HI/Prabhupada 0202 - एक उपदेशक से बेहतर कौन प्यार कर सकता है
Morning Walk -- May 17, 1975, Perth
अमोघ: शुतुर मुर्ग अपने सिर को चिपा के रखते हैं जमीन में एक छेद के अंदर ।
प्रभुपाद: हाँ ।
परमहंस: लेकिन कुछ प्रगति होनी चाहिए क्योंकि इतने सारे लोग हरे कृष्ण आंदोलन में शामिल हो रहे हैं ।
प्रभुपाद: वे वास्तविक उन्नति कर रहे हैं । भव-महा दावाग्नि-निर्वापणम । उनकी यह भौतिक चिंताऍ खतम हो जाएगी । वे उन्नति कर रहे हैं । चेतो-दर्पण-मार्जनम् भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणम (चैतन्य चरितामृत अन्त्य २०.१२) | हरे कृष्ण का जप करके उनका मैला ह्रदय शुद्ध हो जाएगा, अौर जैसे हि यह पूरी तरह से शुद्ध हो जाएगा, भौतिक अस्तित्व की समस्याऍ खत्म हो जाएँगी । कोई चिंता नहीं ।
परमहंस: वे खुश लग रहे हैं, लेकिन ... श्री कृष्ण के भक्त खुश लगते हैं, लेकिन वे ज्यादा व्यावहारिक काम नहीं करते । वे हमेशा गाते हैं और नाचते हैं और कुछ पैसे माँगते हैं । लेकिन वे कोई भी व्यावहारिक काम नहीं करते । हम इतने व्यावहारिक काम कर रहे हैं ।
प्रभुपाद: नाचना काम नहीं है? और किताब लिखना काम नहीं है? किताबें बेचना काम नहीं है? फिर काम क्या है? हम्म? बंदर की तरह कूदना? हाँ? यही काम है?
अमोघ: लेकिन हम लोगों को मदद कर रहे हैं व्यावहारिक रूप से अस्पताल में या शराबियों .......
प्रभुपाद: नहीं, क्या ... तुम कैसे मदद कर रहे हो? तो तुम्हे क्या लगता है कि जो अस्पताल में जाता है वह मरेगा नहीं ? और तुम कैसे मदद कर रहे हो? तुम सोच रहे हो कि तुम मदद कर रहे हो ।
अमोघ: लेकिन वह लंबे समय तक जीवित रहते हैं ।
प्रभुपाद: यह एक और मूर्खता है । तुम कब तक जीवित रहोगे? मौत का समय जब आता है, तो तुम एक पल भी ज्यादा नहीं रह पाअोगे । जब एक आदमी मरने जा रहा हो, उसका जीवन समाप्त हो गया है । क्या तुम्हारी इंजेक्शन, दवा, एक मिनट का जीवन अधिक दे सकती है? एसी कोई भी दवा है?
अमोघ: हाँ, लगता तो है ।
प्रभुपाद: नहीं ..
अमोघ: कभी कभी जब वे दवा देते हैं तो वे ज्यादा जीवित रहते हैं ।
परमहंस: वे कहते हैं कि जब वे हृदय प्रत्यारोपण में पुरी तरह सक्षम हो जाऍगे तो वे लोगाों को जीवित ...
प्रभुपाद: वे कह सकते हैं, वे ... क्योंकि हम उन्हे दुष्ट मानते हैं , मैं उनके शब्दों का क्यों स्वीकार करू? हम्हे उन्हें दुष्ट मानना चाहिए, बस । (कोई पृष्ठभूमि में ज़ोर से चीखता है, प्रभुपाद उन पर चिल्लाते हैं) (हंसी) एक और बदमाश | वह जीवन का आनंद ले रहा है । तो दुनिया दुष्टों से भरी है । हमें बहुत ज्यादा निराशावादी होना चाहिए, आशावादी नहीं इस दुनिया के लिए । जब तक तुम निराशावादी नहीं हो जाते हो, तुम तब तक भगवद धाम वापस नहीं जा पाअोगे । अगर तुम्हे इस दुनिया से ज़रा भी आकर्षण है - "यह अच्छा है" - तो तुम्हे यहाँ रहना होगा । हां । कृष्ण इतने सख्त हैं ।
परमहंस: लेकिन ईशु ने कहा: "अपने भाई को अपने जैसा ही प्यार करो । तो अगर हम अपने भाई से प्यार करते हैं ...
प्रभुपाद: हम प्यार कर रहे हैं । हम कृष्ण भावनामृत दे रहे हैं । प्यार यही है, असली प्यार । हम उसे शाश्वत और आनंदमय जीवन दे रहे हैं । अगर हम उनसे प्यार नहीं करते, तो हम क्यों इतनी परेशानी उठा रहे हैं? उपदेशक को लोगों से प्यार करना ही चाहिए । वरना वह क्यों ले रहा है? वह घर पर खुद के लिए यह कर सकता है । क्यों वह इतनी परेशानी उठा रहा है? मैं यहां क्यों आया हूँ अस्सी साल कि उम्र में अगर मुझे प्यार नहीं है? तो एक उपदेशक से बेहतर कौन प्यार कर सकता है? वह पशुओं को भी प्यार करते हैं । इसलिए वे प्रचार कर रहे हैं "मांस मत खाअो ।" तुम जानवरों को प्यार करते हो, दुष्ट ? वे खा रहे हैं, और अपने देश से प्यार करते हैं, बस । कोई भी प्यार नहीं करता है । यह केवल इन्द्रिय संतुष्टि है । अगर कोई प्यार करता है, तो वह कृष्ण के प्रति जागरूक है । सभी दुष्ट हैं । वे अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के पीछे हैं, और वे एक साइनबोर्ड डालते हैं, "मैं हर किसी को प्यार करता हूँ ।" यह उनका काम है । और मूर्ख स्वीकार कर रहे हैं, "ओह, यह आदमी बहुत परोपकारी है ।" वह किसी भी आदमी को प्यार नहीं करता । वह केवल इंद्रियों से प्यार करता है । बस । इंद्रियों का दास, बस ।