HI/Prabhupada 0363 - कोई तुम्हारा दोस्त होगा, और कोई तुम्हारा दुश्मन होगा
Lecture on SB 7.9.17 -- Mayapur, February 24, 1976
- यस्मात प्रिय अप्रिय-वियोग-संयोग-जन्म
- शोकाग्नि सकल-योनिषु दह्यमान:
- दुखौषधम तद अपि दुखम् अतद-धियाहम
- भूमन भ्रमामि वद मे तव दास्य-योगम
- (श्रीमद भागवतम् ७.९.१७) ।
प्रह्लाद महाराज, पिछले श्लोक में, उन्होंने कहा, "मुझे बहुत ज्यादा डर लग रहा है इस भौतिक अस्तित्व में, दुखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) । अब वे इस तरह की पीड़ा के विभिन्न चरण क्या हैं इसका वर्णन कर रहे हैं, यस्मात्, इस भौतिक अस्तित्व के कारण । जब हम इस भौतिक दुनिया में आते हैं तो कई व्यक्तियों के साथ संबंध बनता है । भूताप्त-पितृणाम, नृणाम् । जैसे ही हम माँ की कोख से निकलते हैं, तो कई रिश्तेदार, दोस्त, बनते हैं, भूत-अाप्त, पितृ, भूताप्त, ऋषि, पितृणाम, नृणाम । हम जुड़ जाते हैं । लेकिन उनमें से कुछ प्रिय होते हैं और उनमें से कुछ बहुत अनुकूल नहीं होते हैं - दुश्मन । तो यस्मात् प्रिय अप्रिय-वियोग-संयोग-जन्म । वियोग-संयोग-जन्म ।
जैसे ही एक बच्चा पैदा होता है, वह अपने पूर्व जीवन से अलग हो जाता है, और वह एक और नए जीवन के साथ जुड़ जाता है, नया शरीर, वियोग-संयोग । शायद पहेले का शरीर बहुत भाता था, और यह शरीर बहुत भाता नहीं है, तुच्छ । यह संभव है । देहान्तर प्राप्ति: (भ.गी. २.१३) । यह नहीं है कि तुम्हें हमेशा बहुत भाता शरीर मिलेगा । लेकिन माया इतनी मज़बूत है, यहाँ तक कि अगर हमें सुअर का शरीर भी मिलता है, हम सोचते हैं, "यह बहुत अच्छा है ।" इसे प्रक्षेपात्मिक-शक्ति कहा जाता है । माया को विशेष रूप से दो शक्ति मिली है : अावरणात्मिक अौर प्रक्षेपात्मिक । आम तौर पर माया हमें भ्रम में रखती है, और जब कोई थोड़ा-सा प्रबुद्ध होता है, माया के चंगुल से बाहर निकलना चाहता है, माया की एक और शक्ति है, कौन है वो प्रक्षेपात्मिक । मान लीजिए कोई सोचता है, "अब मैं कृष्ण के प्रति जागरूक हो जाऊँगा ।
यह साधारण भौतिक चेतना इतना परेशान करती है । मुझे कृष्ण के प्रति सचेत होना है । " तो माया कहेगी, "तुम इस के साथ क्या करोगे ? बेहतर है कि भौतिक चेतना में रहो ? इसे प्रक्षेपात्मिक-शक्ति कहा जाता है । इसलिए कभी-कभी कोई आदमी हमारी संस्था में आता है और कुछ ही दिन रहने के बाद, वह चला जाता है । यह प्रक्षेपात है, फेंक देना । जब तक वह बहुत गंभीर नहीं है, वह हमारे साथ नहीं रह सकता, वह निकाल दिया जाएगा । तो प्रह्लाद महाराज कहते हैं कि इन दो स्थितियों में, कोई भाता है, और कोई नहीं भाता है, यह सदा चल रहा है । एेसा नहीं कि,"अगर मैं अपने इस शरीर को बदलता हूँ, तो यह प्रक्रिया भी बंद हो जाएगी ।" नहीं । तो जब तक तुम्हारे पास इस भौतिक दुनिया में यह शरीर है, ये दो प्रक्रियाएँ होंगी । कोई तुम्हारा दोस्त होगा, और कोई तुम्हारा दुश्मन होगा । योग-संयोग-जन्म ।
तो जैसे ही दुश्मन बनते हैं, विलाप होता है, चिंता । शोकाग्नि । इस तरह का विलाप बिलकुल विलाप की आग की तरह है । शोकाग्नि । शोकाग्नि सकल-योनिषु । अगर तुम्हें लगता है कि केवल मानव समाज में ऐसी बातें होती हैं - कोई दुश्मन है, कोई दोस्त है - नहीं । किसी भी समाज में, किसी भी योनि ... तुमने चिड़ियों में भी देखा होगा, पक्षी समाज, वे भी लड़ रहे हैं । तुमने यह देखा है । वे भी मिल रहे हैं, फिर लड़ते हैं । तो या तो पक्षियों को या कुत्तों को ले लो । वे लड़ने के लिए मशहूर हैं । तो यह चल रहा है: कोई बहुत प्रिय, कोई विरोधी और उन दोनों के बीच लड़ाई । सकल-योनिषु दह्यमान: । तुम एक समाज को अनदेखा करके दूसरे समाज में जा नहीं सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए असहमति की आग, दुश्मनी और दोस्ती, यह चलता रहेगा, न केवल यहाँ, स्वर्गीय ग्रह में भी । स्वर्गीय ग्रह में देवता और असुरों के बीच लड़ाई होती है । असुरा देवता से जलते हैं, और देवता भी असुरों से जलते हैं । हर जगह। राजा इंद्र भी, उनके दुश्मन हैं हालांकि वे बहुत भव्य हैं । हम स्वर्गीय ग्रह पर जाना चाहते हैं, उस वातावरण की संपन्नता का आनंद लेने के लिए, लेकिन वहाँ भी वही बात है ।