HI/Prabhupada 0234 - एक भक्त बनना सबसे बड़ी योग्यता है: Difference between revisions

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तो प्रहलाद महाराज ... न्रसिंहदेव नें प्रहलाद महाराजा को प्रदान किया, "अब तुम मन चाहा आशीर्वाद ले सकते हो ।" तो प्रहलाद महाराज नें उत्तर दिया, " मेरे भगवान, हम भौतिकवादी हैं । मेरा जन्म हुआ हूँ एक एसे पिता के द्वारा जो पूरी तरह से भौतिकवादी है । तो मैं भी हूँ क्योंकि मैं एक भौतिकवादी पिता से जन्मा हूँ, मैं भी भौतिकवादी हूँ । और आप, देवत्व के परम व्यक्तित्व, अाप मुझे कुछ आशीर्वाद देना चाहते हैं । मैं आप से किसी भी तरह का आशीर्वाद ले सकता हूँ । मुझे पता है । लेकिन इसका उपयोग क्या है? क्यों मैं आपसे किसी भी आशीर्वाद के लिए पूछूँ? मैंने अपने पिता को देखा है । भौतिक दृष्टि से, वे इतने शक्तिशाली थे, कि देवता भी, इंद्र, चंद्र, वरुण, वे उनकी लाल आँखें द्वारा धमकाए जाते । और उन्होंने ब्रह्मांड पर नियंत्रण पाया । वे इतने शक्तिशाली थे । और ऐश्वर्य , धन, शक्ति, प्रतिष्ठा, सब कुछ पूर्ण, लेकिन आपनें एक सेकंड में यह समाप्त कर दिया है । तो अाप मुझे क्यों इस तरह का आशीर्वाद दे रहे हैं? मैं उनका क्या करूँ? अगर मैं अाप से यह आशीर्वाद लूँ और मैं फूल जाऊँ, और आप के खिलाफ सब कुछ गलत करूँ, तो आप एक क्षण के भीतर उसे खत्म कर सकते हैं । तो कृपया मुझे इस तरह के आशीर्वाद न दें, ऐसी भौतिक संपन्नता । बेहतर है अाप मुझे अपने सेवक की सेवा में लगे रहने का आशीर्वाद दे । मैं यह आशीर्वाद चाहता हूँ । मुझे अाप अाशीर्वाद दें कि मैं आपके सेवक की सेवा में लगा रहूँ, सीधे अापका नौकर नहीं "
तो प्रह्लाद महाराज... नृसिंहदेव ने प्रह्लाद महाराज को प्रस्ताव दिया, "अब तुम मन चाहा वरदान माँग सकते हो ।" तो प्रह्लाद महाराज ने उत्तर दिया, "मेरे भगवान, हम भौतिकतावादी हैं । मेरा जन्म एक परम भौतिकतावादी पिता से हुआ है । तो मैं भी, क्योंकि मैं एक भौतिकवादी पिता से जन्मा हूँ, मैं भी भौतिकतावादी हूँ । और आप, परम भगवान, अाप मुझे कुछ वरदान देना चाहते हैं । मैं आप से कैसा भी वरदान ले सकता हूँ । यह मुझे ज्ञात है । लेकिन इसका क्या लाभ है ? मैं आपसे किसी भी वरदान की माँग क्यों करुँ ? मैंने अपने पिता को देखा है । भौतिक दृष्टि से, वे इतने शक्तिशाली थे कि देवता भी, इंद्र, चंद्र, वरुण, वे उनकी लाल आँखों द्वारा धमकाए जाते थे । और उन्होंने ब्रह्मांड पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया । वे इतने शक्तिशाली थे । और ऐश्वर्य, धन, शक्ति, प्रतिष्ठा, सब कुछ पूर्ण, लेकिन आपने एक ही क्षण में सब नष्ट कर दिया ।  


