HI/Prabhupada 0951 - आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत परिपक्व फल है: Difference between revisions

 
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तो कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है, कि यह व्यक्ति को हर चीज़ में परिपूर्ण बना देता है । ज्ञान में परिपूर्ण, बल में परिपूर्ण, उम्र में परिपूर्ण, सब में । हमें कई चीजों की जरूरत है । तो जीवन की यह पूर्णता, प्रक्रिया कि कैसे जीवन परिपूर्ण को बनाया जा सकता है, श्री कृष्ण से चली आ रही है । श्री कृष्ण, वे सब कुछ के मूल हैं । इसलिए ज्ञान की पूर्णता भी उन्हीं से चली अा रही है, अौर समय-समय पर, - समय-समय पर लाखों करोड़ों साल के बाद - श्री कृष्ण अाते हैं । वे ब्रह्मा के एक दिन में एक बार आते हैं । तो ब्रह्मा के दिन, एक दिन भी , एक दिन की अवधि, इसकी गणना करना बहुत मुश्किल है । सहस्र युग पर्यंतम अर्हद ब्र्हमणो विदु: ( भ गी ८।१७ ) ब्रह्मा का एक दिन मलतब लगभग ४३३ लाख साल । तो ब्रह्मा के प्रत्येक दिन में, श्री कृष्ण अाते हैं, एक बार एक दिन में । इसका मतलब है कि वे आते हैं ४३३ लाख साल की अवधि के बाद । क्यूँ ? जीवन का परिपूर्ण ज्ञान देने के लिए, कैसे मनुष्य को जीना चाहिए, जीवन का परिपूर्ण बनने के लिए । तो भगवद गीता है, श्री कृष्ण द्वारा बोली गई इस सहस्राब्दी में, अाज । अब ब्रह्मा के एक दिन में हम २८ सहस्राब्दी से गुजर रहे हैं । नहीं, २८....ब्रह्मा के एक दिन में इकहत्तर मानु हैं, और एक मनु रहता है ... यह भी कई लाखों साल के लिए, बहत्तर सहस्त्राब्दि
तो कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है, कि यह व्यक्ति को हर चीज़ में परिपूर्ण बना देता है । ज्ञान में परिपूर्ण, बल में परिपूर्ण, उम्र में परिपूर्ण, सब में । हमें कई चीजों की जरूरत है । तो जीवन की यह पूर्णता, प्रक्रिया कि कैसे जीवन परिपूर्ण को बनाया जा सकता है, श्री कृष्ण से चली आ रही है । श्री कृष्ण, वे हर किसी के मूल हैं । इसलिए ज्ञान की पूर्णता भी उन्हीं से चली अा रही है, अौर समय-समय पर, समय-समय पर लाखों करोड़ों साल के बाद - श्री कृष्ण अाते हैं । वे ब्रह्मा के एक दिन में एक बार आते हैं । तो ब्रह्मा के दिन, एक दिन भी, एक दिन की अवधि, इसकी गणना करना बहुत मुश्किल है । सहस्र युग पर्यंतम अर्हद ब्रह्मणो विदु: ([[HI/BG 8.17|.गी. ८.१७]]) | ब्रह्मा का एक दिन मलतब लगभग ४३३ करोड़ साल ।  


तो हमें कोई दिलचस्पी नहीं है परिपूर्ण ज्ञान की गणना में । यह परिपूर्ण ज्ञान भगवान से आता है, या श्री कृष्ण, और यह परम्परा द्वारा, परम्परा प्रणाली द्वारा वितरित किया जाता है । उदाहरण है, एक आम का पेड़ । आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत ही परिपक्व फल है, और उस फल को चखना है । तो अगर मैं ऊपर से फल को गिराऊँ, तो यह खराब हो जाएगा इसलिए यह सौंपा जाता है, एक के बाद एक, ... फिर यह नीचे आता है तो ज्ञान की वैदिक प्रक्रिया अाचार्यों से ली जाती है । और यह परम्परा के माध्यम से नीचे आती है । जैसे मैंने पहले से ही समझाया है, श्री कृष्ण ज्ञान देते हैं, परिपूर्ण ज्ञान, ब्रह्म को, और ब्रह्मा नारद को ज्ञान देते हैं नारद व्यास को ज्ञान देते हैं । व्यास मध्वाचार्य को ज्ञान देते हैं । मध्वाचार्य ज्ञान देते हैं परम्परा में, बाद में, माधवेन्द्र पूरी को माधवेन्द्र पुरी ईश्वर पुरी को ज्ञान देते हैं । ईश्वर पुरी चैतन्य महाप्रभु को ज्ञान देते हैं, प्रभु चैतन्य । वे यह ज्ञान अपने शिष्यों को देते हैं, छह गोस्वामी । छह गस्वामी यह ज्ञान श्रीनिवास आचार्य, जीव गोस्वामी को देते हैं फिर कविराज गोस्वामी, फिर विश्वनाथ चक्रवर्ती, फिर जगन्नाथ दास बाबाजी, फिर भक्तिविनोद ठाकुर, फिर गौर किशोर दास बाबाजी महाराज, तो मेरे आध्यात्मिक गुरु, भक्तिसिद्धांत सरस्वती । फिर हम वही ज्ञान बाँट रहे हैं
तो ब्रह्मा के प्रत्येक दिन में, श्री कृष्ण अाते हैं, एक बार एक दिन में इसका मतलब है कि वे आते हैं ४३३ करोड़ साल की अवधि के बाद । क्यूँ ? जीवन का परिपूर्ण ज्ञान देने के लिए, कैसे मनुष्य को जीना चाहिए, जीवन को परिपूर्ण बनने के लिए तो भगवद गीता है, श्री कृष्ण द्वारा बोली गई इस सहस्राब्दी में, अाज अब ब्रह्मा के एक दिन में हम २८ सहस्राब्दी से गुजर रहे हैं । नहीं, २८.... ब्रह्मा के एक दिन में इकहत्तर मानु हैं, और एक मनु रहता है... यह भी कई लाखों साल के लिए, बहत्तर सहस्त्राब्दि । तो हमें  कोई दिलचस्पी नहीं है परिपूर्ण ज्ञान की गणना में ।  


