HI/Prabhupada 0008 - कृष्ण दावा करते है की 'मैं हर किसी का पिता हूँ': Difference between revisions
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'''<big>[[Vaniquotes:Indians are meant for para-upakara. Indians are not meant for exploiting others. That is not Indians' business. Indian history is all along for para-upakara|Original Vaniquotes page in English]]</big>''' | |||
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'''[[Vanisource:Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973|Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973]]''' | |||
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तो, कमसे कम भारतमें, सभी महान हस्तियों, साधुअों, संतों और आचार्योंने, इतनी अच्छी तरहसे और पूरी तरहसे इस आध्यात्मिक ज्ञान को विकसित किया है, और हम इसका लाभ नहीं ले रहे हैं । एसा नहीं है कि वह शास्त्र और मार्गदर्शन भारतीयोंके लिए या हिंदुओं के लिए या ब्राह्मण के लिए हैं । नहीं । यह हर किसी के लिए है । क्योंकि कृष्ण का दावा है | |||
यह हर किसी के लिए है । | |||
:सर्व-योनिषु कौन्तेय | |||
:सम्भवन्ति मूर्तय: | |||
:या: तासां महद् ब्रह्म योनिर | |||
:अहं बीजप्रद: पिता | |||
:([[HI/BG 14.4|भ गी १४.४]]) | |||
कृष्णका दावा है कि "मैं हर किसी का पिता हूँ ।" इसलिए, वे बहुत ज्यादा उत्सुक हैं, हमें शांतिपूर्ण अौर सुखी बनाने के लिए । जैसे कोई पिता अपने बेटेको अच्छी तरहसे स्थित और खुश देखना चाहता है; इसी तरह, कृष्णभी हममेंसे हर एकको सुखी और अच्छी तरहसे स्थित देखना चाहते हैं । इसलिए वे कभी कभी आते हैं । ([[HI/BG 4.7|भ गी ४.७]]) यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति । यह ही कृष्णके आगमन का उद्देश्य है । तो जो लोग कृष्णके सेवक हैं, कृष्णके भक्त, उन्हे कृष्णके मिशनका दायित्व लेना चाहिए । उन्हे कृष्णके विशेष कार्य का दायित्व लेना चाहिए । यही चैतन्य महाप्रभु का मानना है । | |||
:अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश, | |||
:यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश | |||
:([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) | |||
कृष्ण-उपदेश । बस कृष्णने भगवद्- गीतामें जो उपदेश दिया है उसका प्रचार करनेके लिए प्रयास करें । यही हर भारतीयका कर्तव्य है । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं । | |||
:भारत-भूमिते मनुष्य जन्म हौयल यार | |||
:जन्म सार्थक करी पर-उपकार | |||
:([[Vanisource:CC Adi 9.41|चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१]]) | |||
तो भारतीय, भारतीय लोग पर-उपकारके लिए हैं । भारतीय दूसरोंका शोषण करनेके लिए नहीं हैं । यह भारतीयोंका काम नहीं है । भारतीय इतिहास हमेशा पर-उपकार के लिए है । और पहले ज़मानेमें, दुनिया के सभी भागोंसे, आध्यात्मिक जीवन क्या है यह जानने के लिए भारत आया करते थे । यहां तककी इशु मसीह भी वहां गए थे । और चीनसे और अन्य देशोंसे भी । यही इतिहास है । और हम अपनीही परिसंपत्ति भूल रहे हैं । हम कितने कठोर हैं । इस तरहका महान आंदोलन, कृष्ण भावनामृत, पूरी दुनिया में हो रहा है, लेकिन हमारे भारतीय कठोर हैं, हमारी सरकार कठोर है । वे ग्रहण नहीं करते हैं । यह हमारा दुर्भाग्य है । लेकिन यह चैतन्य महाप्रभुका मिशन है । उन्होंने कहा कि कोई भी भारतीय, भारत भूमिते जन्म, अगर वह इंसान है तो, उसे वैदिक साहित्यका लाभ लेकर अपने जीवनको सफल बनाना चाहिए और दुनिया भरमें यह ज्ञान वितरित करना चिहिए । यही पर-उपकार है । तो भारत कर सकता है । वे लोग वास्तवमें प्रशंसा कर रहे हैं । यह यूरोपी, अमेरिकी युवक, प्रशंसा कर रहे हैं कि कैसे महान ... मुझे दैनिक डज़नो पत्र मिलते हैं कि इस आंदोलनसे उन्हे कितना लाभ हुअा है । वास्तवमें , यह सत्य है । वो मृत आदमी को जीवन दे रहा है । इसलिए मैं विशेष रूपसे भारतीयों से अनुरोध करुँगा, खासकर महामहिम, कृपया इस आंदोलनके साथ सहयोग करें, और अपने जीवन और दूसरोंके जीवनको सफल बनाने के लिए प्रयास करें । यह कृष्ण का मिशन है, कृष्ण का आगमन । अापका बहुत धन्यवाद । | |||
