HI/Prabhupada 0376 - भजहू रे मन का तात्पर्य



Purport to Bhajahu Re Mana -- Los Angeles, January 7, 1969

भजहू रे मन, श्री- नंद-नंदन अभय-चरणारविन्द रे । यह गोविंद दास द्वारा रचित एक गीत है, एक महान कवि और वैष्णव । भगवद गीता में कहा जाता है कि अगर तुम्हारा मन नियंत्रित है, तो तुम्हारा मन सबसे अच्छा दोस्त है । लेकिन अगर मन अनियंत्रित है, तो वह तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है । तो हम दोस्त या दुश्मन कि खोज में लगे रहते हैं, वे दोनों मेरे साथ बैठे हैं । अगर हम मन की दोस्ती का उपयोग कर सकें, तो हम उच्चतम पूर्णता के स्तर पर पहुँच जाते हैं । लेकिन अगर हम अपने मन को दुश्मन के रूप में बनाते हैं, तो नरक के लिए मेरे रास्ता साफ है । इसलिए गोविंद दास ठाकुर, वे अपने मन को संबोधित कर रहे हैं । योगी विभिन्न व्यायाम प्रक्रिया से मन को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं । इसकी भी मंजूरी दे गयी है । लेकिन लंबा समय लगता है, और कभी कभी विफलता भी होती है । ज्यादातर मामलों में विफलता होती है । यहॉ तक की विश्वामित्र एक बड़े योगी भी, वे भी असफल रहे, इन छोटे और अतर्कसंगत योगियों की बात क्या करें ।

तो गोविंद दास सलाह देते हैं कि, "तुम सिर्फ कृष्ण भावनामृत में अपने मन को लगाअो । तो मन स्वत: ही नियंत्रित हो जाता है । " अगर मन को कोई मौका नहीं है कृष्ण भावनामृत को छोड़कर किसी भी अन्य कारोबार में लगने के लिए, फिर वह मेरा दुश्मन नहीं बन सकता । यह स्वचालित रूप से मेरा दोस्त है । यही श्रीमद-भागवतम में शिक्षा है: स वै मन: कृष्ण पदारविन्दयो: (श्रीमद भागवतम ९.४.१८) । राजा अंबरीश, वे सब से पहले कृष्ण के चरण कमलों पर अपने मन को लगाते हैं । तो इसी तरह, यहां भी, गोविंद दास ठाकुर, वे अपने मन को बोल रहे हैं: "मेरे प्रिय मन, तुम सिर्फ अभय-चरणारविन्द के चरण कमलों पर अपने आप को व्यस्त रखो ।" यही कृष्ण के चरण कमलों का नाम है । अभय का मतलब है निडर । अगर तुम कृष्ण के चरण कमलों की शरण लेते हो तो तुम तुरंत निडर हो जाते हो । तो वे सलाह देते हैं, "मेरे प्यारे मन, तुम सिर्फ गोविंद के चरणकमलों की सेवा पर अपने आप को व्यस्त रखो ।"

भजहू रे मन श्री नंद-नंदन । वे नहीं कहते हैं, "गोविंद " । वे कृष्ण को संबोधित करते हैं, "नंद महाराज के पुत्र" के रूप में । "क्योंकि वे चरण कमल निडर हैं, तुम्हे अब माया के हमले से कोई भी डर नहीं होगा ।" "ओह, मुझे तो कई बातों का आनंद लेना है । कैसे मैं कृष्ण के चरण कमलों पर अपने मन को टिकाऊँ ?" फिर गोविंद दास सलाह देते हैं, "नहीं, नहीं ।" दुलर्भ मानव-जन्म । "तुम उस तरह से अपने जीवन को बर्बाद मत करो । यह मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है । कई, कई हजारों और लाखों जन्मों में, तुम्हे यह मौका मिला है ।" दुर्लभ मानव-जनम सत-संगे । "इसलिए कहीं मत जाअो । तुम सिर्फ शुद्ध भक्तों के साथ संग करो ।"

तरह ए भव-सिंधु रे । "तो फिर तुम अज्ञान के सागर को पार करने में सक्षम हो जाअोगे ।" "अोह! अगर मैं कृष्ण में हमेशा अपने मन को लगाऊँ, तो कैसे मैं अपने परिवार का आनंद लूँ, मेरी अन्य चीज़ों का ?" तो गोविंद दास कहते हैं, ए धन यौवन । "तुम अपने धन और अपनी युवा उम्र का आनंद चाहते हो " ए धन यौवन, पुत्र परिजन, "और तुम दोस्ती, प्यार और परिवार के समाज का आनंद चाहते हो, लेकिन मैं कहता हूँ, "इथे कि अाछे परतीति रे, "तुम्हे लगता है कि इन बकवास बातें में दिव्य सुख है? नहीं, कोई नहीं है । यह बस भ्रम है ।" ए धन यौवन पुत्र परिजन इथे कि आछे परतीति रे । दुर्लभ मानव जनम सत-संगे, तरह ए भव सिंधु रे ।