भक्तों: जय प्रभुपाद ! हारिबोल !
यह परिपूर्ण ज्ञान भगवान, या कृष्ण, से आता है, और यह परम्परा द्वारा, परम्परा प्रणाली द्वारा वितरित किया जाता है । उदाहरण है, एक आम का पेड़ । आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत ही परिपक्व फल है, और उस फल को चखना है । तो अगर मैं ऊपर से फल को गिराऊँ, तो यह खराब हो जाएगा । इसलिए यह सौंपा जाता है, एक के बाद एक... फिर यह नीचे आता है । तो ज्ञान की वैदिक प्रक्रिया अाचार्यों से ली जाती है । और यह परम्परा के माध्यम से नीचे आती है । जैसे मैंने पहले से ही समझाया है, श्री कृष्ण ज्ञान देते हैं, परिपूर्ण ज्ञान, ब्रह्मा को, और ब्रह्मा नारद को ज्ञान देते हैं । नारद व्यास को ज्ञान देते हैं । व्यास मध्वाचार्य को ज्ञान देते हैं । मध्वाचार्य ज्ञान देते हैं परम्परा में, बाद में, माधवेन्द्र पूरी को । माधवेन्द्र पुरी ईश्वर पुरी को ज्ञान देते हैं । ईश्वर पुरी चैतन्य महाप्रभु को ज्ञान देते हैं, प्रभु चैतन्य । वे यह ज्ञान अपने शिष्यों को देते हैं, छह गोस्वामी । छह गस्वामी यह ज्ञान श्रीनिवास आचार्य, जीव गोस्वामी को देते हैं । फिर कविराज गोस्वामी, फिर विश्वनाथ चक्रवर्ती, फिर जगन्नाथ दास बाबाजी, फिर भक्तिविनोद ठाकुर, फिर गौर किशोर दास बाबाजी महाराज, फिर मेरे आध्यात्मिक गुरु, भक्तिसिद्धांत सरस्वती । फिर हम वही ज्ञान बाँट रहे हैं ।


प्रभुपाद: हम ज्ञान का निर्माण नहीं करते हैं, क्योंकि कैसे हम ज्ञान का निर्माण नहीं कर सकते हैं ? परिपूर्ण ज्ञान मतलब मुझे पूर्ण होना चाहिए । लेकिन मैं पूर्ण नहीं हूँ । हम में से हर एक, जब मैं बोल रहा था, क्योंकि ... हमारे पूर्ण नहीं है क्योंकि बद्ध जीवन के चार दोष हैं । पहला दोष हम गलती करते हैं । हम में से यहां जो बैठे हैं, कोई भी यह कह नहीं सकता है कि उसने जीवन में कोई गलती नहीं की है । नहीं, यह स्वाभाविक है । " गलती करना मानवता है ।"
भक्त: जय प्रभुपाद ! हरिबोल !
 
प्रभुपाद: हम ज्ञान का निर्माण नहीं करते हैं, क्योंकि कैसे हम ज्ञान का निर्माण कर सकते हैं ? परिपूर्ण ज्ञान मतलब मुझे पूर्ण होना चाहिए । लेकिन मैं पूर्ण नहीं हूँ । हम में से हर एक, जब मैं बोल रहा था, क्योंकि... हम पूर्ण नहीं है क्योंकि बद्ध जीवन के चार दोष हैं । पहला दोष हम गलती करते हैं । हम में से यहां जो बैठे हैं, कोई भी यह कह नहीं सकता है कि उसने जीवन में कोई गलती नहीं की है । नहीं, यह स्वाभाविक है । "गलती करना मनुष्य का स्वभाव है ।"  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



