HI/Prabhupada 0161 - वैष्णव बनना तथा पीड़ित मानवता के लिए अनुभव करना



His Divine Grace Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Gosvami Prabhupada's Disappearance Day, Lecture -- Los Angeles, December 9, 1968

अगर हम दृढता से आध्यात्मिक गुरु की सेवा करने का प्रयास करते हैं, उनके आदेश, तो कृष्ण हमें सभी सुविधाएं देंगे । यही रहस्य है । हालांकि कोई संभावना नहीं थी, मैंने कभी नहीं सोचा था, लेकिन मैंने थोड़ा इसे गंभीरता से लिया, भगवद गीता पर विश्वनाथ चक्रवर्ति ठाकुर द्वारा एक कमेंटरी का अध्ययन करके । भगवद गीता श्लोक में व्वसायत्मिका-बुद्धिर एकेहे कुरु-नन्दन (भ गी २.४१), उस श्लोक के संबंध में, विश्वनाथ चक्रवर्ति ठाकुर अपनी टिप्पणी देते हैं, कि हमें अपने आध्यात्मिक गुरु के शब्दों को अपना जीवन और आत्मा के रूप में लेना चाहिए । हमें उनकी शिक्षा का पालन करने की कोशिश करनी चाहिए , आध्यात्मिक गुरु की विशिष्ट शिक्षा, बहुत दृढता से, बिना परवाह किए हमारे व्यक्तिगत लाभ या हानि की ।

तो मैंने एक छोटा सा प्रयास किया इस भावना के साथ । तो उन्होंने मुझे उनकी सेवा करने के लिए सभी सुविधाएं दी हैं । हालात यह है कि, इस उम्र में मैं अापके देश में अाया हूँ, और तुम भी इसे समझने की कोशिश कर रहे हो, गंभीरता से इस आंदोलन को ले हे हो । अब हमारे पास कुछ किताबें हैं । इसलिए इस आंदोलन की पकड जम गई है । तो मेरे आध्यात्मिक गुरु की विदाई के इस अवसर पर, मैं उनकी इच्छा पर अमल करने की कोशिश कर रहा हूँ, इसी तरह, मैं अनुरोध करता हूँ कि तुम भी इसी आदेश पर अमल करो मेरी इच्छा के माध्यम से । मैं एक बूढ़ा आदमी हूँ, मैं किसी भी क्षण मर सकता हूँ । यही प्रकृति का नियम है । कोई भी इसे बदल नहीं सकता है । तो यह बहुत आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन मेरे गुरु महाराज के प्रस्थान के इस शुभ दिन पर तुम को मेरी अपील है, कम से कम कुछ हद तक तुमने कृष्ण भावनामृत आंदोलन का सार समझ लिया है । तुम्हे इसे अागे बढाने का प्रयास करना चाहिए । लोग इस चेतना के अभाव से पीड़ित हैं । जैसे हम प्रतिदिन भक्तो के लिए प्रार्थना करते हैं,

वांछा-कल्पतरुभ्यश च
कृपा-सिन्धुभ्य एव च
पतितानाम् पावनेभ्यो
वैश्नवेभ्यो नमो नम: ।।

एक वैष्णव, या भगवान का भक्त, उसका जीवन लोगों की भलाई के लिए समर्पित है । तुम्हें पता है - तुम में से अधिकांश ईसाई समुदाय के हो - कैसे प्रभु ईशु मसीह, उन्होंने कहा कि तुम्हारी पापी गतिविधियों के लिए वे खुद कुर्बान हो गए । यही भगवान के भक्त का दृढ़ संकल्प है । वे व्यक्तिगत आराम की परवाह नहीं करते । क्योंकि वे कृष्ण या भगवान से प्यार करते हैं, इसलिए वे सभी जीवों से प्यार करते हैं, क्योंकि सभी जीवों का कृष्ण के साथ रिश्ता है । तो इसी तरह तुम्हे सीखना चाहिए । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मतलब है वैष्णव बनना और पीड़ित मानवता के लिए महसूस करना । तो पीड़ित मानवता के लिए महसूस करने के लिए, विभिन्न दृष्टिकोण हैं ।

कोई मानवता की पीड़ा के बारे में सोच रहा है शारीरिक धारणा से। कोई अस्पताल खोलने की कोशिश कर रहा है, पीडित को राहत देने के लिए । कोई गरीब देशों या स्थानों में खाद्य पदार्थों वितरित करने के लिए कोशिश कर रहा है । ये बातें निश्चित रूप से बहुत अच्छी हैं, लेकिन मानवता की वास्तविक पीड़ा कृष्ण भावनामृत की कमी के कारण है । ये शारीरिक कष्ट, वे अस्थायी हैं, न तो वे रोकी जा सकती हैं प्रकृति के नियमों द्वारा । मान लो तुम किसी गरीब देश में खाद्य पदार्थों का कुछ वितरण करते हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस मदद से सारी समस्या का समाधान हो जाएगा । वास्तविक कल्याणकारी काम है हर व्यक्ति में कृष्ण चेतना को जागरूक करना ।