HI/Prabhupada 0512 - जो भौतिक प्रकृति के समक्ष आत्मसमर्पण करता है, उसे भुगतना पड़ता है: Difference between revisions

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यस्यात्म-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके
:यस्यात्म-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके  
स्व-धि: कलत्रादिशु भौम इज्य-धि:
:स्व-धि: कलत्रादिशु भौम इज्य-धि:  
यत तीर्थ-बुद्धि: शलिले न कर्हिचिज
:यत तीर्थ-बुद्धि: सलिले न कर्हिचिज  
जनेशु अभिज्ञेशु स एव गो-खर:
:जनेशु अभिज्ञेशु स एव गो-खर:
:([[Vanisource:SB 10.84.13|श्री भ १०।८४।१३]])
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गो-खर: गो खर: का मतलब है गधे और गाए ।
गो-खर: गो-खर: का मतलब है गधे और गाए । तो यह सभ्यता, आधुनिक सभ्यता, आत्मा की कोई जानकारी नहीं होने से, यह केवल, बस जानवरों का एक झुंड है, बस । इसलिए वे परवाह नहीं करते हैं कि उनकी गतिविधियों का अंजाम क्या होगा, वे पवित्र, धर्मपरायणता और शातिर गतिविधियों की परवाह नहीं करते हैं । वे सब कुछ लेते हैं... यही अासुरिक सभ्यता है । प्रवृत्तिम च निवृत्तिम च न विदुर अासुर-जना: ([[HI/BG 16.7|भ.गी. १६.७]]) | आसुर-जन, का मतलब ये दुष्ट या असुर, नास्तिक, मूर्ख, दुष्ट, वे प्रवृत्ति और ​​निवृत्ति नहीं जानते हैं । प्रवृत्ति का मतलब है कि किन मामलों में हमें दिलचस्पि लेनी चाहिए, यह प्रवृत्ति कहा जाता है । और निवृत्ति का मतलब है किन मामलों में हमें दिलचस्पि नहीं लेनी चाहिए, या त्याग करने की कोशिश करनी चाहिए । आसुर-जन, वे नहीं जानते ।  


