HI/Prabhupada 0283 - हमारा कार्यक्रम है प्यार करना
Lecture -- Seattle, September 30, 1968
प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तक अहम् भजामि ।
भक्त: गोविन्दम आदि-पुरुषम तक अहम् भजामि ।
प्रभुपाद: तो हमारा कार्यक्रम है प्रेम और भक्ति के साथ पूजा करना गोविंद की, मूल व्यक्ति की । गोविन्दम-आदि पुरुषम । यह कृष्ण भावनामृत है । हम लोगों को सिखा रहे हैं कृष्ण से प्रेम करना, बस । हमारा कार्यक्रम है प्रेम करना, उचित जगह में तुम्हारे प्रेम को रखना । यही हमारा कार्यक्रम है । हर कोई प्रेम करना चाहता है, लेकिन निराश है क्योंकि उसका प्रेम गलत जगह पर है । लोगों को यह समझ में नहीं आता । उन्हें सिखाया जा रहा है, "सबसे पहले, तुम अपने शरीर से प्रेम करो ।" फिर थोड़ा बढ़ा दिया, "तुम अपने पिता और माता से प्रेम करो ।" फिर "अपने भाई और बहन से प्रेम करो ।" फिर "अपने समाज से प्रेम, अपने देश से प्रेम करो, पूरे मानव समाज से प्रेम करो, मानवता ।" लेकिन ये सब विस्तारित प्रेम, तथाकथित-प्रेम, तुम्हे संतुष्टि नहीं देंगा जब तक तुम कृष्ण को प्रेम करने के स्तर तक न पहुँचो । फिर तुम संतुष्ट हो जाअोगे ।
जैसे जब तुम पानी के किसी जलाशय में एक पत्थर फेंकते हो, एक झील पर, तुरंत एक चक्र वहाँ शुरू होता है । चक्र फैलता है, और विस्तार, विस्तार, विस्तार, जब वह चक्र किनारे को छू लेता है, यह बंद हो जाता है । जब तक वह चक्र छोर या पानी के जलाशय के तट तक नहीं पहुँच जाता है, यह बढ़ता चला जाता है । इसलिए हमें बढाना होगा, बढाना । बढाने का मतलब दो तरीके हैं । अगर तुम अभ्यास करते हो, "मैं अपने समाज से प्यार करता हूँ, मैं अपने मानव जाति से प्यार करता हूँ, मैं अपने देश से प्यार हूँ," फिर, जीवों से, इस तरह......
लेकिन अगर तुम सीधे कृष्ण के सम्पर्क में अाते हो, तो सब कुछ है । यह बहुत अच्छा है । क्योंकि कृष्ण का मतलब है सर्व-आकर्षक, सब कुछ शामिल है । क्यों सब कुछ? कृष्ण केंद्र है । जैसे एक परिवार में, अगर तुम अपने पिता से प्रेम करते हो, तो तुम अपने भाइयों से, बहनों से, अपने पिता के नौकर से, प्रेम करते हो, अपने पिता के घर से, अपने पिता की पत्नी से, अर्थात्, तुम्हारी माँ, हर किसी से । केंद्र बिंदु पिता हैं । यह कच्चा उदाहरण है ।
इसी तरह अगर तुम कृष्ण से प्रेम करो, तो तुम्हारे प्रेम का हर जगह का विस्तार हो जाएगा । एक अन्य उदाहरण है, जैसे अगर तुम एक पेड़ से प्यार करते हो, पत्ते, फूल, शाखाओं, तने, टहनियाँ, सब कुछ । तुम बस पेड़ की जड़ पर पानी डालो, फिर तुम्हारा प्रेम उस पेड के लिए स्वचालित है । अगर तुम अपने देशवासियों से प्रेम करते हो, अगर तुम अपने देशवासियों को शिक्षित होते देखना चाहते हो, आर्थिक उन्नत और मानसिक, शारीरिक, तो तुम क्या करोगे? तुम सरकार को कर का भुगतान करोगे । तुम अपनी आय को छिपाअोगे नहीं । तुम बस केंद्र सरकार को कर का भुगतान करोगे, और यह शिक्षा विभाग को वितरित किया जाएगा, रक्षा विभाग को, स्वच्छता विभाग को, हर जगह ।
इसलिए ... ये कच्चे उदाहरण हैं, लेकिन वास्तव में, अगर तुम सब से प्रेम करना चाहते हो तो तुम्हे कृष्ण को प्रेम करने के लिए प्रयास करना होगा। तुम निराश नहीं होगे क्योंकि यह पूर्ण है । जब तुम्हारा प्रेम पूर्ण है, तो तुम निराश नहीं होगे । जैसे पूरा खाना खाना । अगर तुम पूरी तरह से भोजन से संतुष्ट हो, तो तुम कहोगे "मैं संतुष्ट हूं । मुझे अौर अधिक नहीं चाहिए ।"