HI/Prabhupada 0120 - अचिन्त्य रहस्यवादी शक्ति



Morning Walk At Cheviot Hills Golf Course -- May 17, 1973, Los Angeles

प्रभुपाद: तुमने अनुवाद किया या नहीं?

स्वरूप दामोदर: अचिन्त्य

प्रभुपाद: हाँ. अचिन्त्य या रहस्यवादी।

स्वरूप दामोदर: रहस्यवादी शक्ति।

प्रभुपाद: हाँ।

स्वरूप दामोदर: मैं केवल इकट्ठा कर रहा हूँ जो श्रील प्रभुपाद ने व्याख्या की है, विभिन्न अचिन्त्य-शक्तियाँ जो हमे देखते हैं।

प्रभुपाद: यहाँ अचिन्त्य-शक्ति काम कर रही है , यह कोहरा, धुंध। तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है इसे दूर भगाने के लिए। तुम्हारी शक्ति से परे है। तुम शब्दों के कुछ करतब दिखाकर व्याख्या कर सकते हो ...

राहगीर: सुप्रभात।

प्रभुपाद: सुप्रभात। ... कि, "इस तरह के रसायन, ऐसे अणु, जैसे कि यह, वह" इतनी सारी बातें कर रहे हैं लेकिन (हंसते हुए) इसे भगाने के लिए तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है।

स्वरूप दामोदर: हाँ। धुंध का गठन कैसे होता है इसकी व्याख्या है उनके पास। वे कहते हैं ...

प्रभुपाद: वह तुम भी कर सकते हो। यह तो मैं भी ऐसा कर सकता हूँ। यह बहुत महान श्रेय नहीं है। अगर तुम्हें पता है कि वह कैसे बनती है, तो उसको प्रभावहीन करो।

स्वरूप दामोदर: हमें बनने की प्रक्रिया मालूम है। हमें बनने की प्रक्रिया मालूम है।

प्रभुपाद: हाँ। तो तुम्हें पता है, तो तुम प्रतिकार खोजो। पूर्व समय में, युद्ध में परमाणु ब्रह्मास्त्र फेंका जाता था। दूसरी ओर ... ब्रह्मास्त्र का मतलब है अत्यधिक गर्मी। उन्होनें कुछ किया, पानी में बदल किया। क्योंकि गर्मी के बाद, पानी होना चाहिए। तो यह विज्ञान कहाँ है?

स्वरूप दामोदर: यह दूध की तरह है। दूध सफेद दिखता है, लेकिन यह केवल पानी है। वे कहते हैं, यह है प्रोटीन का कोलाइडयन निलंबन, यह कैसिइन, पानी में। तो इसी तरह, यह कोहरा सिर्फ है पानी का हवा में कोलाइडयन निलंबन।

प्रभुपाद: हाँ। तो अगर तुम कुछ आग पैदा करते हो। यह तुरंत दूर चला जाएगा। जल आग से दूर संचालित किया जा सकता है। तो तुम बनाअो। यह तुम नहीं कर सकते हो। तुम केवल एक बम फेंक सकते हो। वहाँ कुछ गर्मी होगी और सब धुंध दूर हो जाएगा। यह करो।

करंधर: उससे ग्रह उड़ जाएगा। उससे ग्रह उड़ जाएगा। (हंसी)

प्रभुपाद: हरे कृष्ण। जल आग या हवा द्वारा प्रभावहीन किया जा सकता है। हर कोई यह जानता है। तो तुम यह करो, निलंबन। तो तुम्हारे लिए यह रहस्यवादी शक्ति है। तुम सब बकवास बात कर सकते हो, लेकिन तुम उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते हो। इसलिए यह रहस्यवादी शक्ति है। तो इसी तरह, बहुत सारी बातें हैं। यही अचिन्त्य-शक्ति है। तुम सोच भी नहीं सकते। प्रकृति से, तुरंत सूरज उगता है - कोई धुंध नहीं। सब समाप्त हो जाता है। सूरज के तापमान में वृद्धि, सब समाप्त हो जाता है। नीहारम् इव भास्कर:। यह उदाहरण भागवत में दिया गया है। नीहार इसे नीहार कहा जाता है। जैसे सूरज, भास्कर के अाने से नीहार तुरंत भाग जाता है । इसी तरह, अगर हम अपनी निष्क्रिय भक्ति को जगा सकते हैं, फिर सब खत्म, पापी गतिविधियों की सभी प्रतिक्रिया, समाप्त।

