HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं: Difference between revisions

 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 1: Line 1:
<!-- BEGIN CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN CATEGORY LIST -->
[[Category:1080 French Pages with Videos]]
[[Category:1080 Hindi Pages with Videos]]
[[Category:French Pages - 207 Live Videos]]
[[Category:Hindi Pages - 207 Live Videos]]
[[Category:Prabhupada 0855 - in all Languages]]
[[Category:Prabhupada 0855 - in all Languages]]
[[Category:FR-Quotes - 1975]]
[[Category:HI-Quotes - 1975]]
[[Category:FR-Quotes - Lectures, Srimad-Bhagavatam]]
[[Category:HI-Quotes - Lectures, Srimad-Bhagavatam]]
[[Category:FR-Quotes - in USA]]
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
[[Category:FR-Quotes - in USA, New York]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, New York]]
[[Category:French Language]]
[[Category:Hindi Language]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं|0854|HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं|0856}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 17: Line 20:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|pFZAlUJf770|अगर मैं अपने भौतिक भोग रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो गया । नहीं<br />- Prabhupāda 0855}}
{{youtube_right|c7zEGAMasQY|अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं <br />- Prabhupāda 0855}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vanimedia.org/wiki/File:750306SB-NEW_YORK_clip5.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/750306SB-NEW_YORK_clip5.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 29: Line 32:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
तो, जब तक हम इस भौतिक दुनिया में रहेंगे, मैं भगवान इंद्र भगवान ब्रह्मा, या अमेरिका का राष्ट्रपति, या यह या यह हो सकता हूँ - तुम इन चार चीजों से बच नहीं सकते । यही भौतिक अस्तित्व है। यही समस्या है। यदि तुम समस्या को हल करना चाहते हो, तो यह प्रक्रिया है : निवृत्ति । अन्याभिलाषिता शून्यम : भौतिक आनंद के लिए कामना न करो । भोग तो है । ऐसा मत सोचना कि "अगर मैंने अपने भौतिक भोग को रोक दिया, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो गया ।" नहीं, यह समाप्त नहीं हुआ है। जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह: वह सो भी रहा है, वह खा भी रहा है, उसके अन्य कर्तव्य भी हैं,, लेकिन , ... उसका खाना, सोना, और स्वस्थ आदमी का खाना, सोना एक ही बात नहीं है। इसी तरह, हमारा भौतिक भोग - भोजन, नींद, संभोग और रक्षा - यह खतरों से भरा है। हम किसी बाधा के बिना आनंद नहीं उठा सकते हैं। इतने सारे बाधाऍ हैं । तो अगर हम निर्बाध सुख चाहते हैं ... सुख तो है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह, वह भी खा रहा है, और स्वस्थ आदमी खा रहा है। लेकिन उसे कड़वा स्वाद लग रहा है। पीलिया के साथ एक आदमी, अगर तुम उसे चीनी कैंडी दो, उसे कड़वा स्वाद लगेगा । यह एक तथ्य है। लेकिन वही अादमी अगर वह पीलिया रोग से ठीक हो जाता है, तब उसे बहुत ही मीठा स्वाद लगेगा । इसी तरह, जीवन की भोतिक हालत में इतने सारी बाधाऍ हैं, कि हम पूरी तरह से जीवन का आनंद नहीं ले सकते। अगर तुम जीवन का पूरा आनंद चाहते हो, तो तुम्हे आध्यात्मिक मंच पर आना होगा । दुक्खालयम अशाश्वतम ( भ गी ८।१५) । यह भौतिक दुनिया वर्णित है, भगवद गीता में कि यह दुक्खालयम है। यह दुखों की जगह है। अगर तुम कहते हैं, "नहीं, मैंने व्यवस्था की है । मेरे पास अच्छा, अच्छा बैंक बैलेंस है। मेरी पत्नी बहुत अच्छी है, मेरे बच्चे भी बहुत अच्छे हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । मैं भौतिक दुनिया में रहूगा ।" श्री कृष्ण कहते हैं अशाश्वतम : "नहीं श्रीमान, आप यहाँ नहीं रह सकते हैं । आप बाहर निकाल दिया जाएगा। " दुकखालयम अशाश्वतम । अगर तुम यहाँ रहने के लिए सहमत हो, जीवन के इस दयनीय हालत में है, उसकी भी अनुमति नहीं है। कोई स्थायी बंदोबस्त नहीं है । तथा देहान्तर प्राप्तिर इसलिए ये समस्याऍ ... कहाॉ हैं वह वैज्ञानिक जो इन समस्या के बारे में चर्चा कर रहे हैं ? लेकिन समस्याएं तो हैं। कौन त्यगना चाहता है अपने परिवार को? हर किसी के पास परिवार है, लेकिन कोई भी अपने परिवार को त्यागना नहीं चाहता है। लेकिन बल उसे छीन लिया जाता है। आदमी रो रहा है, "ओह, मैं अब जा रहा हूँ। अब मैं मर रहा हूँ। मेरी पत्नी, मेरे बच्चों का क्या होगा?" वह मजबूर है। तुम्हे जाना होगा । इसलिए यह समस्या है। तो समस्या का हल कहॉ है? इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। अगर तुम समस्या का समाधान चाहते हो, तो श्री कृष्ण कहते हैं, माम उपेत्य कौन्तेय दुक्खालयम अशाश्वतम नापनुवंति महात्मान: सम्सिद्धीम परमाम गता: ( भ ग ८।१५) "अगर कोई मेरे पास अाता है," माम उपेत्य "तो फिर उसे वापस नहीं अाना पड़ता है फिर से, इस भौतिक जगत में जो दुखों से भरा है ।" तो यहाँ शुकदेव गोस्वामी सलाह दे रहे हैं कि तुम भक्त बन जाअो । तुम्हारी सभी समस्याओं का हल हो जाएगा।
तो, जब तक हम इस भौतिक दुनिया में रहेंगे, मैं इंद्र भगवान ब्रह्माजी, या अमेरिका का राष्ट्रपति, या यह या वह हो सकता हूँ - तुम इन चार चीजों से बच नहीं सकते । यही भौतिक अस्तित्व है । यही समस्या है । यदि तुम समस्या को हल करना चाहते हो, तो यह प्रक्रिया है : निवृत्ति । अन्याभिलाषिता शून्यम: भौतिक आनंद के लिए कामना न करो । आनंद तो है । ऐसा मत सोचना कि "अगर मैंने अपने भौतिक आनंद को रोक दिया, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा ।" नहीं | यह समाप्त नहीं हुआ है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह: वह सो भी रहा है, वह खा भी रहा है, उसके अन्य कार्य भी हैं, लेकिन... उसका खाना, सोना, और स्वस्थ आदमी का खाना, सोना एक ही बात नहीं है । इसी तरह, हमारा भौतिक आनंद - भोजन, नींद, संभोग और रक्षा - यह खतरों से भरा है । हम किसी बाधा के बिना आनंद नहीं उठा सकते । इतनी सारी बाधाऍ हैं ।  
 
