HI/Prabhupada 0221 - मायावादी, उन्हे लगता है कि वे भगवान के साथ एक हो गए हैं: Difference between revisions
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जब श्री कृष्ण से अर्जुन ने पूछा कि - "आप कहते हैं कि भगवद गीता का यह तत्वज्ञान | जब श्री कृष्ण से अर्जुन ने पूछा कि - "आप कहते हैं कि भगवद गीता का यह तत्वज्ञान सूर्यदेव को आपने पढ़ाया था । मैं कैसे विश्वास करूँ?" - जवाब है, "बात यह है कि हम दोनों, हम मौजूद थे, लेकिन तुम भूल गए हो । मैं भूला नहीं।" यही कृष्ण और साधारण जीव के बीच का अंतर है ... वह पूर्ण हैं, हम पूर्ण नहीं हैं । हम कृष्ण का अधूरा, आंशिक भाग हैं । इसलिए हम कृष्ण द्वारा नियंत्रित किए जाना चाहिए । अगर हम कृष्ण के द्वारा नियंत्रित किया जाने के लिए सहमत नहीं होते हैं, तो हम भौतिक शक्ति द्वारा नियंत्रित किया जाऍगे । इस भुमिर अापो अनलो वायु: ([[HI/BG 7.4|भ.गी. ७.४]]) | दरअसल, हम आध्यात्मिक शक्ति हैं । हमें स्वेच्छा से कृष्ण द्वारा नियंत्रित किए जाने के लिए सहमत होना चाहिए । यही भक्तिमय सेवा है । यही भक्तिमय सेवा है । हम आध्यात्मिक शक्ति हैं, और कृष्ण परम आत्मा हैं । | ||
तो अगर हम कृष्ण द्वारा नियंत्रित होने के लिए सहमत होते हैं, तो हम आध्यात्मिक दुनिया में जाते हैं । अगर हम इस बात से सहमत हैं । कृष्ण हमारी छोटी सी स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप नहीं करते हैं । यथेच्छसि तथा कुरु ([[HI/BG 18.63|भ.गी. १८.६३]]) । कृष्ण अर्जुन से कहते हैं "तुम जो भी करना चाहो तुम कर सकते हो । " यह आजादी हमें मिली है । तो उस आजादी के तहत हम इस भौतिक दुनिया में आए हैं, आनंद लेने के लिए, तो कृष्ण ने हमें स्वतंत्रता दी है, "तुम ले सकते हो ।" और हम ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन परिणाम यह है हम उलझ रहे हैं । हमें इस भौतिक दुनिया में काम करने की आजादी दी जाती है । प्रत्येक व्यक्ति भौतिक संसार का मालिक बनने के लिए कोशिश कर रहा है । कोई भी नौकर बनने की कोशिश नहीं कर रहा है । केवल हम, वैष्णव, हम नौकर बनने की कोशिश कर रहे हैं । | |||
कर्मी और ज्ञानी, वे नौकर बनना पसंद नहीं करते हैं । वे हमारी आलोचना करते हैं, " आप वैष्णव, अापकी गुलामी की मानसिकता है ।" हाँ, हमें गुलामी की मानसिकता है ... चैतन्य महाप्रभु नें सिखाया है, गोपी-भर्तु-पद-कमलयोर, दास-दासानुदास ([[Vanisource:CC Madhya 13.80|चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०]]) | यही हमारी स्थिति है । "मैं मालिक हूँ", कृत्रिम रूप से दावा करने का क्या फायदा है? मैं मालिक होता, तो पंखा क्यों आवश्यक है? मैं गर्मी के मौसम के इस प्रभाव का दास हूं । इसी तरह, मैं नौकर हो जाऊँगा बहुत ज्यादा ठंड के मौसम में । तो हम हमेशा नौकर हैं । इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, जीवेर स्वरूप हौय नित्य-कृष्ण-दास ([[Vanisource:CC Madhya 20.108-109|चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८-१०९]]) | वास्तवमें, हमारी संवैधानिक स्थिति कृष्ण के शाश्वत नौकर होना है । कृष्ण सर्वोच्च नियंत्रक हैं । | |||
यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इस प्रयोजन के लिए है, कि इन मूर्ख व्यक्तियों या दुष्टों, मूढा ... मैं शब्द निर्माण नहीं कर रहा हूँ "मूर्ख" और "बदमाश " । यह श्री कृष्ण ने कहा है । न माम दुष्कृतीनो-मूढा प्रपद्यन्ते नराधमा:([[HI/BG 7.15|भ.गी. ७.१५]]) | उन्होंने उस तरह बात की है । आप पाअोगे । दुष्कृतीन: , हमेशा पापपूर्वक काम करना, और मूढा और दुष्ट, गधा । नराधमा:, मानव जाति का निम्न वर्ग । "ओह, आप हैं ...? कृष्ण, आप इन भौतिकवादी वैज्ञानिकों के बारे में बुरी बात कर रहे हैं? तो कई दार्शनिक हैं । वे सभी नराधमा: हैं?" "हाँ, वे नराधमा: हैं ।" "लेकिन वे शिक्षित हैं ।" "हाँ, यह भी है ..." लेकिन किस तरह की शिक्षा? मायया अपह्रत-ज्ञान: "उनकी शिक्षा का परिणाम - ज्ञान को माया नें ले लिया है । " जो जितना अधिक शिक्षित है, वह उतना ही नास्तिक है । वर्तमान समय में ... बेशक, शिक्षा का मतलब यह नहीं है ... शिक्षा का मतलब है समझना । ज्ञानी । | |||