720902 - Lecture Festival Sri Vyasa-puja - New Vrindaban, USA

तो कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है, कि यह व्यक्ति को हर चीज़ में परिपूर्ण बना देता है । ज्ञान में परिपूर्ण, बल में परिपूर्ण, उम्र में परिपूर्ण, सब में । हमें कई चीजों की जरूरत है । तो जीवन की यह पूर्णता, प्रक्रिया कि कैसे जीवन परिपूर्ण को बनाया जा सकता है, श्री कृष्ण से चली आ रही है । श्री कृष्ण, वे हर किसी के मूल हैं । इसलिए ज्ञान की पूर्णता भी उन्हीं से चली अा रही है, अौर समय-समय पर, समय-समय पर लाखों करोड़ों साल के बाद - श्री कृष्ण अाते हैं । वे ब्रह्मा के एक दिन में एक बार आते हैं । तो ब्रह्मा के दिन, एक दिन भी, एक दिन की अवधि, इसकी गणना करना बहुत मुश्किल है । सहस्र युग पर्यंतम अर्हद ब्रह्मणो विदु: (भ.गी. ८.१७) | ब्रह्मा का एक दिन मलतब लगभग ४३३ करोड़ साल ।

तो ब्रह्मा के प्रत्येक दिन में, श्री कृष्ण अाते हैं, एक बार एक दिन में । इसका मतलब है कि वे आते हैं ४३३ करोड़ साल की अवधि के बाद । क्यूँ ? जीवन का परिपूर्ण ज्ञान देने के लिए, कैसे मनुष्य को जीना चाहिए, जीवन को परिपूर्ण बनने के लिए । तो भगवद गीता है, श्री कृष्ण द्वारा बोली गई इस सहस्राब्दी में, अाज । अब ब्रह्मा के एक दिन में हम २८ सहस्राब्दी से गुजर रहे हैं । नहीं, २८.... ब्रह्मा के एक दिन में इकहत्तर मानु हैं, और एक मनु रहता है... यह भी कई लाखों साल के लिए, बहत्तर सहस्त्राब्दि । तो हमें कोई दिलचस्पी नहीं है परिपूर्ण ज्ञान की गणना में ।

यह परिपूर्ण ज्ञान भगवान, या कृष्ण, से आता है, और यह परम्परा द्वारा, परम्परा प्रणाली द्वारा वितरित किया जाता है । उदाहरण है, एक आम का पेड़ । आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत ही परिपक्व फल है, और उस फल को चखना है । तो अगर मैं ऊपर से फल को गिराऊँ, तो यह खराब हो जाएगा । इसलिए यह सौंपा जाता है, एक के बाद एक... फिर यह नीचे आता है । तो ज्ञान की वैदिक प्रक्रिया अाचार्यों से ली जाती है । और यह परम्परा के माध्यम से नीचे आती है । जैसे मैंने पहले से ही समझाया है, श्री कृष्ण ज्ञान देते हैं, परिपूर्ण ज्ञान, ब्रह्मा को, और ब्रह्मा नारद को ज्ञान देते हैं । नारद व्यास को ज्ञान देते हैं । व्यास मध्वाचार्य को ज्ञान देते हैं । मध्वाचार्य ज्ञान देते हैं परम्परा में, बाद में, माधवेन्द्र पूरी को । माधवेन्द्र पुरी ईश्वर पुरी को ज्ञान देते हैं । ईश्वर पुरी चैतन्य महाप्रभु को ज्ञान देते हैं, प्रभु चैतन्य । वे यह ज्ञान अपने शिष्यों को देते हैं, छह गोस्वामी । छह गस्वामी यह ज्ञान श्रीनिवास आचार्य, जीव गोस्वामी को देते हैं । फिर कविराज गोस्वामी, फिर विश्वनाथ चक्रवर्ती, फिर जगन्नाथ दास बाबाजी, फिर भक्तिविनोद ठाकुर, फिर गौर किशोर दास बाबाजी महाराज, फिर मेरे आध्यात्मिक गुरु, भक्तिसिद्धांत सरस्वती । फिर हम वही ज्ञान बाँट रहे हैं ।

भक्त: जय प्रभुपाद ! हरिबोल !

प्रभुपाद: हम ज्ञान का निर्माण नहीं करते हैं, क्योंकि कैसे हम ज्ञान का निर्माण कर सकते हैं ? परिपूर्ण ज्ञान मतलब मुझे पूर्ण होना चाहिए । लेकिन मैं पूर्ण नहीं हूँ । हम में से हर एक, जब मैं बोल रहा था, क्योंकि... हम पूर्ण नहीं है क्योंकि बद्ध जीवन के चार दोष हैं । पहला दोष हम गलती करते हैं । हम में से यहां जो बैठे हैं, कोई भी यह कह नहीं सकता है कि उसने जीवन में कोई गलती नहीं की है । नहीं, यह स्वाभाविक है । "गलती करना मनुष्य का स्वभाव है ।"