तो यह सभ्यता, आधुनिक सभ्यता, आत्मा की कोई जानकारी नहीं होने से, यह केवल, बस जानवरों का एक झुंड है, बस । इसलिए वे परवाह नहीं करते हैं कि उनकी गतिविधियों का अंजाम क्या होगा, वे पवित्र, धर्मपरायणता और शातिर गतिविधियों की परवाह नहीं करते हैं । वे सब कुछ लेते हैं ... यही अासुरिक सभ्यता है । प्रवृत्तिम च निवृत्तिम् च न विदुर अासुर-जना: ([[Vanisource:BG 16.7|भ गी १६।७]]) असुर-जन, का मतलब ये दुष्ट या असुर, नास्तिक, मूर्ख, दुष्ट, वे प्रवृत्ति और ​​निवृत्ति नहीं जानते हैं । प्रवृत्ति का मतलब है कि किन मामलों में हमें दिलचस्पि लेनी चाहिए, यह प्रवृत्ति कहा जाता है । और निवृत्ति का मतलब है किन मामलों में हमें दिलचस्पि लेनी चाहिए, या त्याग करने की कोशिश करनी चाहिए । असुर-जन, वे नहीं जानते । जैसे हमारा प्रवृत्ति के अोर झुकाव है, लोके व्यवाय अामिश मद-सेवा नित्यस्य जनतु: हर जीव को भौतिक ... दो प्रकृति हैं, आध्यात्मिक और भौतिक भौतिक दृष्टि से, सेक्स का आनंद और मांस खाने का झुकाव - अामिश, अामिश का मतलब है मांस खाना, मांस और मछली, ऐसे । यही अामिश कहा जाता है । माँसाहारी मतलब है निरामिश । तो अामिश और मद और व्यवाय । व्यवाय का मतलब है सेक्स । लोके व्यवाय अामिश मद-सेवा सेक्स भोग और मांस खाना, मांस, अंडा, और शराब पीना । मद । मद का मतलब है, शराब । नित्यस्य जनतु: जन्तु । जब हम भौतिक संसार में हैं तब हमें जन्तु कहा जाता है । जन्तु का मतलब है जानवर । हालाँकि वह जीव है, उसे जीव आत्मा नहीं कहा जाता है । उसे जन्तु जाता है । जन्तुर देहोपपत्तये । जन्तु । यह भौतिक शरीर जन्तु के विकास के लिए हैं पशु । जो कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान से रहित है, वह जन्तु कहलाता है, या जानवर । यह शस्त्रिक निषेधाज्ञा है । जन्तुर देहोपपत्तये । किसे यह भौतिक शरीर मिलता है? जन्तु, पशु । तो, जब तक हमें मिलता है, लगातार या इस भौतिक शरीर को बदलते हैं हम जन्तु रहते हैं, पशु । क्लेशद अास देह: । एक जन्तु, पशु, बर्दाश्त कर सकता है, या वह बर्दाश्त करने पर मजबूर है । जैसे एक बैल की तरह गाड़ी से जुडी हुई और मार खाती हुई । उसे सहन करना पड़ता है । वह इससे बाहर नहीं मिल सकता है । इसी तरह, जब वे मारे जाने के लिए क़साईख़ाना में ले जाएजात हैं, उसे यह सहन करना पड़ता है । कोई रास्ता नहीं है । इसे जन्तु कहा जाता है । तो जो भौतिक प्रकृति के समक्ष आत्मसमर्पण करता है, उसे भुगतना पड़ता है । उसे भुगतना पड़ता है । कोई रास्ता नहीं है । तुमने इस शरीर को स्वीकार किया है। तुम्हे भुगतना होगा । क्लेशद अास देह: । भौतिक शरीर का मतलब है पीड़ा । तो वे यह नहीं जानते । वे कई योजना बना रहे हैं कि कैसे खुश रहा जाए । कैसे शांतिपूर्ण रहें किसी भी दयनीय हालत के बिना, लेकिन ये दुष्ट, वे नहीं जानते हैं कि जब तक तुम्हाा यह भौतिक शरीर है, एक राजा का शरीर या एक चींटी का शरीर - तुम्हे पीड़ित होना होगा । वे नहीं जानते । इसलिए कृष्ण यहाँ कहते हैं कि तुम आत्मा का ध्यान रखो । तस्माद एवं । तस्माद एवं विदित्वा । आत्मा महत्वपूर्ण है केवल यह समझने की कोशिश करो । तुम्हे इस शरीर के लिए विलाप करना नहीं है । यह पहले से ही तय हो चुका है । इतना दुख, इतना आराम, तुम्हे मिलेगा । हालांकि शरीर, भौतिक शरीर ... क्योंकि यह भौतिक शरीर भी तीन गुणों के अनुसार बनाया जाता है । कारणम् गुण-संगो अस्य सद-असद जन्म योनिशू ([[Vanisource:BG 13.22|भ गी १३।२२]])
जैसे हमें प्रवृत्ति झुकाव है, लोके व्यवाय अामिष मद-सेवा नित्यस्य जंतु: | हर जीव को भौतिक... दो प्रकृति हैं, आध्यात्मिक और भौतिक | भौतिक दृष्टि से, यौन का आनंद और मांस खाने का झुकाव - अामिष, अामिष का मतलब है मांस खाना, मांस और मछली, ऐसे । यही अामिष कहा जाता है । माँसाहारी मतलब है निरामिष । तो अामिश और मद और व्यवाय । व्यवाय का मतलब है यौन जीवन । लोके व्यवाय अामिश मद-सेवा | यौन भोग और मांस खाना, मांस, अंडा, और शराब पीना । मद । मद का मतलब है, शराब । नित्यस्य जंतु: | जंतु । जब हम भौतिक संसार में हैं तब हमें जन्तु कहा जाता है । जन्तु का मतलब है जानवर । हालाँकि वह जीव है, उसे जीव आत्मा नहीं कहा जाता है । उसे जन्तु जाता है । जन्तुर देहोपपत्तये । जन्तु । यह भौतिक शरीर जन्तु, पशु, के विकास के लिए हैं । जो कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान से रहित है, वह जन्तु कहलाता है, या जानवर । यह शास्त्रीक आज्ञा है ।  
 
