HI/Prabhupada 0170 - हमें गोस्वामियों का अनुसरण करना चाहिए



Lecture on SB 1.7.8 -- Vrndavana, September 7, 1976

तो यह संहिता ... संहिता का मतलब है वैदिक साहित्य । कई दुष्ट हैं, वे कहते हैं कि "भागवत व्यासदेव नें नहीं लिखा था, यह किसी बोपदेव नें लिखा था ।" वे एसा कहते हैं । मायावादी, निरीश्वरवादी । क्योंकि हालांकि निरीश्वरवादी, या मायावादी नेता शंकराचार्य, उन्होंने भगवद गीता पर टिप्पणी लिखी है, लेकिन वह श्रीमद-भागवत को छू नहीं सके, क्योंकि श्रीमद-भागवतम में चीजें इतनी अच्छी तरह से स्थापित की गई हैं, कृत्वानुक्रम्य, यह मायावादी के लिए संभव नहीं है कि वे साबित करें कि भगवान अवैयक्तिक है । वे यह नहीं कर सकते । आजकल वे कर रहे हैं, अपने तरीके से भागवतम पढ़ रहे हैं, लेकिन यह किसी भी समझदार आदमी को भाता नहीं है । कभी कभी मैनें देखा है कि एक बड़ा मायावादी श्रीमद-भागवतम से एक श्लोक समझाता है, कि " क्योंकि तुम भगवान हो, तो अगर तुम प्रसन्न हो, तो भगवान भी प्रसन्न हैं । " यह उनका तत्वज्ञान है । "तुम्हे अलग से भगवान को खुश करने की आवश्यकता नहीं है । तो अगर तुम शराब पीने से खुश हो, तो फिर भगवान भी प्रसन्न हैं ।" यह उनकी व्याख्या है ।

इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें इस मायावादी टिपण्णी की निंदा की है । चैतन्य महाप्रभु ने कहा है मायावादी-भाश्य शूनिले हय सर्व-नाश (चैतन्य चरितामृत मध्य ६.१६९) । मायावादी कृष्णे अपराधी । उन्होंने साफ शब्दों में कहा है । कोई समझौता नहीं । ये मायावादी, वे कृष्ण के महान अपराधी हैं । तान अहम् द्विशत: क्रूरान (भ गी १६.१९), कृष्ण यह भी कहते हैं । वे कृष्ण से बहुत, बहुत ईर्ष्या करते हैं । कृष्ण द्वि-भुज-मुरलीधर हैं, श्यामसुन्दर, और मायावादी बताते हैं कि "कृष्ण के कोई हाथ नहीं है, कोई पैर नहीं हैं । यह सब कल्पना है ।" यह कितना अपमानजनक है वे नहीं जानते । लेकिन हम जैसे लोगों को सचेत करने के लिए, चैतन्य महाप्रभु नें स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि "मायावादी के पास मत जाओ ।" मायावादी-भाश्य शुनिले हय सर्व-नाश । मायावादी हय कृष्णे अपराधी । यह श्री चैतन्य महाप्रभु का बयान है ।

तो तुम्हे बहुत, बहुत सावधान रहना चाहिए । किसी भी मायावादी को सुनने के लिए मत जाओ । वैष्णव की पोशाक में कई मायावादी हैं । श्री भक्तिविनोद ठाकुर नें उनके बारे में विस्तार से बताया है कि, एई अट एक कालि-चेला नाके तिलक गले माला, कि "यहाँ काली का अनुयायी है । हालांकि उसकी नाक पर एक तिलका है और गले में कंठी माला, लेकिन वह एक काली-चेला है । " अगर वह मायावादी है, सहज-भजन कछे मम संगे लय परे बल । तो ये बातें हैं । तुम वृन्दावन आए हो। सावधान रहो, बहुत सावधान । मायावादी-भाश्य शुनिले (चैतन्य चरितामृत मध्य ६.१६९) | यहॉ बहुत मायावादी हैं, कई तथाकथित तिलक-माला, लेकिन तुम्हे पता नहीं है कि अंदर क्या है । लेकिन महान अाचार्य, वे पता कर सकते हैं ।

श्रुति-स्मृति-पुराणादि
पंचरात्र-विधिम् विना
अैकान्तिकी हरेर भक्तिर
उत्पातायैव कल्पते
(भक्तिरसामृतसिंधु १.२.१०१)

वे केवल अशांति पैदा करते हैं । इसलिए हमें गोस्वामी का अनुसरन करना चाहिए, गोस्वामी साहित्य, विशेष रूप से भक्तिरसामृतसिंधु, जिसका हमने अनुवाद किया है नेक्टर अौफ डिवोशन, तुम में से हर एक को बहुत ध्यान से पढ़ाना चाहिए और प्रगति करनी चाहिए । किसी मायावादी या तथाकथित वैष्णव का शिकार ना बने | यह बहुत खतरनाक है।

इसलिए यह कहा जाता है, स सम्हितम् भागवतीम् कृतवानुक्रम्य चात्म-जम (श्रीमदभागवतम् १.7.8)। यह बहुत गोपनीय विषय है । उन्होंने यह सिखाया, शुकदेव गोस्वामी को निर्देश दिया ।