HI/Prabhupada 0372 - अनादि कर्म फले का तात्पर्य
Anadi Karama Phale and Purport - Los Angeles
अनादि कर्म फले । अनादि कर्म फले पोरि भवार्णव जले तरिबारे ना देखि उपाय । यह भक्तिवोनोद ठाकुर द्वारा गाया गया एक गीत है, बद्ध आत्मा की तस्वीर का चित्रण करते हुए । यह यहां कहा गया है, भक्तिविनोद ठाकुर बोल रहे हैं, ख़ुद को साधारण इंसान के रूप में मान कर, कि मेरे अतीत के कर्मी गतिविधियों के कारण, मैं अब अज्ञान के इस महासागर में गिर गया हूँ, और इस महान समुद्र से बाहर आने का कोई साधन मुझे नहीं दिख रहा है । यह बस जहर के सागर की तरह है, ए विशय-हलाहले दिवा-निशी हिया ज्वले । जैसे, कोई कुछ तीखा भोजन लेता है, यह दिल जलाता है, इसी तरह, जैसे हम सुखी होने की कोशिश कर रहे हैं इन्द्रिय संतुष्टि से, वास्तव में, यह विपरीत होता जा रहा है, हमारे दिल को जलाने का एक कारण ।
ए विशय-हलाहले दिवा-निशी हिया ज्वले, वह जलन चौबीस घंटे, दिन और रात चल रहा है । मन कभु सुख नाही पाया, और मेरा मन इस कारण बिल्कुल संतुष्ट नहीं है । अाशा पाश-शत शत क्लेश दे अबिरत, मैं हमेशा योजना बना रहा हूँ, सैकड़ों और हजारों, कैसे मैं खुश हो जाऊँगा, लेकिन वास्तव में वे सभी मुझे चौबीस घंटे तकलीफ दे रहे हैं । प्रवृत्ति-ऊर्मिर ताहे खेला, यह वास्तव में समुद्र की लहरों की तरह है, हमेशा एक दूसरे से टकराना, यही मेरी स्थिति है । काम-क्रोध-आदि चय, बाटपारे देय भय, इसके अलावा, इतने सारे चोर और बदमाश हैं । विशेष रूप से वे छह संख्या में हैं, अर्थात् वासना, क्रोध, ईर्ष्या, भ्रम, और बहुत सारे तरीके हैं, वे हमेशा मौजूद हैं, और मैं उन से डरता हूँ । अबसान हौयलो अासि बेला, इस तरह, मेरा जीवन उन्नत हो रहा है, या मैं अंत पर पहुँच रहा हूँ ।
ज्ञान-कर्म ठग दुइ, मोरे प्रतारिया लोय, हालांकि यह मेरी स्थिति है, फिर भी, दो प्रकार की गतिविधियॉ, अर्थात् मानसिक अटकलें और कर्मी गतिविधियॉ, वे मुझे धोखा दे रही हैं । ज्ञान-कर्म ठग, ठग का मतलब है बेईमान । वहाँ हैं ज्ञान-कर्म ठग दुइ, मोरे प्रतारिया लोय, वे मुझे गुमराह कर रहे हैं, और अबशेषे फेले सिंधु जले, मुझे गुमराह करने के बाद, वे समुंदर के किनारे मुझे ले अाते हैं, और समुद्र के भीतर मुझे धक्का देते हैं । ए हेनो समये बंधु, तुमि कृष्ण कृपा-सिंधु, किसी भी हाल में, मेरे प्रिय कृष्ण, आप ही केवल मेरे मित्र हो, तुमि कृष्ण कृपा-सिंधु । कृपा कोरि तोलो मोरे बले, अब मुझमे अज्ञान के इस सागर से बाहर निकलने की शक्ति नहीं है, इसलिए मैं अनुरोध करता हूँ, मैं अापके चरण कमलों में प्रार्थना करता हूँ, आपकी शक्ति से, आप कृपया मुझे उठा लें ।
पतित-किंकरे धरी पाद-पद्म-धूलि कोरी, सब के बाद, मैं अापका अनन्त दास हूं । तो, किसी न किसी तरह से, मैं इस महासागर में गिर गया हूँ, आप कृपया मुझे उठा लें, अौर आपकी चरण कमल की धूल के रूप में मुझे स्वीकार करें । देहो भक्तिविनोद अाश्रय, भक्तिविनोद ठाकुर याचना करते हैं कि "कृपया अपने चरण कमलों में मुझे आश्रय दें ।" अामी तव नित्य-दास, वास्तव में मैं अापका अनन्त दास हूं । भुलिया मायार पाश, किसी कारण मैं अापको भूल गया, और मैं अब माया के जाल में फस गया हूँ । बद्ध होये अाछि दोयामोय, मेरे प्रिय प्रभु, मैं इस तरह से उलझ गया हूँ । कृपया मुझे बचा लीजीए ।