HI/Prabhupada 0110 - पूर्ववर्ती आचार्य की कठपुतली बन जाओ
Morning Walk -- April 19, 1973, Los Angeles
स्वरूप दामोदर: वे श्रीमद-भागवत सुनेंगे, तो उनका दिल बदल जाएगा।
प्रभुपाद: निश्चित रूप से। कल किसी ने हमारे छात्रों को इसके लिए धन्यवाद दिया है: अरे, हम तो तुम्हारे अाभारी हैं, कि तुम भागवत की आपूर्ति कर रहे हो। है कि नहीं , किसी ने कहा है?
भक्त जन: हाँ हाँ। त्रिपुरारी ने कहा। त्रिपुरारी।
प्रभुपाद: ओह त्रिपुरारी हाँ । किसीने एसा कहा?
त्रिपुरारी: हाँ, हवाई अड्डे पर दो लड़कों नें कल दो सेट खरीदे श्रीमद-भागवतम् के ।
जयतीर्थ: पूर्ण?
त्रिपुरारी: छह संस्करण। उन्होंने भागवतम् को हाथ में रख कर कहा: "बहुत बहुत धन्यवाद।" और फिर उम्होंने अपने लॉकर में रख दिया और वे अपने विमान के लिए इंतजार कर रहे थे और उनके पास पहला सर्ग था ...
प्रभुपाद: हाँ। किसी भी ईमानदार आदमी हमारे, इस प्रचार आंदोलन के लिए आभार महसूस करेगा। इन पुस्तकों का वितरण करके, तुम कृष्ण के लिए एक महान सेवा कर रहे हो। वे हर किसी को कहना चाहते थे : सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम् एकं शरणं व्रज (भ गी १८.६६) | वह इसलिए आते हैं। जो कोई भी वही सेवा कर रहा है, कि: "कृष्ण को समर्पण करो," उसे बहुत अच्छी तरह से कृष्ण द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। यह भगवद गीता में कहा गया है न च तस्मान् मनुष्येषु (भ गी १८।६९) मानव समाज में, कोई भी इतना मूल्यवान नहीं जितना वह जो प्रचार कर रहा है। हरे कृष्ण ।
ब्रह्मानंद: हम बस अापकी कठपुतलिया हैं, श्रील प्रभुपाद। आप हमें किताबें दे रहे हैं।
प्रभुपाद: नहीं। हम सब कृष्ण की कठपुतलियॉ हैं। मैं भी कठपुतली हूँ। कठपुतली। यह परम्परा उत्तराधिकार है। हमे, हमे कठपुतली बनना हैं। बस। जैसे मैं अपने गुरु महाराज का कठपुतली हूँ , तो तुम मेरे कठपुतली बन जाअो, तो यह सफलता है। हमारी सफलता है जब हम पूर्ववर्ती की कठपुतली बन जाते हैं। तांदेर चरण सेवि भक्त सने वास। भक्तों के समाज में रहना और पूर्ववर्ती आचार्य की कठपुतली बन जाना। यह सफलता है। तो हम ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं। कृष्ण चेतना समाज और पूर्ववर्ती की सेवा करते हैं। बस। हरेर् नाम हरेर् नाम.......(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) लोग आएँगे। लोग हमारे प्रचार की सराहना करेंगे। कुछ समय लगेगा।
स्वरूप दामोदर: वे प्रशंसा कर रहे हैं दो सालों से अधिक ।
प्रभुपाद: हाँ, हाँ।
स्वरूप दामोदर: वे वास्तविक तत्त्वज्ञान को समझना शुरू कर रहे हैं.