HI/Prabhupada 0373 - भजहू रे मन का तात्पर्य
Purport to Bhajahu Re Mana -- The Cooperation of Our Mind
भजहू रे मन, श्री-नंद-नंदन, अभय चरणारविन्द रे । यह गोविंद दास द्वारा गाया एक गीत है, कवि गोविन्द दास । वे अपने मन को संबोधित कर रहे हैं, क्योंकि, अंत में तो, हमें अपने मन के सहयोग के साथ काम करना पडता है । अगर हमारा मन परेशान है, अगर हमारा मन हमें कुछ और चुनने के लिए खींच रहा है, तो तो एक प्रकार के कार्य में ध्यान केंद्रित करना बहुत मुश्किल है । यह व्यावहारिक है । इसलिए योग प्रणाली का मतलब है मन को नियंत्रित करना । यह मन को नियंत्रित करने की एक यांत्रिक प्रक्रिया है । क्योंकि मन को नियंत्रित किए बिना, मन परेशान न हुए बिना, कोई भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकता है । लेकिन हमारी वैष्णव प्रणाली है सीधे भक्ति सेवा में मन को संलग्न करना, तािकि यह भक्ति सेवा के दायरे से बाहर नहीं जा सके । यही हमारी प्रणाली है । और वह व्यावहारिक है । अगर हम कृष्ण के चरण कमल पर हमारा मन केन्द्रित करते हैं, अर्चनम - श्रवणम कीर्तनम विष्णो: स्मरणम पाद-सेवनम (श्रीमद भागवतम ७.५.२३) ।
पाद सेवनम, तो स्वतः मन नियंत्रित हो जाता है । योगी मन को नियंत्रित करने के लिए कृत्रिम रूप से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे असफल हो रहे हैं । कई उदाहरण हैं, बड़े योगी असफल होते हैं । तो कुछ भी कृत्रिम रूप से किया जाना, उसकी पूर्णता संभव नहीं है । इसलिए मन को नियंत्रित करने की प्रणाली है अपने मन को बेहतर काम में संलग्न करना, फिर मन निम्न शक्ति से आकर्षित नहीं होगा । यही विज्ञान या राज़ है सफलता का । तो गोविंद दास कृष्ण के चरण कमल पर मन को टिकाने की कोशिश कर रहे हैं, जो अभय-चरण के रूप में जाने जाते हैं । अभय का मतलब ""जहाँ कोई डर नहीं है ।" जैसे हम एक विश्वसनीय बैंक में अपना पैसा जमा करते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि नुकसान का कोई डर नहीं है । यही अभय कहा जाता है, "बिना किसी डर के", और चरण का मतलब है "चरण कमल । " तो गोविंद दास अपने मन के सलाह दे रहे हैं, हू रे मन, "मेरे प्यारे मन " हू रे मन को संबोधित कर रहे हैं । भज हू रे मन । भज । भज का मतलब है "भक्ति सेवा में लगे रहना ।"
भज हू रे मन श्री-नंद-नंदन, "कृष्ण की सेवा में, नंद के बेटे ।" कई, कई कृष्ण हैं, लेकिन हमें मतलब है विशेष कृष्ण से जो नंद महाराज के बेटे और वासुदेव के पुत्र के रूप में अाए । इसलिए वे विशेष रूप से कहते हैं ... जैसे हम एक व्यक्ति को पहचानते हैं, उसके नाम, उसके पिता के नाम, तो यह सही तरह से पहचाना जाता है । तो, वे कहते हैं, श्री-नंद-नंदन, भज हु रे मन श्री नंद-नंदन अभय-चरणारविन्द रे, "उनके चरण कमल की शरण लेने में सुरक्षा है ।" कई श्लोक हैं इसके बारे में भागवतम में : समाश्रिता ये पाद-पल्लव प्रलव महत पदम पुण्य यशो मुरारे: | महत-पदम, "श्री कृष्ण के चरण कमलों के तहत, पूरी भौतिक सृष्टि स्थित है ।" तो अगर एक विशाल निर्माण स्थित हो सकता है, तो अगर मैं तुच्छ छोटा जीव हूँ, अगर मैं चरण कमल का अाश्रय लेता हूँ, जो निडर है, कृष्ण के, फिर मेरी सुरक्षा की सुनिश्चित है ।