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020
Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973
तो, कमसे कम भारतमें, सभी महान हस्तियों, साधुअों, संतों और आचार्योंने, इतनी अच्छी तरहसे और पूरी तरहसे इस आध्यात्मिक ज्ञान को विकसित किया है, और हम इसका लाभ नहीं ले रहे हैं । एसा नहीं है कि वह शास्त्र और मार्गदर्शन भारतीयोंके लिए या हिंदुओं के लिए या ब्राह्मण के लिए हैं । नहीं । यह हर किसी के लिए है । क्योंकि कृष्ण का दावा है
- सर्व-योनिषु कौन्तेय
- सम्भवन्ति मूर्तय:
- या: तासां महद् ब्रह्म योनिर
- अहं बीजप्रद: पिता
- (भ गी १४.४)
कृष्णका दावा है कि "मैं हर किसी का पिता हूँ ।" इसलिए, वे बहुत ज्यादा उत्सुक हैं, हमें शांतिपूर्ण अौर सुखी बनाने के लिए । जैसे कोई पिता अपने बेटेको अच्छी तरहसे स्थित और खुश देखना चाहता है; इसी तरह, कृष्णभी हममेंसे हर एकको सुखी और अच्छी तरहसे स्थित देखना चाहते हैं । इसलिए वे कभी कभी आते हैं । (भ गी ४.७) यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति । यह ही कृष्णके आगमन का उद्देश्य है । तो जो लोग कृष्णके सेवक हैं, कृष्णके भक्त, उन्हे कृष्णके मिशनका दायित्व लेना चाहिए । उन्हे कृष्णके विशेष कार्य का दायित्व लेना चाहिए । यही चैतन्य महाप्रभु का मानना है ।
- अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश,
- यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश
- (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८)
कृष्ण-उपदेश । बस कृष्णने भगवद्- गीतामें जो उपदेश दिया है उसका प्रचार करनेके लिए प्रयास करें । यही हर भारतीयका कर्तव्य है । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं ।
- भारत-भूमिते मनुष्य जन्म हौयल यार
- जन्म सार्थक करी पर-उपकार
- (चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१)
तो भारतीय, भारतीय लोग पर-उपकारके लिए हैं । भारतीय दूसरोंका शोषण करनेके लिए नहीं हैं । यह भारतीयोंका काम नहीं है । भारतीय इतिहास हमेशा पर-उपकार के लिए है । और पहले ज़मानेमें, दुनिया के सभी भागोंसे, आध्यात्मिक जीवन क्या है यह जानने के लिए भारत आया करते थे । यहां तककी इशु मसीह भी वहां गए थे । और चीनसे और अन्य देशोंसे भी । यही इतिहास है । और हम अपनीही परिसंपत्ति भूल रहे हैं । हम कितने कठोर हैं । इस तरहका महान आंदोलन, कृष्ण भावनामृत, पूरी दुनिया में हो रहा है, लेकिन हमारे भारतीय कठोर हैं, हमारी सरकार कठोर है । वे ग्रहण नहीं करते हैं । यह हमारा दुर्भाग्य है । लेकिन यह चैतन्य महाप्रभुका मिशन है । उन्होंने कहा कि कोई भी भारतीय, भारत भूमिते जन्म, अगर वह इंसान है तो, उसे वैदिक साहित्यका लाभ लेकर अपने जीवनको सफल बनाना चाहिए और दुनिया भरमें यह ज्ञान वितरित करना चिहिए । यही पर-उपकार है । तो भारत कर सकता है । वे लोग वास्तवमें प्रशंसा कर रहे हैं । यह यूरोपी, अमेरिकी युवक, प्रशंसा कर रहे हैं कि कैसे महान ... मुझे दैनिक डज़नो पत्र मिलते हैं कि इस आंदोलनसे उन्हे कितना लाभ हुअा है । वास्तवमें , यह सत्य है । वो मृत आदमी को जीवन दे रहा है । इसलिए मैं विशेष रूपसे भारतीयों से अनुरोध करुँगा, खासकर महामहिम, कृपया इस आंदोलनके साथ सहयोग करें, और अपने जीवन और दूसरोंके जीवनको सफल बनाने के लिए प्रयास करें । यह कृष्ण का मिशन है, कृष्ण का आगमन । अापका बहुत धन्यवाद ।