"तो बीमारी तो है, लेकिन उपाय भी है। -दर्पण-मार्जनम् CC Antya 20.12)। हम गलत समझ रहे हैं। मानव समाज, वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा, चीजों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह संभव नहीं है। संयुक्त राष्ट्र नहीं कर सकता। मैं मेलबॉर्न में बोल रहा था, तो मैंने संयुक्त राष्ट्र पर आरोप लगाया, "वे भौंकने वाले कुत्तों की सभा हैं।" क्योंकि आप इस भौतिक मंच पर एकजुट नहीं हो सकते। अपने आप को समझते हैं कि 'मैं कुत्ता हूँ', 'मैं बाघ हूँ', 'मैं अमरिकी हूँ', 'मैं भारतीय हूँ', 'मैं ब्राह्मण हूँ', 'मैं शूद्र हूँ ', तो फिर संयुक्त राष्ट्र का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।"
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