HI/Prabhupada 0153 - साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है
Interview with Newsweek -- July 14, 1976, New York
प्रश्नकर्ता: क्या आप उल्लेख कर सकते हैं इन तीन कार्यों के बारे में - खाना, सोना और मैथुन, और, विशेष रूप से मुझे बताइए कि क्या नियम या संकेत आप लोगों को देना चाहेंगे जो इन तरीकों से आध्यात्मिक ज्ञान की खोज कर रहे हैं जीवन में सहायता के लिए ।
प्रभुपाद: हाँ । हाँ, यह हमारी किताबें है। यह हमारी किताबें है । पर्याप्त ज्ञान है समझने को। यह तुम एक मिनट में समझ नहीं सकते हो ।
प्रश्नकर्ता: मैं जानती हूँ कि अाप बहुत कम सोते हैं । आप तीन से चार घंटे हर रात सोते हैं । क्या आपको महसूस होता है कि यही एहसास उस व्यक्ति को होगा जो आध्यात्मिक ज्ञान प्रोप्त कर लेगा ?
प्रभुपाद: हाँ, हम गोस्वामी के व्यवहार से देखते हैं । व्यावहारिक रूप से उन्हे कोई भी भौतिक आवश्यकताएं नहीं थी । यह खाना, सोना, मैथुन और बचाव, व्यावहारिक रूप से ऐसी कोई ज़रूरत नहीं थी उनके जीवन में । वे केवल कृष्ण के काम में लगे हुए हैं ।
प्रश्नकर्ता: किसमें लग हैं?
रामेश्वर : कृष्ण के काम या भगवान की सेवा ।
बली-मर्दन: वह पिछले आध्यात्मिक गुरु का उदाहरण पेश कर रहे हैं ।
प्रश्नकर्ता: ठीक है, जिसमें मेरी दिलचस्पी है कि क्यों ... क्या उन्हे लगता है कि तीन से चार घंटे की अवधि सोने के लिए आवश्यक है?
बाली-मर्दन: दूसरे शब्दों में, क्यों ... वह पूछ रही है क्यों तीन से चार घंटे अापके सोने कि अवधि है । कैसे आप उस स्तर तक पहुँच गए हैं?
प्रभुपाद: यह कृत्रिम नहीं है । जितना अधिक तुम आध्यात्मिक गतिविधियों में लगे हो, उतना तुम भौतिक गतिविधियों से मुक्त हो जाअोगे । यही कसौटी है ।
प्रश्नकर्ता: और तो आप उस स्तर पर आ गए हैं ...
प्रभुपाद: नहीं, मैं खुद के बारे में बात नहीं करता, लेकिन यही परीक्षा है ।
भक्ति: परेशानुभवो विरक्तिर अन्यत्र स्यात (श्रीमद भागवतम ११.२.४२) । अगर तुम भक्ति में, आध्यात्मिक जीवनमें, प्रगति करते हो, तो तुम भौतिक जीवन से उदासीन हो जाअोगे ।
प्रश्नकर्ता: आपको लगता है कि दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों के बीच एक अंतर है ? दूसरे शब्दों में, आपको लगता है कि यूरोपियों के मुकाबले भारतीय कि प्रवृत्ति अधिक है या संभावना ज़्यादा है कृष्ण भावनामृत का पालन करने की ?
प्रभुपाद: नहीं, कोई भी बुद्धिमान आदमी कृष्ण भावनाभावित बन सकता है । मैंने पहले ही समझा दिया है कि, जब तक वह बुद्धिमान व्यक्ति नहीं है, वह कृष्ण भावनामृत को अपना नहीं सकता है । तो यह सभी के लिए खुला है । लेकिन बुद्धि के विभिन्न स्तर हैं । यूरोप, अमेरिका में, वे बुद्धिमान हैं, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता भौतिक प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाती है । और भारत में उनकी बुद्धिमत्ता आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए उपयोग की जाती है । इसलिए तुम इतने सारे अत्यधिक आध्यात्मिक जीवन के मानक, पुस्तकें, साहित्य पाते हो । जैसे व्यासदेव की तरह । व्यासदेव भी गृहस्थ जीवन में थे, लेकिन वह जंगल में रहते थे, और साहित्य में उनका योगदान तुम देखो । कौई सपने में भी नहीं सोच सकता । तो साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है । भौतिक संसार के सभी बड़े, बड़े आदमी, वैज्ञानिक, दार्शनिक, यहां तक की तकनीकी लोग, उन्हे मान्यता प्राप्त हैं उनके लेखन से, उनके योगदान से, न की उनके विशाल शरीर से ।