HI/680712 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - मॉन्ट्रियल]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - मॉन्ट्रियल]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680712SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"जो कोई भी भगवान की ओर से इन प्रतिबंधित आत्माओं को वापस ईश्‍वर को पाने के लिए, वापस घर लौटने के प्रयास को अपनाता है, वह भगवान का सबसे अधिक अंतरंग भक्त, प्रिय भक्त माना जाता है। यह भगवद गीता में कहा गया है, न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः ([[Vanisource:BG 18.69 (1972)|BG 18.69]])। यदि आप कृष्ण या भगवान के बहुत प्रिय बनना चाहते हैं, तो इन प्रचारक गतिविधियों को अपनाने का प्रयास करें। वह क्या है? कृष्ण चेतना फैलाएं। कृष्ण बहुत प्रसन्न होंगे। "|Vanisource:680712 - Lecture SB 07.09.10 - Montreal|680712 - प्रवचन SB 07.09.10 - मॉन्ट्रियल}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680710b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680710b|HI/680716 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680716}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680712SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|जो कोई भी भगवान की ओर से इन बद्ध जीवो को वापस भगवद धाम ले जाने का प्रयास करता है, वह भगवान का सबसे अधिक अंतरंग भक्त, प्रिय भक्त, माना जाता है। यह भगवद गीता में कहा गया है, न च तस्माद मनुष्येषु कश्चिद मे प्रिय-कृत्तमः (भ.गी. १८.६९)। यदि आप कृष्ण या भगवान के बहुत प्रिय बनना चाहते हैं, तो इन प्रचार कार्यो को अपनाने का प्रयास करें। वह क्या है? कृष्ण भावनामृत फैलाएं । कृष्ण बहुत प्रसन्न होंगे।|Vanisource:680712 - Lecture SB 07.09.10 - Montreal|680712 - प्रवचन श्री.भा. ७..१० - मॉन्ट्रियल}}

Latest revision as of 03:17, 10 June 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
जो कोई भी भगवान की ओर से इन बद्ध जीवो को वापस भगवद धाम ले जाने का प्रयास करता है, वह भगवान का सबसे अधिक अंतरंग भक्त, प्रिय भक्त, माना जाता है। यह भगवद गीता में कहा गया है, न च तस्माद मनुष्येषु कश्चिद मे प्रिय-कृत्तमः (भ.गी. १८.६९)। यदि आप कृष्ण या भगवान के बहुत प्रिय बनना चाहते हैं, तो इन प्रचार कार्यो को अपनाने का प्रयास करें। वह क्या है? कृष्ण भावनामृत फैलाएं । कृष्ण बहुत प्रसन्न होंगे।
680712 - प्रवचन श्री.भा. ७.९.१० - मॉन्ट्रियल