HI/BG 14.8

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 8

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥८॥

शब्दार्थ

तम:—तमोगुण; तु—लेकिन; अज्ञान-जम्—अज्ञान से उत्पन्न; विद्धि—जानो; मोहनम्—मोह; सर्व-देहिनाम्—समस्त देहधारी जीवों का; प्रमाद—पागलपन; आलस्य—आलस; निद्राभि:—तथा नींद द्वारा; तत्—वह; निबध्नाति—बाँधता है; भारत—हे भरतपुत्र।

अनुवाद

हे भरतपुत्र! तुम जान लो कि अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है | इस गुण के प्रतिफल पागलपन (प्रमाद), आलस तथा नींद हैं, जो बद्धजीव को बाँधते हैं |

तात्पर्य

इस श्लोक में तु शब्द का प्रयोग उल्लेखनीय है | इसका अर्थ है कि तमोगुण देहधारी जीव का अत्यन्त विचित्र गुण है | यह सतोगुण के सर्वथा विपरीत है | सतोगुण में ज्ञान के विकास से मनुष्य यह जान सकता है कि कौन क्या है, लेकिन तमोगुण तो इसके सर्वथा विपरीत होता है | जो भी तमोगुण के फेर में पड़ता है, वह पागल हो जाता है और पागल पुरुष यह नहीं समझ पाता कि कौन क्या है | वह प्रगति करने की बजाय अधोगति को प्राप्त होता है | वैदिक साहित्य में तमोगुण की पारीभाषा इस प्रकार दी गई है – वस्तुयाथात्म्यज्ञानावरकं विपर्ययज्ञानजनकं तमः – अज्ञान से वशीभूत होने पर कोई मनुष्य किसी वस्तु को यथारूप में नहीं समझ पाता | उदाहरणार्थ, प्रत्येक व्यक्ति देखता है कि उसका बाबा मरा है, अतएव वह भी मरेगा, मनुष्य मर्त्य है | उसकी सन्तानें भी मरेंगी | अतएव मृत्यु ध्रुव है | फिर भी लोग पागल होकर धन संग्रह करते हैं और नित्य आत्मा की चिन्ता किये बिना अहर्निश कठोर श्रम करते रहते हैं | यह पागलपन ही तो है | अपने पागलपण में वे आध्यात्मिक ज्ञान में कोई उन्नति नहीं कर पाते | ऐसे लोग अत्यन्त आलसी होते हैं | जब उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान में सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित किया जाता है, तो वे अधिक रूचि नहीं दिखाते | वे रजोगुणी व्यक्ति की तरह भी सक्रिय नहीं रहते | अतएव तमोगुण में लिप्त व्यक्ति का एक अन्य गुण यह भी है कि वह आवश्यकता से अधिक सोता है | छह घंटे की नींद पर्याप्त है, लेकिन ऐसा व्यक्ति दिन भर में दस-बारह घंटे तक सोता है | ऐसा व्यक्ति सदैव निराश प्रतीत होता है और भौतिक द्रव्यों तथा निद्रा के प्रति व्यसनी बन जाता है | ये हैं तमोगुणी व्यक्ति के लक्षण |