HI/Prabhupada 0284 - मेरा स्वभाव अधीनस्थ होना है



Lecture -- Seattle, September 30, 1968

तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन बहुत सरल है । बहुत आसान है । यह विशेष रूप से भगवान चैतन्य महाप्रभु द्वारा उद्घाटित किया गया है । हालांकि यह बहुत पुराना है, वैदिक शास्त्र में, लेकिन फिर भी, ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो, यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन उस समय से है जब भगवान कृष्ण पांच हजार साल पहले इस ग्रह की सतह पर अवतरित हुए, और बाद में, भगवान चैतन्य, पांच सौ साल पहले, उन्होंने आंदोलन का विस्तार किया, कृष्ण भावनामृत । उनका मिशन, भगवान चैतन्य का मिशन, अाराध्यो भगवान व्रजेश तनय: | अगर तुम प्यार करना चाहते हो, या तुम अधीनस्थ होना चाहते हो ... हर कोई अधीनस्थ है । यह मिथ्या है ।

हर कोई स्वतंत्र होना चाहता है, लेकिन कोई भी स्वतंत्र नहीं है । हर कोई अधीनस्थ है । कोई भी नहीं कह सकता है कि "मैं स्वतंत्र हूँ ।" क्या तुम कह सकते हो, तुम में से कोई भी, कि तुम स्वतंत्र हो? कोई है? नहीं । हर कोई अधीनस्थ है, खुशी से । बल द्वारा नहीं । हर कोई अधीनस्थ हो जाता है । एक लड़की एक लड़के से कहती है, "मैं तुम्हारे अधीन रहना चाहती हूँ," स्वेच्छा से । इसी प्रकार एक लड़का एक लड़की से कहते है "मैं तुम्हारे अधीनस्थ रहना चाहता हूँ ।" क्यों? वह मेरी प्रकृति है । मैं अधीनस्थ होना चाहता हूँ क्योंकि मेरा स्वभाव अधीनस्थ होना है । लेकिन मैं नहीं जानता । मैं पसंद करता हूँ ... मैं इस अधीनता को अस्वीकार करता हूँ, मैं एक और अधीनता स्वीकार करता हूँ । लेकिन अधीनता तो है ।

जैसे एक कार्यकर्ता की तरह । वह यहां काम करता है । उसे कुछ बेहतर मजदूरी दूसरी जगह पर मिलती है, वह वहाँ चला जाता है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह स्वतंत्र हो जाता है, वह अधीनस्थ है । तो भगवान चैतन्य सिखाते हैं कि अगर तुम अधीनस्थ होना चाहते हो या अगर तुम किसी की पूजा करना चाहते हो ... कोन पूजा करता है किसी की ? जब तक कि तुम्हे नहीं लगता है कि कोई तुम से बड़ा है, तुम क्यों पूजा करोगे ? मैं अपने मालिक की पूजा करता हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि वह मुझ से बडा है । वह मुझे वेतन, वेतन, मासिक छह सौ डॉलर देता है । इसलिए मुझे उसकी पूजा करनी पडेगी, मुझे उसे खुश करना होगा ।

तो चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि तुम कृष्ण के अधीनस्थ रहो । अाराध्यो भगवान व्रजेश तनय: | अगर तुम पूजा करना चाहते हो, कृष्ण की पूजा । और अगला, तद धामम वृन्दावनम । अगर तुम किसी की पूजा करना चाहते हो, फिर कृष्ण को प्यार करो या कृष्ण की पूजा करो या, उनके स्थान वृन्दावन की । क्योंकि हर कोई किसी जगह को प्यार करना चाहता है । यह अब राष्ट्रवाद है - कोई देश । कोई कहता है "मैं इस अमेरिकी जमीन से प्यार करता हूँ ।" कोई कहता है कि "मैं इस चीनी भूमि से प्यार करता हूँ ।" कोई कहता है कि "मैं रूसी भूमि से प्यार करता हूँ ।" तो हर कोई किसी ज़मीन से प्यार करना चाहता है । भौम्य इज्य धी: । भौम्य इज्य धी: । लोग स्वाभाविक रूप से कुछ भौतिक ज़मीन से प्यार करने के लिए इच्छुक हैं । आम तौर पर, जहां वह पैदा हुआ है, वह उससे प्यार करने का प्रयास करता है ।

चैतन्य महाप्रभु नें कहा कि " क्योंकि तुम किसी व्यक्ति को प्यार करने के लिए इच्छुक हो, तुम कृष्ण से प्यार करो । क्योंकि अगर तुम किसी जमीन से प्यार करना चाहते हो तुम वृन्दावन से प्यार करो । " अाराध्य भगवान व्रजेश तनय: तद धाम वृन्दावनम । लेकिन अगर कोई कहता है कि " कैसे कृष्ण से प्यार करें ? मैं कृष्ण को नहीं देख सकता । कैसे कृष्ण को प्यार करूँ ?" फिर चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, रम्या काचिद उपासना व्रजवधु वर्गेण या कल्पिता । अगर तुम जानना चाहते हो, तुम सीखना चाहते हो, कृष्ण की पूजा करने की प्रक्रिया, या कृष्ण को प्यार करने की, बस गोपियों के पदचिह्नों का अनुसरन करने की कोशिश करो । गोपि ।

गोपि, उनका प्रेम - उच्चतम पूर्ण प्रेम । रम्या काचिद उपासना । दुनिया में प्यार या पूजा के विभिन्न प्रकार होते हैं । शुरुआत है, "हे भगवान, हमें हमारी रोज़ की रोटी दो ।" यह शुरुआत है । जब हमें, मेरे कहने का मतलब है, भगवान से प्यार करना सिखाया जाता है, हमें निर्देश दिया जाता है: "तुम मंदिर जाअो, चर्च जाअो, और ईश्वर से प्रार्थना करो अपनी आवश्यकताओं के लिए, अपनी शिकायतों के लिए ।" यह शुरुआत है । लेकिन यह शुद्ध प्रेम नहीं है । शुद्ध प्रेम, शुद्ध प्रेम की पूर्णता, गोपियों के बीच में पाई जा सकती है । यही उदाहरण है । कैसे? वे कृष्ण से प्रेम कैसे करती हैं ? वे कृष्ण से प्रेम करती हैं । कृष्ण गए ... कृष्ण एक चरवाहे के लड़के थे, और अपने दोस्तों के साथ, अन्य चरवाहे लड़के, वे अपनी गायों के साथ चराई जमीन में जाते थे पूरे दिन ।

यही व्यवस्था थी । क्योंकि उस समय लोग भूमि और गायों से संतुष्ट थे, बस । यही सभी आर्थिक समस्याओं के समाधान का साधन है । वे औद्योगिक नहीं थे, वे किसी के नौकर नहीं थे । बस जमीन से उत्पादन निकालो और गायों से दूध लो, पूरे खाद्य समस्या का हल यही है ।