HI/Prabhupada 0392 - नारद मुनि बजाय वीना तात्पर्य



Purport to Narada Muni Bajay Vina -- Los Angeles, September 22, 1972

नाम अमानी, उदित हय
भकत- गीता-सामे ।

यह भक्तिविनोद ठाकुर का गाया एक गीत है । गीत का तात्पर्य है कि नारद मुनि, महान आत्मा, कहते हैं, वह अपना तार-वाद्य बजा रहे हैं जिसे वीणा कहते हैं । वीणा एक तार वाद्य-यंत्र है जो नारद मुनि अपने साथ लेकर चलते हैं । तो वह अपना वाद्य-यंत्र बजा रहे हैं जिससे ध्वनि अा रही है राधिका-रमण की । कृष्ण का दूसरा नाम राधिका-रमण है । इसलिए जैसे ही तार पर वे उँगली फेरते हैं, तुरंत सभी भक्त उनसे प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, और यह एक बहुत ही सुंदर कंपन हो जाती है ।

अमिय धारा वरिषे घन । और जब गायन चल रहा था तार वाद्य-यंत्र के साथ, एेसा प्रतीत हो रहा था कि यह अमृत की वर्षा हो रही है, और सभी भक्त, तो परमानंद में, वे अपनी संतुष्टि की पूरी हद तक नाच रहे थे । तो जब वे नाच रहे थे, एेसा लग रहा था कि वे माधुरी पुर नाम के नशे में धुत्त हो गए हैं । अौर जैसे व्यक्ति पीने से लगभग पागल हो जाता है, इसी तरह, परमानंद में, सभी भक्त वे पागल हो गए । और उनमें से कुछ रो रहे थे, और उनमें से कुछ नाच रहे थे, और उनमें से कुछ, हालाँकि वे सार्वजनिक रूप से नृत्य नहीं कर सकते थे, अपने दिल के भीतर वे नाच रहे थे । इस तरह से, शिवजी नें तुरंत नारद मुनि को गले लगा लिया, और वे उन्मादपूर्ण आवाज़ में बात करने लगे । और शिवजी को देखकर, वे नारद मुनि के साथ नाच रहे हैं, ब्रह्माजी भी शामिल हो गए, और वे कहने लगे, "आप सब कृपया मंत्र जपिए हरिबोल ! हरिबोल !"

इस तरह से, स्वर्ग के राजा, इंद्र, वे भी धीरे-धीरे शामिल हो गए महान संतुष्टि के साथ और नृत्य और मंत्र जप करने लगे, "हरि हरि बोल ।" इस तरह से, भगवान के पवित्र नाम के उत्कृष्ट कंपन के प्रभाव से, पूरा ब्रह्मांड प्रसन्न हो गया, और भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, जब पूरा ब्रह्मांड प्रसन्न हो गया, तो मेरी इच्छा संतुष्ट हो गई, और इसलिए मैं रूप गोस्वामी के चरण कमलों में प्रार्थना करता हूँ, कि हरिनाम का यह जप इस तरह से अच्छी तरह से चलने दो । "