HI/730829 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"तो कर्म-वाद, कि आप अच्छे कर्म करते हैं, आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे ... लेकिन आपकी नैतिकता कहाँ है? क्योंकि आप भगवान के प्रति अवज्ञाकारी हैं। आपके जीवन की शुरुआत में, आप अनैतिक हैं। आप सबसे महान अधिकारी की अवज्ञा कर रहे हैं। एक और उदाहरण है, एक कहानी, कि चोरों का एक गिरोह, उन्होंने कुछ संपत्ति अलग-अलग घरों से चुराई, फिर गाँव के बाहर वे आपस में बाँट रहे थे, तो एक चोर कह रहा है, 'कृपया इसे नैतिक रूप से विभाजित करें ताकि किसी के साथ धोखा न हो ’। अब जरा सोचिए, संपत्ति चोरी की है, वहां नैतिकता कहां है? लेकिन विभाजित करते समय, वे नैतिकता के बारे में सोच रहे हैं। मूल सिद्धांत अनैतिक है, आप में नैतिकता कहाँ हो सकती है? इसी प्रकार, वैदिक निषेधाज्ञा के अनुसार, इसवासयम् इदम् सर्वम् (इसो.१): सब कुछ परमपिता परमात्मा का है, यह उसकी संपत्ति है, तो पूरा ग्रह भगवान की संपत्ति है, पूरा ब्रह्मांड भगवान की संपत्ति है। लेकिन जब आप दावा कर रहे हैं कि 'यह मेरी संपत्ति है', तो नैतिकता कहां है?"
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730829 - प्रवचन भ.गी. २.२६-२७ - लंडन |