भजहू रे मन, श्री-नंद-नंदन, अभय चरणारविन्द रे । दुर्लभ मानव-जनम सत-संगे तरहो ए भव सिंधु रे । दुर्लभ "बहुत मुश्किल से मानव जीवन का रूप मिल गया ।" दुर्लभ मानव-जनम | तो कृष्ण के चरण कमलों पर हमारे मन को टिकाने के लिए, यह आवश्यक है कि हमें भक्तों के संग में जीना चाहिए । दुर्लभ मानव-जनम सत-संगे । सत-संग का मतलब है" भक्तो का संग ।" अगर हम भक्तों के संग में नहीं रहते हैं, अगर हम स्वतंत्र रूप से श्री कृष्ण के चरण कमलों पर हमारे मन को टिकाने की कोशिश करते हैं, तो यह संभव नहीं होगा । यह विफल होगा । इसलिए वे कहते हैं, सत-संगे, "भक्तों के संग में ।"
तरहो ए भव सिंधु रे, "जीवन का वास्तविक उद्देश्य अज्ञान के सागर को पार करना है ।" तो अगर हम भक्तों के संग में श्री कृष्ण के चरण कमलों में हमारे मन को टिकाते हैं, तो फिर हम बहुत आसानी से अज्ञान के समुद्र को पार कर सकते हैं, भौतिक अस्तित्व के । फिर, मेरा वर्तमान कर्तव्य क्या है? अब मेरा वर्तमान कर्तव्य है: सीत अातप बात बरिशण, ए दिन जामिनी जागी रे । मेरा भौतिक काम है कि, " मैं कड़ाके की ठंड की परवाह नहीं करता, मैं भीषण गर्मी की परवाह नहीं करता, मैं रात में सोने की परवाह नहीं करता, मैं पूरे दिन और रात कठिन काम कर रहा हूँ ।"
सीत अातप बात बरिशण ए दिन जामिनी जागी रे । और किस लिए ? कृपण, बिफले सेविनु कृपण दुर्जन, " कृपण दुर्जन की सेवा के लिए ।" कृपण दुर्जन का मतलब है बाहरी लोग । तथाकथित भौतिक समाज, दोस्ती, प्यार, अादि, वे वास्तव में बाहरी लोग हैं । वे मेरे जीवन को वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति नहीं दे सकते हैं । लेकिन हम समाज, दोस्ती, या प्यार, राष्ट्रवाद, समाजवाद, कई, की सेवा में लगे हुए हैं । हमारे कार्य विभिन्न हैं, लेकिन वह बिफले हैं ।
बिफले का मतलब है "किसी भी परिणाम के बिना ।" परिणाम यह है कि मैं मानसिकता का एक निश्चित प्रकार बनाता हूँ, तथाकथित देश, समाज, परिवार, की रक्षा के लिए, और मृत्यु के समय मुझे अपनी मानसिकता के अनुसार एक शरीर को स्वीकार करना होगा । तो लोग इतने घिनौने साधन स्वीकार कर रहे हैं समाज, दोस्ती और प्यार के इस कारोबार को जारी रखने के लिए, तथाकथित । परिणाम यह है कि वह मानसिकता का एक निश्चित प्रकार विकसित कर रहा है जो मानव नहीं है, और परिणाम यह है कि अगले जन्म में उसे अपने उस मानसिकता के अनुसार एक शरीर को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा । इसलिए कृपण दुर्जन । कृपण का मतलब है, "कंजूस । " वे मुझे कोई भी बुद्धिमत्ता नहीं देंगे, मेरे जीवन की वास्तविक आवश्यकता का कोई भी ज्ञान, लेकिन फिर भी हम ऐसे दुर्जन की सेवा में लगे हुए हैं, "बाहरी।"
बिफले सेविनु कृपण दुर्जन, चपल सुख लब लागे रे, और थोडी सी खुशी है । अन्यथा, कैसे एक आदमी इतना मुश्किल से दिन और रात काम कर सकता है । खुशी है यौन आनंद, चपल, " चंचल | " विद्यापति गाते हैं, ततल सैकते वरि बिंदु-सम, "कि यह खुशी सिर्फ रेगिस्तान में पानी की एक बूंद की तरह है ।" रेगिस्तान को पानी की आवश्यकता है, लेकिन अगर तुम थोड़ा पानी लो और उस पर छिड़को, "अब पानी लेो," तो उस पानी का मूल्य क्या है? इसी तरह, हम उत्कंठित हैं, शाश्वत सुख के पीछे, ये समाज, दोस्ती और प्यार हमें क्या देंगे ? इसलिए हम केवल हमारा समय बर्बाद कर रहे हैं खुशी पाने के मामले में जीवन के इस तथाकथित भौतिकवादी रास्ते से, समाज, दोस्ती अादि को बनाए रखने के लिए, बस बर्बाद । बिफले । बिफले का मतलब है "किसी भी अच्छे परिणाम के बिना ।"