तो अगर हम निर्बाध सुख चाहते हैं... सुख तो है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह, वह भी खा रहा है, और स्वस्थ आदमी खा रहा है । लेकिन उसे कड़वा स्वाद लग रहा है । पीलिया के साथ एक आदमी, अगर तुम उसे गन्ना दो, उसे कड़वा स्वाद लगेगा । यह एक तथ्य है । लेकिन वही अादमी अगर वह पीलिया रोग से ठीक हो जाता है, तब उसे बहुत ही मीठा स्वाद लगेगा । इसी तरह, जीवन की भोतिक हालत में इतनी सारी बाधाऍ हैं, की हम पूरी तरह से जीवन का आनंद नहीं ले सकते । अगर तुम जीवन का पूरा आनंद चाहते हो, तो तुम्हे आध्यात्मिक मंच पर आना होगा । दुःखालयम अशाश्वतम ([[HI/BG 8.15|.गी. ८.१५]]) । यह भौतिक दुनिया वर्णित है, भगवद गीता में, कि यह दुःखालयम है । यह दुखों की जगह है । अगर तुम कहते हो, "नहीं, मैंने व्यवस्था की है । मेरे पास अच्छा बैंक बैलेंस है । मेरी पत्नी बहुत अच्छी है, मेरे बच्चे भी बहुत अच्छे हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । मैं भौतिक दुनिया में रहूगा ।" कृष्ण कहते हैं अशाश्वतम: "नहीं श्रीमान, आप यहाँ नहीं रह सकते हैं । आप बाहर निकाल दिए जाओगे ।" दुःखालयम अशाश्वतम । अगर तुम यहाँ रहने के लिए सहमत हो, जीवन की इस दयनीय हालत में है, उसकी भी अनुमति नहीं है । कोई स्थायी बंदोबस्त नहीं है । तथा देहान्तर प्राप्तिर |
 
इसलिए ये समस्याऍ... कहा हैं वह वैज्ञानिक जो इन समस्या के बारे में चर्चा कर रहे हैं ? लेकिन समस्याएं तो हैं । कौन त्यगना चाहता है अपने परिवार को ? हर किसी के पास परिवार है, लेकिन कोई भी अपने परिवार को त्यागना नहीं चाहता है । लेकिन बल उससे छीन लिया जाता है । आदमी रो रहा है, "ओह, मैं अब जा रहा हूँ । अब मैं मर रहा हूँ । मेरी पत्नी, मेरे बच्चों का क्या होगा ?" वह मजबूर है । तुम्हे जाना होगा । इसलिए यह समस्या है । तो समस्या का हल कहॉ है ? इस समस्या का कोई समाधान नहीं है । अगर तुम समस्या का समाधान चाहते हो, तो कृष्ण कहते हैं,  
 
:माम उपेत्य कौन्तेय  
:दुःखालयम अशाश्वतम  
:नाप्नुवंती महात्मान:  
:संसिद्धिम परमाम गता:
:([[HI/BG 8.15|.गी. ८.१५]]) |
 
