HI/Prabhupada 0189 - भक्त को तीनों गुणों से ऊपर रखें
Lecture on SB 6.1.46 -- San Diego, July 27, 1975
तुम प्रकृति के नियम नहीं बदल सकते । अस्तित्व के लिए संघर्ष: हम प्रकृति के नियमों के ऊपर जीत के लिए कोशिश कर रहे हैं । यह संभव नहीं है । दैवी हि एषा गुणमयी मम माया दुरत्यया (भ.गी. ७.१४) । इसलिए यह अध्ययन का विषय है । क्यों, सब दुखी और खुश है कुछ हद तक? इन गुणों के अनुसार । यहाँ कहा जाता है इसलिए कि " यहाँ हम इस जीवन में देखते हैं, जीवन की अवधि में, किस्में हैं, इसी तरह, गुण-वैचित्र्यात, गुणों की किस्मों से, गुण-वैचित्र्यात, " तथान्यत्रानुमीयीते । अन्यत्र मतलब है अगले जन्म या अगला ग्रह या अगला कुछ भी । सब कुछ नियंत्रित है । त्रैगुण्य-विशया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन (भ.गी. २.४५)। कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि "पूरी भौतिक दुनिया इन तीन गुणों के द्वारा नियंत्रित की जा रही है। " गुण-वैचित्र्यात । "इसलिए तुम निस्त्रैगुण्यो बनो, जहां यह तीन गुण काम नहीं कर सकते सकते । निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन । तो तुम इन तीन गुणों की कार्रवाई कैसे रोक सकते हो? यह भी भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है कि :
- माम् च अव्यभिचारिणी
- भक्ति योगेन य: सेवते
- स गुणान समतीत्यैतान
- ब्रह्म-भूयाय कल्पते
- (भ.गी. १४.२६)
अगर तुम लगातार शुद्ध भक्ति सेवा में अपने आप को संलग्न रखो, बिना किसी रुकावट के, तो तुम हमेशा दिव्यता में रहते हो, इन तीनों गुणों से परे । तो हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन भक्त को तीनों गुणों से ऊपर रखने के लिए है । जैसे समुद्र की तरह, अगर तुम समुद्र में गिर गए, तो यह बहुत खतरनाक स्थिति है । लेकिन अगर कोई तुम्हे समुद्र के पानी से ऊपर उठाता हैऔर समुद्र के पानी से एक इंच ऊपर रहने में मदद करता है, तो खतरा नहीं है । तुम्हारी जान बच गई ।
तो यह ज़रूरी है, कि गुण-वैचित्र्यात, अगर तुम अपने आप को बचाना चाहते हो जीवन की इन किस्मों से, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी, और जीवन के कई किस्मों को स्वीकारना... जैसे आप कह रहे थे चलते समय कि कैलिफोर्निया में एसे पेड़ हैं, वे पांच हजार साल से जी रहे हैं । यह भी जीवन की एक और किस्म है । लोग कई कई वर्षों के लिए जीचित के लिए कोशिश कर रहे हैं । प्रकृतिक तरीका, यहाँ एक पेड़, पांच हजार साल का है । तो क्या इस तरह का जीवन बहुत लाभदायक है, एक जंगल में पांच हजार साल के लिए खड़ा रहना ? तो कोई भी किस्म जीवन की इस भौतिक दुनिया में अच्छी नहीं है, वह देवता हो, या पेड़ या ये या वो । शिक्षा यही है ।
शिक्षा यही है । तो हमें समझना चाहिए कि एक जीवन कि कोई भी किस्म, या तो देवता या कुत्ता, यहाँ जीवन दुखदाई है । यहां तक कि देवता भी, वे इतने सारे खतरों में पडते हैं, कई बार और वे भगवान की शरण लेते हैं । तो यहाँ तुम हमेशा खतरे में रहोगे । पदम पदम यद विपदाम (श्रीमद भागवतम १०.१४.५८) । इस भौतिक संसार को बिना खतरे का बनाने का प्रयास व्यर्थ है । यह संभव नहीं है । जैसे जीव की किस्में, खतरों की किस्में, आपदाऍ, तो एक के बाद एक , तुम्हे करना होगा ... सबसे अच्छी बात यह है कि, इसलिए, यह व्यवसाय रोकें, भौतिक । यही वैदिक सभ्यता है । पूरी वैदिक सभ्यता इस विचार पर आधारित है कि "यह बकवास व्यापार बंद करो, जन्म की पुनरावृत्ति, मृत्यु, बुढ़ापा ।" इसलिए कृष्ण कहते है, जन्म मृत्यु ज़रा व्याधि दुःख दोषानुदर्शनम (भ.गी. १३.९) | यह ज्ञान है |
क्या ज्ञान, यह तकनीकी ज्ञान, यह ज्ञान? तुम इन बातों को नहीं रोक सकते हो । इसलिए मुख्य काम है इसे रोकें । और क्योंकि वे मूर्ख लोग हैं उन्हे लगता है कि "इन बातों को रोका नहीं जा सकता है।" हमें जन्म और मृत्यु के इस दोहराव के साथ जाना होगा, और प्रत्येक जीवन में हमें अस्तित्व के लिए संघर्ष करना होगा । " यह भौतिक सभ्यता है, अज्ञान, ज्ञान नहीं है । यह ज्ञान भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया जाता है कि "यहाँ समाधान है : जन्म कर्म च मे दिव्यम् यो जानाति तत्वत: त्यक्तवा देहम् पुनर जन्म नैति (भ.गी. ४.९) ।" समस्या है पुनर जन्म, जन्म की पुनरावृत्ति, और अगर तुम इसे रोकना चाहते हो, तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । फिर तुम रोकने में सक्षम हो जाअोगे । जैसे ही तुम कृष्ण को समझोगे ...
कृष्ण को समझना का मतलब है, भले ही तुम आँख बंद करके स्वीकार करो, यह भी फायदेमंद है । कृष्ण कहते हैं कि वह क्या हैं, कि वे परम भगवान हैं । तो तुम उन्हे स्वीकार करो । बस । केवल यह विश्वास रखो कि "कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं ।" यही तुम्हे पर्याप्त रूप से उन्नती देगा । लेकिन एक भौतिकवादी व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है । इसलिए कृष्ण कहते हैं, बहुनाम जन्मनाम अन्ते (भ.गी. ७.१९) "कई जन्मों के प्रयास के बाद," बहुनाम जन्मनाम अन्ते ज्ञानवान माम प्रपद्यन्ते, ज्ञानवान, जो ज्ञानी है, वह अात्म समर्पण करता है कृष्ण को ।" नहीं तो, न माम दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: (भ.गी. ७.१५) "नहीं तो वह एक बदमाश रहता है और पापी गतिविधियों में फसा रहता है, मानव जाति में सबसे निम्न , ज्ञान छिन जाता है ।" न माम प्रपद्यन्ते । " वह कभी अात्मसमर्पण नहीं करता कृष्ण को ।"