फिर, कई प्रार्थनाअों के बाद, भगवान को मनाने के बाद ... वे बहुत गुस्से में थे । जब वे थोड़े से शांत हुए, उन्होंने पूछा, " मेरे प्रिय भगवान, मैं अापसे एक और पूछ सकता हूँ, एक अौर आशीर्वाद । कि मेरे पिता बहुत, बहुत कट्टर शत्रु थे अापके । यही उनकी मौत का कारण था । अब मैं निवेदन करता हूँ कि आप कृपया उन्हे माफ करें और उन्हे मुक्ति प्रदान करें ।" यही वैष्णव पुत्र है । उन्होंने खुद के लिए कुछ भी नहीं पूछा । और हालांकि वे जानते थे कि उनके पिता सबसे बड़ी दुश्मन थे, फिर भी, वे आशीर्वाद पूछ रहे हैं "इस बेचारे को मुक्त किया जाए ," तो भगवान न्रसिंहदेव नें अाशवासन दिया, कहा, " मेरे प्रिय प्रहलाद, न केवल तुम्हारे पिता, लेकिन तुम्हारे पिता के पिता, उनके पिता, चौदह पीढ़ी तक, सभी मुक्त हैं । क्योंकि तुम इस परिवार में पैदा हुए हो ।" तो जो कोई भी एक वैष्णव बनता है, भगवान का भक्त, वह परिवार के लिए सबसे बड़ी सेवा दे रहा है । क्योंकि उसके संबंध के तहत, उसके पिता, मां, किसी के साथ , वे मुक्त हो जाएँगे । जैसे कि हमें अनुभव है, अगर एक व्यक्ति लड़ाई में मर जाता है, उसके परिवार का सरकार द्वारा ध्यान रखा जाता है । इसी तरह, एक भक्त बनना सबसे बड़ी योग्यता है । उसे सब कुछ मिल गया है । यत्र योगेश्वर हरि: यत्र धनुर-धर: पार्थ: ([[Vanisource:BG 18.78|भ गी १८।७८]]) जब कृष्ण हैं और जब भक्त हैं, वहॉ जीत है, गौरव है । यह तय है ।
तो अाप मुझे क्यों इस तरह का वरदान दे रहे हैं ? मैं उनका क्या करूँगा ? अगर मैं अाप से वह आशीर्वाद लूँ और मैं गर्वित हो जाऊँ, और आपके विरुद्ध सब कार्य करूँ, तो आप एक क्षण के भीतर ही सब नष्ट कर सकते हैं । तो कृपया मुझे इस तरह का वरदान न दें, ऐसी भौतिक संपन्नता । उपयुक्त होगा कि अाप मुझे अपने सेवक की सेवा में लगे रहने का आशीर्वाद दें । मैं यह आशीर्वाद चाहता हूँ । मुझे अाप अाशीर्वाद दें कि मैं आपके सेवक की सेवा में लगा रहूँ, प्रत्यक्ष रुप से अापका सेवक नहीं ।" फिर, कई प्रार्थनाअों के बाद, भगवान को शांत करने के बाद ... वे बहुत क्रोधित थे ।  
 
तो जब वे थोड़ा शांत हुए, उन्होंने पूछा, " मेरे प्रिय भगवान्, क्या मैं अापसे एक अौर आशीर्वाद माँग सकता हूँ । कि मेरे पिता अापके बहुत, बहुत कट्टर शत्रु थे । यही उनकी मृत्यु का कारण था । अब मैं निवेदन करता हूँ कि कृपया आप उन्हें क्षमा कर दिजिए और उन्हें मुक्ति प्रदान कर दिजिए ।" यह वैष्णव पुत्र है । उन्होंने स्वयं के लिए कुछ भी नहीं माँगा । और हालांकि वे जानते थे कि उनके पिता बहुत बड़े शत्रु थे, फिर भी, वे आशीर्वाद माँग रहे हैं, "इन बेचारे को मुक्त कर दिया जाए ," तो भगवान नृसिंहदेव ने अाश्वासन दिया, कहा, " मेरे प्रिय प्रह्लाद, न केवल तुम्हारे पिता, लेकिन तुम्हारे पिता के पिता, उनके पिता, चौदह पीढ़ी तक, सभी मुक्त हैं । क्योंकि तुम्हारा इस परिवार में जन्म हुआ है ।"  
 
तो जो कोई भी वैष्णव बनता है, भगवान का भक्त, वह परिवार की सबसे उत्तम सेवा कर रहा है । क्योंकि उसके संबंध में, उसके पिता, माता, कोई भी है, वे मुक्त हो जाएँगे । जैसा कि हमे अनुभव है, अगर एक व्यक्ति समय से पूर्व युद्ध में मारा जाता है, उसके परिवार का सरकार द्वारा ध्यान रखा जाता है । इसी तरह, एक भक्त बनना सबसे बड़ी योग्यता है । उसे सब कुछ मिल जाता है । यत्र योगेश्वर हरि: यत्र धनुर्-धर: पार्थ: ([[HI/BG 18.78|भ.गी. १८.७८]]) । जहाँ कृष्ण हैं और जहाँ भक्त है, वहाँ विजय है, गौरव है । यह निश्चित है ।  
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Latest revision as of 18:22, 17 September 2020