"अगर कोई मेरे पास अाता है," माम उपेत्य, "तो फिर उसे वापस नहीं अाना पड़ता है फिर से, इस भौतिक जगत में जो दुखों से भरा है ।"  
 
तो यहाँ शुकदेव गोस्वामी सलाह दे रहे हैं कि तुम भक्त बन जाअो । तुम्हारी सभी समस्याओं का हल हो जाएगा ।
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:51, 1 October 2020



750306 - Lecture SB 02.02.06 - New York

तो, जब तक हम इस भौतिक दुनिया में रहेंगे, मैं इंद्र भगवान ब्रह्माजी, या अमेरिका का राष्ट्रपति, या यह या वह हो सकता हूँ - तुम इन चार चीजों से बच नहीं सकते । यही भौतिक अस्तित्व है । यही समस्या है । यदि तुम समस्या को हल करना चाहते हो, तो यह प्रक्रिया है : निवृत्ति । अन्याभिलाषिता शून्यम: भौतिक आनंद के लिए कामना न करो । आनंद तो है । ऐसा मत सोचना कि "अगर मैंने अपने भौतिक आनंद को रोक दिया, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा ।" नहीं | यह समाप्त नहीं हुआ है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह: वह सो भी रहा है, वह खा भी रहा है, उसके अन्य कार्य भी हैं, लेकिन... उसका खाना, सोना, और स्वस्थ आदमी का खाना, सोना एक ही बात नहीं है । इसी तरह, हमारा भौतिक आनंद - भोजन, नींद, संभोग और रक्षा - यह खतरों से भरा है । हम किसी बाधा के बिना आनंद नहीं उठा सकते । इतनी सारी बाधाऍ हैं ।

तो अगर हम निर्बाध सुख चाहते हैं... सुख तो है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह, वह भी खा रहा है, और स्वस्थ आदमी खा रहा है । लेकिन उसे कड़वा स्वाद लग रहा है । पीलिया के साथ एक आदमी, अगर तुम उसे गन्ना दो, उसे कड़वा स्वाद लगेगा । यह एक तथ्य है । लेकिन वही अादमी अगर वह पीलिया रोग से ठीक हो जाता है, तब उसे बहुत ही मीठा स्वाद लगेगा । इसी तरह, जीवन की भोतिक हालत में इतनी सारी बाधाऍ हैं, की हम पूरी तरह से जीवन का आनंद नहीं ले सकते । अगर तुम जीवन का पूरा आनंद चाहते हो, तो तुम्हे आध्यात्मिक मंच पर आना होगा । दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) । यह भौतिक दुनिया वर्णित है, भगवद गीता में, कि यह दुःखालयम है । यह दुखों की जगह है । अगर तुम कहते हो, "नहीं, मैंने व्यवस्था की है । मेरे पास अच्छा बैंक बैलेंस है । मेरी पत्नी बहुत अच्छी है, मेरे बच्चे भी बहुत अच्छे हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । मैं भौतिक दुनिया में रहूगा ।" कृष्ण कहते हैं अशाश्वतम: "नहीं श्रीमान, आप यहाँ नहीं रह सकते हैं । आप बाहर निकाल दिए जाओगे ।" दुःखालयम अशाश्वतम । अगर तुम यहाँ रहने के लिए सहमत हो, जीवन की इस दयनीय हालत में है, उसकी भी अनुमति नहीं है । कोई स्थायी बंदोबस्त नहीं है । तथा देहान्तर प्राप्तिर |

इसलिए ये समस्याऍ... कहा हैं वह वैज्ञानिक जो इन समस्या के बारे में चर्चा कर रहे हैं ? लेकिन समस्याएं तो हैं । कौन त्यगना चाहता है अपने परिवार को ? हर किसी के पास परिवार है, लेकिन कोई भी अपने परिवार को त्यागना नहीं चाहता है । लेकिन बल उससे छीन लिया जाता है । आदमी रो रहा है, "ओह, मैं अब जा रहा हूँ । अब मैं मर रहा हूँ । मेरी पत्नी, मेरे बच्चों का क्या होगा ?" वह मजबूर है । तुम्हे जाना होगा । इसलिए यह समस्या है । तो समस्या का हल कहॉ है ? इस समस्या का कोई समाधान नहीं है । अगर तुम समस्या का समाधान चाहते हो, तो कृष्ण कहते हैं,

माम उपेत्य कौन्तेय
दुःखालयम अशाश्वतम
नाप्नुवंती महात्मान:
संसिद्धिम परमाम गता:
(भ.गी. ८.१५) |

"अगर कोई मेरे पास अाता है," माम उपेत्य, "तो फिर उसे वापस नहीं अाना पड़ता है फिर से, इस भौतिक जगत में जो दुखों से भरा है ।"

तो यहाँ शुकदेव गोस्वामी सलाह दे रहे हैं कि तुम भक्त बन जाअो । तुम्हारी सभी समस्याओं का हल हो जाएगा ।