""नायं देहो देहभाजां नृलोके कष्टान् कामानर्हते विड्भुजां ये" (श्री.भा. ५.५.१) । दिन हो या रात, हम इतनी मेहनत करते हैं, लेकिन उद्देश्य क्या है? उद्देश्य है इन्द्रियों को संतुष्ट करने के लिए। दुनिया भर में, विशेषकर पश्चिमी देश में, इन लोगों से पूछें, वे बहुत सारी योजनाएँ बना रहे हैं। कल, जब हम विमान से आ रहे थे, पूरे दो घंटे एक आदमी काम कर रहा था, कुछ गणना कर रहा था। इसलिए हर कोई व्यस्त है, बहुत, बहुत व्यस्त है, लेकिन अगर हम उससे पूछें, 'तुम इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो? क्या उद्देश्य है?' उद्देश्य, उसके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है सिवाय इन्द्रिय संतुष्टि के, बस इतना ही। उसका और कोई उद्देश्य नहीं है। वह सोच सकता है कि 'मुझे एक बड़ा परिवार मिला है, मुझे उन्हें बनाए रखना है,' या 'मुझे इतनी जिम्मेदारी मिली है।' लेकिन वह क्या है? यह सिर्फ इन्द्रिय संतुष्टि है।”
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