Lecture on BG 2.4-5 -- London, August 5, 1973

तो प्रह्लाद महाराज... नृसिंहदेव ने प्रह्लाद महाराज को प्रस्ताव दिया, "अब तुम मन चाहा वरदान माँग सकते हो ।" तो प्रह्लाद महाराज ने उत्तर दिया, "मेरे भगवान, हम भौतिकतावादी हैं । मेरा जन्म एक परम भौतिकतावादी पिता से हुआ है । तो मैं भी, क्योंकि मैं एक भौतिकवादी पिता से जन्मा हूँ, मैं भी भौतिकतावादी हूँ । और आप, परम भगवान, अाप मुझे कुछ वरदान देना चाहते हैं । मैं आप से कैसा भी वरदान ले सकता हूँ । यह मुझे ज्ञात है । लेकिन इसका क्या लाभ है ? मैं आपसे किसी भी वरदान की माँग क्यों करुँ ? मैंने अपने पिता को देखा है । भौतिक दृष्टि से, वे इतने शक्तिशाली थे कि देवता भी, इंद्र, चंद्र, वरुण, वे उनकी लाल आँखों द्वारा धमकाए जाते थे । और उन्होंने ब्रह्मांड पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया । वे इतने शक्तिशाली थे । और ऐश्वर्य, धन, शक्ति, प्रतिष्ठा, सब कुछ पूर्ण, लेकिन आपने एक ही क्षण में सब नष्ट कर दिया ।

तो अाप मुझे क्यों इस तरह का वरदान दे रहे हैं ? मैं उनका क्या करूँगा ? अगर मैं अाप से वह आशीर्वाद लूँ और मैं गर्वित हो जाऊँ, और आपके विरुद्ध सब कार्य करूँ, तो आप एक क्षण के भीतर ही सब नष्ट कर सकते हैं । तो कृपया मुझे इस तरह का वरदान न दें, ऐसी भौतिक संपन्नता । उपयुक्त होगा कि अाप मुझे अपने सेवक की सेवा में लगे रहने का आशीर्वाद दें । मैं यह आशीर्वाद चाहता हूँ । मुझे अाप अाशीर्वाद दें कि मैं आपके सेवक की सेवा में लगा रहूँ, प्रत्यक्ष रुप से अापका सेवक नहीं ।" फिर, कई प्रार्थनाअों के बाद, भगवान को शांत करने के बाद ... वे बहुत क्रोधित थे ।

तो जब वे थोड़ा शांत हुए, उन्होंने पूछा, " मेरे प्रिय भगवान्, क्या मैं अापसे एक अौर आशीर्वाद माँग सकता हूँ । कि मेरे पिता अापके बहुत, बहुत कट्टर शत्रु थे । यही उनकी मृत्यु का कारण था । अब मैं निवेदन करता हूँ कि कृपया आप उन्हें क्षमा कर दिजिए और उन्हें मुक्ति प्रदान कर दिजिए ।" यह वैष्णव पुत्र है । उन्होंने स्वयं के लिए कुछ भी नहीं माँगा । और हालांकि वे जानते थे कि उनके पिता बहुत बड़े शत्रु थे, फिर भी, वे आशीर्वाद माँग रहे हैं, "इन बेचारे को मुक्त कर दिया जाए ," तो भगवान नृसिंहदेव ने अाश्वासन दिया, कहा, " मेरे प्रिय प्रह्लाद, न केवल तुम्हारे पिता, लेकिन तुम्हारे पिता के पिता, उनके पिता, चौदह पीढ़ी तक, सभी मुक्त हैं । क्योंकि तुम्हारा इस परिवार में जन्म हुआ है ।"

तो जो कोई भी वैष्णव बनता है, भगवान का भक्त, वह परिवार की सबसे उत्तम सेवा कर रहा है । क्योंकि उसके संबंध में, उसके पिता, माता, कोई भी है, वे मुक्त हो जाएँगे । जैसा कि हमे अनुभव है, अगर एक व्यक्ति समय से पूर्व युद्ध में मारा जाता है, उसके परिवार का सरकार द्वारा ध्यान रखा जाता है । इसी तरह, एक भक्त बनना सबसे बड़ी योग्यता है । उसे सब कुछ मिल जाता है । यत्र योगेश्वर हरि: यत्र धनुर्-धर: पार्थ: (भ.गी. १८.७८) । जहाँ कृष्ण हैं और जहाँ भक्त है, वहाँ विजय है, गौरव है । यह निश्चित है ।