नीहारम् इव भास्कर: तुम सिर्फ बनाअो ... तुम गणना करो कि सूरज इस रसायन, उस रासायन की संरचना है। बस एक सूरज बनाअो और उसे फेंको। केवल सैद्धांतिक भविष्य, धोखा और शब्दों का करतब, यह अच्छी बात नहीं है।

स्वरुप दामोदर: अनुसन्धान का मतलब यही है | अनुसन्धान का मतलब अन्जान वस्तु के बारे में जानना है |

प्रभुपाद: हाँ। अनुसंधान का मतलब है तुम स्वीकार करते हो कि तुम सभी मूर्ख और दुष्ट हो। अनुसंधान किसके लिए? कौन नहीं जानता है। अन्यथा अनुसंधान का सवाल कहाँ है? तुम नहीं जानते। तुम स्वीकार करो। तो इतनी सारी रहस्यमयी शक्तियाँ हैं। तुम्हें पता नहीं है यह कैसे किया जा रहा है। इसलिए तुम्हें अचिन्त्य शक्ति को स्वीकार करना होगा। और इस अचिन्त्य शक्ति के सिद्धांत को स्वीकार किए बिना, भगवान का कोई अर्थ नहीं है। बल-योगी की तरह नहीं, भगवान बन गया। इसलिए यह दुष्ट, मूर्ख लोगों के लिए है लेकिन जो लोग बुद्धिमान हैं, वे अचिन्त्य शक्ति का परीक्षण करेंगे। जैसे हम कृष्ण को स्वीकार करते हैं भगवान के रूप में- अचिन्त्य शक्ति। हम राम को स्वीकार करते हैं- अचिन्त्य शक्ति। इतना सस्ता नहीं। एक बदमाश आता है और कहता है "मैं भगवान का अवतार हूँ।" एक अन्य बदमाश स्वीकार कर लेता है। यह ऐसा नहीं है। "रामकृष्ण भगवान है" हम नहीं स्वीकार करते। हमें रहस्यवादी शक्ति देखनी होगी। जैसे कृष्ण की तरह, बच्चे के रूप में, एक पहाड़ी को उठा लिया। यही अचिन्त्य रहस्यवादी शक्ति है।

रामचंद्र, उन्होंने एक पत्थर के पुल का निर्माण किया स्तंभ के बिना। पत्थर तैरने लगा: "चलो." यह एक अचिन्त्य शक्ति है। और क्योंकि तुम इस अचिन्त्य शक्ति को समायोजित नहीं कर सकते, जब उनका वर्णन होता है , तब तुम कहते हो, "ओह, ये सभी कहानियाँ हैं।" क्या कहते हैं? मिथक विद्या। लेकिन ये महान, महान संत, वाल्मीकि और व्यासदेव और अन्य अाचार्य, उन्होंने बस अपना समय बर्बाद किया पुराण लिखने में? इस तरह के विद्वानों नें? और उन्होंने व्याख्या नहीं की है कि यह मिथक विद्या है । वे इसे वास्तविक तथ्य के रूप में स्वीकारते हैं। जंगल में आग लग गई थी। सभी दोस्त और ग्वाले, वे परेशान हो गए। वे श्री कृष्ण की ओर देखने लगे: "कृष्ण, क्या करें?" "ठीक है। " उन्होंने बस पूरी आग निगल ली। यह अचिन्त्य रहस्यवादी शक्ति है। यही भगवान है। ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशस: श्रिय: (विष्णु पुराण ६.५.४७)। ये छह ऐश्वर्य पूर्णता में। यही भगवान है।

अचिन्त्य ऊर्जा या रहस्यमयी शक्ति, हमारे पास भी है। बहुत कम मात्रा में। तो कई बातें हमारे शरीर के भीतर चल रही हैं। हम समझा नहीं सकते हैं। वही उदाहरण। मेरे नाखून उसी रूप में आ रहे हैं। हालाँकि यह रोग से पीड़ित है, फिर भी यह आ रहा है। मुझे नहीं पता कौन सा यंत्र चल रहा है, और नाखून आ रहा है, उसी स्थिति में बिल्कुल ठीक बैठ रहा है, यह मेरे शरीर से आ रहा है। तो यह रहस्यमयी शक्ति है। यहां तक कि यह मेरे और डॉक्टरों के लिए, हर किसी के लिए रहस्यवादी शक्ति है... वे व्याख्या नहीं कर सकते।