HI/Prabhupada 0003 - पुरूष भी स्त्री है: Difference between revisions
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सब | तो स्त्री को देखनेके बाद, वह ध्यान करता रहता था, चौबीस घंटे, उसी विषय पर, काम-वासना । कामैस तैस तैर हृत-ज्ञाना: ([[HI/BG 7.20|भ गी ७.२०]])। जब व्यक्ति कामुक होता है, तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । यह पूरा संसार इन कामुक विषयोंके अाधार पर ही चल रहा है । यहि भौतिक जगत है । और क्योंकि मै कामुक हूँ, तुम कामुक हो, हम सब, तो जैसे ही मेरी इच्छाओंकी पूर्ती नहीं होती, तुम्हारी इच्छाओंकी पूर्ती नहीं होती, तब मैं तुम्हारा दुश्मन हो जाता हूँ, तुम मेरे दुश्मन हो जाते हो । मै यह देख नहीं कर सकता कि तुम प्रगति कर रहे हो । तुम मेरी प्रगति नहीं देख सकते हो । यह भौतिक जगत है, ईर्ष्या, कामुक इच्छाएँ, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मात्सर्य । यहि इस भौतिक जगत का आधार है । | ||
इसलिए वह पुरुष है, बनावटी । | तो वह बन गया..... प्रशिक्षण तो ब्राह्मण होने के लिए था, शमो, दम, लेकिन उसकि प्रगतिमें रुकावट पड जाती है स्त्रीसे आसक्त होने के कारण । इसलिए वैदिक सभ्यताके अनुसार, स्त्रीको आध्यात्मिक उन्नतिके लिए बाधाके रूपमें माना जाता है । पूरी बुनियादी सभ्यता है कैसे बचना है...... स्त्री .....ऐसा मत सोचो कि स्त्री ही केवल स्त्री है । पुरूष भी स्त्री है । यह मत सोचो कि केवल स्त्री ही निंदनीय है, पुरुष नहीं । स्त्री का अर्थ है उपभोगकी वस्तु, अौर पुरुष का अर्थ है उपभोक्ता । तो यह एहसास, यह एहसास निंदनीय है । अगर मै एक स्त्रीको उपभोगकी वस्तु समझता हूं, तो मैं पुरुष हूँ । और अगर एक स्त्री दुसरे मर्दको उपभोगकी नज़रसे देखती है, तो वह भी पुरुष है । स्त्रीका अर्थ है उपभोगी अौर पुरुष का अर्थ है उपभोक्ता । तो जिसकोभी उपभोगकी भावना है, वह पुरुष समझा जाता है । तो यहाँ दोनो लिंगो का..... हर व्यक्ति योजना बना रहे हैं, " मैं कैसे उपभोग करूँ ?" इसलिए वह पुरुष है, बनावटी । अन्यथा, मूल रूप से, हम सब प्रकृति हैं, जीव, स्त्री हो या पुरुष । यह बाहरी पोशाक है । | ||
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Latest revision as of 17:57, 17 September 2020
Lecture on SB 6.1.64-65 -- Vrndavana, September 1, 1975
प्रभुपादः
- ताम एव तोषयाम आस
- पितृरयेणार्थेन यावता
- ग्राम्यैर मनोरमै: कामै:
- प्रसीदेत यथा तथा
- (श्रीमद भागवतम ६.१.६४)
तो स्त्री को देखनेके बाद, वह ध्यान करता रहता था, चौबीस घंटे, उसी विषय पर, काम-वासना । कामैस तैस तैर हृत-ज्ञाना: (भ गी ७.२०)। जब व्यक्ति कामुक होता है, तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । यह पूरा संसार इन कामुक विषयोंके अाधार पर ही चल रहा है । यहि भौतिक जगत है । और क्योंकि मै कामुक हूँ, तुम कामुक हो, हम सब, तो जैसे ही मेरी इच्छाओंकी पूर्ती नहीं होती, तुम्हारी इच्छाओंकी पूर्ती नहीं होती, तब मैं तुम्हारा दुश्मन हो जाता हूँ, तुम मेरे दुश्मन हो जाते हो । मै यह देख नहीं कर सकता कि तुम प्रगति कर रहे हो । तुम मेरी प्रगति नहीं देख सकते हो । यह भौतिक जगत है, ईर्ष्या, कामुक इच्छाएँ, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मात्सर्य । यहि इस भौतिक जगत का आधार है ।
तो वह बन गया..... प्रशिक्षण तो ब्राह्मण होने के लिए था, शमो, दम, लेकिन उसकि प्रगतिमें रुकावट पड जाती है स्त्रीसे आसक्त होने के कारण । इसलिए वैदिक सभ्यताके अनुसार, स्त्रीको आध्यात्मिक उन्नतिके लिए बाधाके रूपमें माना जाता है । पूरी बुनियादी सभ्यता है कैसे बचना है...... स्त्री .....ऐसा मत सोचो कि स्त्री ही केवल स्त्री है । पुरूष भी स्त्री है । यह मत सोचो कि केवल स्त्री ही निंदनीय है, पुरुष नहीं । स्त्री का अर्थ है उपभोगकी वस्तु, अौर पुरुष का अर्थ है उपभोक्ता । तो यह एहसास, यह एहसास निंदनीय है । अगर मै एक स्त्रीको उपभोगकी वस्तु समझता हूं, तो मैं पुरुष हूँ । और अगर एक स्त्री दुसरे मर्दको उपभोगकी नज़रसे देखती है, तो वह भी पुरुष है । स्त्रीका अर्थ है उपभोगी अौर पुरुष का अर्थ है उपभोक्ता । तो जिसकोभी उपभोगकी भावना है, वह पुरुष समझा जाता है । तो यहाँ दोनो लिंगो का..... हर व्यक्ति योजना बना रहे हैं, " मैं कैसे उपभोग करूँ ?" इसलिए वह पुरुष है, बनावटी । अन्यथा, मूल रूप से, हम सब प्रकृति हैं, जीव, स्त्री हो या पुरुष । यह बाहरी पोशाक है ।