HI/Prabhupada 0201 - तुम्हारी मौत को कैसे रोकें
Lecture on CC Madhya-lila 20.102 -- Baltimore, July 7, 1976
तो हम ज्ञान की खोज मे हैं, लेकिन इतनी सारी चीजें हमारे लिए अज्ञात है । इसलिए सनातन गोस्वामी हमें सिखा रहे हैं अपने व्यावहारिक व्यवहार से आध्यात्मिक गुरु के अाश्रय में जाना, और अपना पक्ष रखते हैं कि "मैं इस तरह से पीड़ित हूँ ।" वे मंत्री थे, दुख का कोई सवाल ही नहीं था । वह बहुत अच्छी तरह से स्थित थे । वह उन्होंने पहले से ही समझाया है, कि ग्राम्य-व्यवहारे पंडित। ताई सत्य करी मानि । "तो कई सवाल हैं जिसका मैं जवाब नहीं दे सकता । कोई समाधान नहीं है । फिर भी, लोगों का कहना है कि मैं बहुत पंडित आदमी हूँ -मैं मूर्खता से इसे स्वीकार करता हूँ ।" कोई भी पंडित नहीं है जब तक कि वह गुरु की अाश्रय नहीं लेता है । तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभीगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) |
इसलिए वैदिक आज्ञा यह है कि अगर तुम पंडित बनना चाहते हो, तो गुरु के पास जाअो, प्रामाणिक गुरू, तथाकथित गुरु नहीं ।
- तद विद्धि प्रणिपातेन
- परिप्रश्नेन सेवया
- उपदेक्ष्यन्ति ते
- ज्ञानम ज्ञानिनस तत्व-दर्शिन:
- (भ.गी. ४.३४)
गुरु का मतलब है जिसने निरपेक्ष सत्य को देखा है । यही गुरु है । तत्त्व-दर्शिन:, तत्त्व का मतलब है निरपेक्ष सत्य, और दर्शिन: जिसने देखा है । तो यह आंदोलन, हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन, इस उद्देश्य के लिए है, सम्पूर्ण सत्य को देखने के लिए, निरपेक्ष सत्य को समझने के लिए, जीवन की समस्याओं का पता करने के लिए, और उनका कैसे समाधान करें । ये बातें हमारा विषय हैं । हमारा विषय भौतिक बातें नहीं है, कि किसी भी तरह से तुम एक गाडी पाअो और एक अच्छा मकान और एक अच्छी पत्नी, तो तुम्हारे सभी समस्याओं का हल हो जाएगा । नहीं । यह समस्याओं का समाधान नहीं है । असली समस्या यह है कि तुम्हारी मौत को कैसे रोकें । यही असली समस्या है । लेकिन क्योंकि यह बहुत कठिन विषय है, कोई भी इसे छूता नहीं है । "ओह, मौत - हम चैन से मर जाएँगे ।" लेकिन कोई भी शांति से मरता नहीं है । अगर मैं एक चाकू लेता हूँ और मैं कहता हूँ, "अब शांति से मर जाअो," (हंसी) पूरा शांतिपूर्ण हालत तुरंत खत्म हो जाएगी । वह रोएगा ।
तो ये बकवास है, अगर कोई कहता है, "मैं शांति से मर जाऊँगा । ", कोई भी शांति से नहीं मरता है । यह संभव नहीं है । इसलिए मृत्यु एक समस्या है । जन्म भी एक समस्या है । कोई भी मां की कोख के भीतर शांतिपूर्ण नहीं है । वह तंग हालत है, वायुरोधी हालत और आजकल मारे जाने का खतरा भी है । तो शांति का कोई सवाल नहीं है, जन्म और मृत्यु । और फिर बुढ़ापा । जैसे कि मैं बूढ़ा आदमी हूँ, तो कई परेशानियों मुझे है । तो बुढ़ापा । और रोग, हर किसी को अनुभव है, सिर दर्द भी बहुत है तुम्हे तकलीफ देने के लिए । असली समस्या यह है : जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । यही कृष्ण द्वारा दिया गया बयान है, कि जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि दुक्ख-दोशानुदर्शनम (भ.गी. १३.९) | अगर तुम बुद्धिमान हो तो तुम्हे जीवन की इन चार समस्याओं को बहुत ही गंभीरता से लेना चाहिए ।
इसलिए उन्हे ज्ञान नहीं है, इसलिए वे इन सवालों से बचते हैं । लेकिन हमें बहुत गंभीरता से इन सवालों को लेना चाहिए । यही अन्य आंदोलन और कृष्ण भावनामृत आंदोलन के बीच का अंतर है । हमारा आंदोलन है इन समस्याओं का हल कैसे निकाले ।