बिफले सेविनु कृपण दुर्जन, चपल सुख लब लागी रे । "कोई बात नहीं, मैं व्यक्तिगत रूप से आनंद लूँगा । मुझे युवा जीवन मिला है । मैं पैसे कमा सकता हूँ और मैं अपने परिवार की परवाह नहीं करता ।" वास्तव में यह अब वर्तमान समय में हो रहा है । कोई भी परिवार की परवाह नहीं करता है, लेकिन वह केवल खुद को बनाए रखने के लिए व्यस्त है, अपने युवा जीवन का उपयोग करने के लिए और एसी कई चीजें । तो ... गोविंद दास, कवि सलाह दे रहे हैं, "मेरे प्यारे मन, मैं स्वीकार करता हूँ कि अब तुमको युवा जीवन मिला है, तुम आनंद ले सकते हो ।"
इसलिए, तुम कहते हो, ए धन यौबन पुत्र परिजन, इथे कि अाछे परतीति रे, "यह धन का संचय: पैसे कमाना; और यह युवा जीवन: आनंद लेना ।" ए धन यौबन पुत्र परिजन, और समाज से, दोस्ती और प्यार, तुम्हें क्या लगता है, कोई भी वास्तविक सुख, या दिव्य सुख है? इथे कि अाछे परतीति रे । "यह कमल के पत्ते पर पानी की तरह है ।" कमल-दल-जल, जीवन तलमल । "यह, पानी का यह अस्तित्व अस्थिर है, किसी भी क्षण गिर सकता है ।"
दरअसल, हमारा यह युवा भोग या पैसा बनाने का कारोबार, किसी भी क्षण में यह समाप्त हो सकता है । तो वास्तव में तुम विश्वास नहीं कर सकते हो, या उस तरह के सुख में तुम अपना विश्वास नहीं रख सकते हो । यह अच्छा नहीं है क्योंकि किसी भी क्षण में यह समाप्त हो सकता है । ये लोग, गगनचुंबी इमारत बनाने में लगे हुए हैं, और बैंक बैलेंस, और मोटरकार बनाने में, और कई सारी चीजों का वे आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे भूल रहे हैं कि यह किसी भी पल समाप्त हो सकता है । किसी भी पल ।
तो यह कमल-दल-जल की तरह है "कमल के पत्ते पर पानी रखना ।" यह खड़ा नहीं रहता है, झुका रहता है, नीचे गिर सकता है, किसी भी क्षण । यह उदाहरण बहुत अच्छा है । इसलिए वे सलाह दे रहे हैं, श्रवण कीर्तन, वे मन को निर्देश दे रहे हैं कि, "यह मत करो, यह मत करो," इतनी सारी नकारात्मक बातें । तो अगला सवाल होगा, तो वास्तव में, मन गोविंद दास से पूछ सकता है, " वास्तव में तुम क्या करना चाहते हो ? तुम इन सभी भौतिक गतिविधीयों को नकार रहे हो, यह ठीक है, तो फिर तुम्हारा सकारात्मक प्रस्ताव क्या है? " वे कहते हैं " हां, मेरा सकारात्मक प्रस्ताव यह है : श्रवण कीर्तन स्मरण वंदन, पाद सेवन दास्य रे, पूजन सखी जन अात्म निवेदन, गोविन्द दास अभिलाष रे ।"
"मेरे प्रिय मन, मेरी इच्छा है कि तुम कृपया मेरी मदद करो, इस अभया-चरणारविन्द, कृष्ण, के बारे में सुनने में, श्रवण । और मुझे उनके गौरव के बारे में जप करने दो, श्रवण कीर्तन । मुझे याद करने दो, मुझे उनके चरणकमलों की सेवा करने दो, मुझे उनके साथ दोस्ती करने दो । प्रदान, मुझे उन्हे प्रदान करने दो जो कुछ भी मेरा है । ये मेरी इच्छाऍ है । अगर तुम कृपया मेरे साथ सहयोग करोगे, और फिर मैं यह कर सकता हूँ । " तो यह एक बहुत शिक्षाप्रद गीत है, मानव जीवन के मिशन का सार है, और जो कोई भी इस सिद्धांत का पालन करता हैं, वह वास्तव में दिव्य रूप से सुखी हो जाएगा ।