शीत अातप बात बरिशण ए दिन जामिनी जाागि रे विफले सेविनु कृपण दुरजन चपल सुख लब लागि रे गोविंद दास अपने मन को याद दिलाते हैं: "तुम्हे अपने भौतिक सुख का अनुभव है । तो भौतिक सुख का मतलब है, भौतिक सुख का अंतिम लक्ष्य यौन जीवन है । लेकिन क्या तुम्हे याद नहीं है कि तुम यौन जीवन का आनंद कितने दिन ले सकते हो ? " चपल। "चंचल । मान लो, कुछ मिनट या पल के लिए । बस । लेकिन उस उद्देश्य के लिए तुम इतनी मेहनत से काम कर रहे हो? " शीत अातप । "बर्फबारी की परवाह न करते हुए । भीषण गर्मी की परवाह न करते हुए । तेज़ बारिश की परवाह न करते हुए । रात्रि के काम की परवाह नहीं । पूरा दिन और रात तुम काम कर रहे हो । और नतीजा क्या है? बस उस चंचल क्षण भर के आनंद के लिए । तुम्हे इस बात से शर्म नहीं आती? "

तो शीत अातप बात बरिशण ए दिन जामिनी जाागि रे । दिन का मतलब है दिन, और जामिनी का मतलब है रात । तो "दिन और रात, तुम इतनी मेहनत से काम कर रहे हो । क्यों?" चपल सुख-लब-लागि रे: "बस चंचल खुशी के लिए ।" फिर वे कहते हैं, ए धन यौवन पुत्र परिजन, इथे कि अाछे परतीति रे । "वास्तव में इस जीवन का आनंद लेने में कोई खुशी, शाश्वत सुख, दिव्य खुशी, नहीं है, या इस युवा उम्र, या परिवार, समाज । कोई खुशी नही, कोई दिव्य खुशी नहीं है ।" इसलिए कमल-दल-जल, जीवन तलमल । "और तुम्हे पता नहीं है कि तुम कितने दिन तक इस जीवन का आनंद ले सकोगे । क्योंकि यह ढुलमुल है । तुम ढुलमुल मंच पर हो । वैसे ही जैसे कमल के पत्ते पर पानी है । झुकाव है । किसी भी क्षण में यह नीचे गिर जाएगा । तो हमारे जीवन में झुकाव है । किसी भी क्षण में यह गिर सकता है । हम मिल सकते हैं, मौके से, कोई खतरे से, और समाप्त । इसलिए जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो |

"भजहू हरि-पद नीति रे । "हमेशा कृष्ण भावनामृत में लगे रहो । वह तुम्हारे जीवन की सफलता है ।" और कैसे इस कृष्ण भावनामृत का निर्वहन करें ? वे सलाह देते हैं , श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वंदन, पाद-सेन दास्य रे । तुम भक्ति सेवा के नौ तरीकों में से किसी भी एक को ले सकते हो । अगर तुम उन सभी को अपना सकते हो वह बहुत अच्छा है । यदि नहीं, तो तुम उनमें से आठ को अपनाअो। तुम उनमें से सात को अपनाअो, उनमें से छह को अपनाअो, उनमें से पांच को अपनाअो, उनमें से चार को अपनाअो । लेकिन अगर तुम उनमें से केवल एक को अपनाते हो, तो तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । वे नौ तरीके क्या हैं? श्रवणम् किर्तनम | आधिकारिक सूत्रों से सुनना । और कीर्तन । श्रवणम् कीर्तनम । स्मरणम । याद रखना । वंदनम, प्रार्थना । श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वंदन, पाद-सेवनम । अनन्त नौकर के रूप में उनके चरण कमलों में सेवा प्रदान करना । पूजन सखी-जन । या बस अपने दोस्त के रूप में कृष्ण से प्रम करो । अात्म-निवेदन । या कृष्ण के लिए सब कुछ छोड़ दो । यही भक्ति सेवा का रास्ता है, और गोविंद दास कृष्ण भावनामृत के लिए इच्छुक हैं ।