तो यह है कि "मिथ्या है इस पर प्रभु की कोशिश। बल्कि, मैं भौतिक ऊर्जा से युक्त होता जा रहा हूं," जब वह समझता है, तब वह आत्मसमर्पण कर देता है। फिर उसका मुक्त जीवन शुरू हो जाता है। यही आध्यात्मिक जीवन की पूरी प्रक्रिया है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भगवद गीता, १८.६६) तरीके और साधनों का निर्माण न करें, गलत तरीके से इस पर प्रभुता प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है। यह ... आप खुश नहीं होंगे, क्योंकि आप इस समग्र प्रकृति पर प्रभुता प्राप्त नहीं कर सकते। यह असंभव है।"
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