जन्तुर देहोपपत्तये । किसे यह भौतिक शरीर मिलता है ? जन्तु, पशु । तो, जब तक हमें मिलता है, लगातार या इस भौतिक शरीर को बदलते हैं, हम जन्तु रहते हैं, पशु । क्लेशद अास देह: । एक जन्तु, पशु, बर्दाश्त कर सकता है, या वह बर्दाश्त करने पर मजबूर है । जैसे एक बैल की तरह - गाड़ी से जुडी हुई और मार खाती हुई । उसे सहन करना पड़ता है । वह इससे बाहर नहीं निकल सकता । इसी तरह, जब वे मारे जाने के लिए क़साईख़ाने में ले जाए जाते हैं, उसे यह सहन करना पड़ता है । कोई रास्ता नहीं है । इसे जन्तु कहा जाता है । तो जो भौतिक प्रकृति के समक्ष आत्मसमर्पण करता है, उसे भुगतना पड़ता है । उसे भुगतना पड़ता है । कोई रास्ता नहीं है । तुमने इस शरीर को स्वीकार किया है । तुम्हे भुगतना होगा ।  
 
क्लेशद अास देह: । भौतिक शरीर का मतलब है पीड़ा । तो वे यह नहीं जानते । वे कई योजना बना रहे हैं कि कैसे खुश रहा जाए । कैसे शांतिपूर्ण रहें किसी भी दयनीय हालत के बिना, लेकिन ये दुष्ट, वे नहीं जानते हैं कि जब तक तुम्हारा यह भौतिक शरीर है, एक राजा का शरीर या एक चींटी का शरीर - तुम्हे पीड़ित होना होगा । वे नहीं जानते । इसलिए कृष्ण यहाँ कहते हैं कि तुम आत्मा का ध्यान रखो । तस्माद एवम । तस्माद एवम विदित्वा । केवल यह समझने की कोशिश करो की आत्मा महत्वपूर्ण है । तुम्हे इस शरीर के लिए विलाप करना नहीं है । यह पहले से ही तय हो चुका है । इतना दुख, इतना आराम, तुम्हे मिलेगा । हालांकि शरीर, भौतिक शरीर... क्योंकि यह भौतिक शरीर भी तीन गुणों के अनुसार बनाया जाता है । कारणम गुण-संगो अस्य सद-असद जन्म योनिषु ([[HI/BG 13.22|भ.गी. १३.२२]]) |
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 2.25 -- London, August 28, 1973

यस्यात्म-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके
स्व-धि: कलत्रादिशु भौम इज्य-धि:
यत तीर्थ-बुद्धि: सलिले न कर्हिचिज
जनेशु अभिज्ञेशु स एव गो-खर:
(श्रीमद भागवतम १०.८४.१३)

गो-खर: । गो-खर: का मतलब है गधे और गाए । तो यह सभ्यता, आधुनिक सभ्यता, आत्मा की कोई जानकारी नहीं होने से, यह केवल, बस जानवरों का एक झुंड है, बस । इसलिए वे परवाह नहीं करते हैं कि उनकी गतिविधियों का अंजाम क्या होगा, वे पवित्र, धर्मपरायणता और शातिर गतिविधियों की परवाह नहीं करते हैं । वे सब कुछ लेते हैं... यही अासुरिक सभ्यता है । प्रवृत्तिम च निवृत्तिम च न विदुर अासुर-जना: (भ.गी. १६.७) | आसुर-जन, का मतलब ये दुष्ट या असुर, नास्तिक, मूर्ख, दुष्ट, वे प्रवृत्ति और ​​निवृत्ति नहीं जानते हैं । प्रवृत्ति का मतलब है कि किन मामलों में हमें दिलचस्पि लेनी चाहिए, यह प्रवृत्ति कहा जाता है । और निवृत्ति का मतलब है किन मामलों में हमें दिलचस्पि नहीं लेनी चाहिए, या त्याग करने की कोशिश करनी चाहिए । आसुर-जन, वे नहीं जानते ।

