HI/Prabhupada 0079 - मेरा कोई श्रेय नहीं है
Lecture on SB 1.7.6 -- Hyderabad, August 18, 1976
अब यह विदेशी, ये ना हिंदू हैं, ना भारतीय हैं, ना ही ब्राह्मण हैं । वे भक्त कैसे बन रहे हैं ? वह मूर्ख या धूर्त नही हैं । वे अच्छे खानदान से हैं, पढ़े लिखे हैं । तो हमारे पास इरान मैं भी केंद्र हैं । तेहरान में, मैं अभी वहीं से आ रहा हूं । हमारे पास बहुत मुसलमान शिष्य हैं अौर उन्होंने नें भी अपनाया है भक्ति को । आफ्रिका में उन्होंने अपनाया है । आस्ट्रलिया में उन्होंने अपनाया है । पूरे विश्व में । यही चैतन्य महाप्रभु का लक्ष्य है ।
- पृथ्वीते आछे यत नगरादि ग्राम
- सर्वत्र प्रचार हैबे मोर नाम
- (चैतन्य भागवत अंत्य खंड ४.१२६) ।
यह भगवान चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है । जितने भी गॉव और शहर इस विश्व में हैं, यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन फैलेगा । इसमे मेरा कुछ श्रेय नहीं है, लेकिन यह एक छोटी सी कोशिश है, विनयपूर्ण कोशिश । तो अगर एक आदमी यह कर सकता है, तुम कह सकते हो, कुछ कामयाबी, हम सब क्यों नही कर सकते हैं ? चैतन्य महाप्रभु ने सभी भारतीय लोगों को यह अधिकार दिया है ।
- भारत-भूमिते हैल मनुष्य-जन्म यार
- (चैतन्य चरितामृत आदि ९.४१ ) ।
वे मनुष्य से बात कर रहे हैं, कुत्तों और बिल्लियों से नहीं ।
तो मनुष्य-जन्म यार जन्म सार्थक करी (चैतन्य चरितामृत आदि ९.४१ )।
सबसे पहले यह समझने का प्रयास करो कि जीवन का उद्देश्य क्या है । इसको जन्म-सार्थक करना कहते हैं ।
जन्म सार्थक करी कर पर-उपकार (चैतन्य चरितामृत आदि ९.४१ ) ।
जाअो । हर जगह कृष्ण भावनामृत की बहुत अच्छी मॉग है ।