"यह बीमारी साधारण नहीं है। यह हमेशा घातक सिद्ध होता है। परंतु उनकी विशेष कृपा से कुछ भी संभव है। यह अलग बात है लेकिन भूख चली जाने का अर्थ है कि जीवन समाप्त। तावद तनु-भृतां त्वद उपेक्षितानां (श्री.भ ७.९.१९). यदि कृष्ण किसी की उपेक्षा करते है तो उसके जीने की कोई सम्भावना नहीं परंतु यदि वे चाहे की "उसे जीवित रहना ही पड़ेगा, " फिर कुछ भी हो सकता है। यह मुमकिन है। अनित्यं असुखं लोकम इमं प्राप्य भजस्व माम (भ.गी ९.३३). अनित्यं असुखं लोकम भजस्व माम। अन्यथा विफलता निश्चित है। सब कुछ दिया है भगवद-गीता में।"
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