जैसे हमें प्रवृत्ति झुकाव है, लोके व्यवाय अामिष मद-सेवा नित्यस्य जंतु: | हर जीव को भौतिक... दो प्रकृति हैं, आध्यात्मिक और भौतिक | भौतिक दृष्टि से, यौन का आनंद और मांस खाने का झुकाव - अामिष, अामिष का मतलब है मांस खाना, मांस और मछली, ऐसे । यही अामिष कहा जाता है । माँसाहारी मतलब है निरामिष । तो अामिश और मद और व्यवाय । व्यवाय का मतलब है यौन जीवन । लोके व्यवाय अामिश मद-सेवा | यौन भोग और मांस खाना, मांस, अंडा, और शराब पीना । मद । मद का मतलब है, शराब । नित्यस्य जंतु: | जंतु । जब हम भौतिक संसार में हैं तब हमें जन्तु कहा जाता है । जन्तु का मतलब है जानवर । हालाँकि वह जीव है, उसे जीव आत्मा नहीं कहा जाता है । उसे जन्तु जाता है । जन्तुर देहोपपत्तये । जन्तु । यह भौतिक शरीर जन्तु, पशु, के विकास के लिए हैं । जो कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान से रहित है, वह जन्तु कहलाता है, या जानवर । यह शास्त्रीक आज्ञा है ।

जन्तुर देहोपपत्तये । किसे यह भौतिक शरीर मिलता है ? जन्तु, पशु । तो, जब तक हमें मिलता है, लगातार या इस भौतिक शरीर को बदलते हैं, हम जन्तु रहते हैं, पशु । क्लेशद अास देह: । एक जन्तु, पशु, बर्दाश्त कर सकता है, या वह बर्दाश्त करने पर मजबूर है । जैसे एक बैल की तरह - गाड़ी से जुडी हुई और मार खाती हुई । उसे सहन करना पड़ता है । वह इससे बाहर नहीं निकल सकता । इसी तरह, जब वे मारे जाने के लिए क़साईख़ाने में ले जाए जाते हैं, उसे यह सहन करना पड़ता है । कोई रास्ता नहीं है । इसे जन्तु कहा जाता है । तो जो भौतिक प्रकृति के समक्ष आत्मसमर्पण करता है, उसे भुगतना पड़ता है । उसे भुगतना पड़ता है । कोई रास्ता नहीं है । तुमने इस शरीर को स्वीकार किया है । तुम्हे भुगतना होगा ।

क्लेशद अास देह: । भौतिक शरीर का मतलब है पीड़ा । तो वे यह नहीं जानते । वे कई योजना बना रहे हैं कि कैसे खुश रहा जाए । कैसे शांतिपूर्ण रहें किसी भी दयनीय हालत के बिना, लेकिन ये दुष्ट, वे नहीं जानते हैं कि जब तक तुम्हारा यह भौतिक शरीर है, एक राजा का शरीर या एक चींटी का शरीर - तुम्हे पीड़ित होना होगा । वे नहीं जानते । इसलिए कृष्ण यहाँ कहते हैं कि तुम आत्मा का ध्यान रखो । तस्माद एवम । तस्माद एवम विदित्वा । केवल यह समझने की कोशिश करो की आत्मा महत्वपूर्ण है । तुम्हे इस शरीर के लिए विलाप करना नहीं है । यह पहले से ही तय हो चुका है । इतना दुख, इतना आराम, तुम्हे मिलेगा । हालांकि शरीर, भौतिक शरीर... क्योंकि यह भौतिक शरीर भी तीन गुणों के अनुसार बनाया जाता है । कारणम गुण-संगो अस्य सद-असद जन्म योनिषु (भ.गी. १३.२२) |