शिक्षित, शिक्षित मतलब है बुद्धिमान व्यक्ति, शिक्षित व्यक्ति, ज्ञानी । वास्तविक ज्ञानी मतलब माम प्रद्यन्ते । बहूनाम जन्मनाम अंते ज्ञानवान माम प्रद्यन्ते ([[HI/BG 7.19|भ.गी. ७.१९]]) । यही शिक्षा है । शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि नास्तिक बनना " कोई भगवान नहीं है । मैं भगवान हूँ, आप भगवान हैं, हर कोई भगवान है ।" यह शिक्षा नहीं है । यह अज्ञान है । मायावादी, उन्हे लगता है कि वे भगवान के साथ एक हो गए हैं । यह शिक्षा नहीं है । | |||
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Latest revision as of 18:20, 17 September 2020
जब श्री कृष्ण से अर्जुन ने पूछा कि - "आप कहते हैं कि भगवद गीता का यह तत्वज्ञान सूर्यदेव को आपने पढ़ाया था । मैं कैसे विश्वास करूँ?" - जवाब है, "बात यह है कि हम दोनों, हम मौजूद थे, लेकिन तुम भूल गए हो । मैं भूला नहीं।" यही कृष्ण और साधारण जीव के बीच का अंतर है ... वह पूर्ण हैं, हम पूर्ण नहीं हैं । हम कृष्ण का अधूरा, आंशिक भाग हैं । इसलिए हम कृष्ण द्वारा नियंत्रित किए जाना चाहिए । अगर हम कृष्ण के द्वारा नियंत्रित किया जाने के लिए सहमत नहीं होते हैं, तो हम भौतिक शक्ति द्वारा नियंत्रित किया जाऍगे । इस भुमिर अापो अनलो वायु: (भ.गी. ७.४) | दरअसल, हम आध्यात्मिक शक्ति हैं । हमें स्वेच्छा से कृष्ण द्वारा नियंत्रित किए जाने के लिए सहमत होना चाहिए । यही भक्तिमय सेवा है । यही भक्तिमय सेवा है । हम आध्यात्मिक शक्ति हैं, और कृष्ण परम आत्मा हैं ।
तो अगर हम कृष्ण द्वारा नियंत्रित होने के लिए सहमत होते हैं, तो हम आध्यात्मिक दुनिया में जाते हैं । अगर हम इस बात से सहमत हैं । कृष्ण हमारी छोटी सी स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप नहीं करते हैं । यथेच्छसि तथा कुरु (भ.गी. १८.६३) । कृष्ण अर्जुन से कहते हैं "तुम जो भी करना चाहो तुम कर सकते हो । " यह आजादी हमें मिली है । तो उस आजादी के तहत हम इस भौतिक दुनिया में आए हैं, आनंद लेने के लिए, तो कृष्ण ने हमें स्वतंत्रता दी है, "तुम ले सकते हो ।" और हम ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन परिणाम यह है हम उलझ रहे हैं । हमें इस भौतिक दुनिया में काम करने की आजादी दी जाती है । प्रत्येक व्यक्ति भौतिक संसार का मालिक बनने के लिए कोशिश कर रहा है । कोई भी नौकर बनने की कोशिश नहीं कर रहा है । केवल हम, वैष्णव, हम नौकर बनने की कोशिश कर रहे हैं ।
कर्मी और ज्ञानी, वे नौकर बनना पसंद नहीं करते हैं । वे हमारी आलोचना करते हैं, " आप वैष्णव, अापकी गुलामी की मानसिकता है ।" हाँ, हमें गुलामी की मानसिकता है ... चैतन्य महाप्रभु नें सिखाया है, गोपी-भर्तु-पद-कमलयोर, दास-दासानुदास (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०) | यही हमारी स्थिति है । "मैं मालिक हूँ", कृत्रिम रूप से दावा करने का क्या फायदा है? मैं मालिक होता, तो पंखा क्यों आवश्यक है? मैं गर्मी के मौसम के इस प्रभाव का दास हूं । इसी तरह, मैं नौकर हो जाऊँगा बहुत ज्यादा ठंड के मौसम में । तो हम हमेशा नौकर हैं । इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, जीवेर स्वरूप हौय नित्य-कृष्ण-दास (चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८-१०९) | वास्तवमें, हमारी संवैधानिक स्थिति कृष्ण के शाश्वत नौकर होना है । कृष्ण सर्वोच्च नियंत्रक हैं ।
यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इस प्रयोजन के लिए है, कि इन मूर्ख व्यक्तियों या दुष्टों, मूढा ... मैं शब्द निर्माण नहीं कर रहा हूँ "मूर्ख" और "बदमाश " । यह श्री कृष्ण ने कहा है । न माम दुष्कृतीनो-मूढा प्रपद्यन्ते नराधमा:(भ.गी. ७.१५) | उन्होंने उस तरह बात की है । आप पाअोगे । दुष्कृतीन: , हमेशा पापपूर्वक काम करना, और मूढा और दुष्ट, गधा । नराधमा:, मानव जाति का निम्न वर्ग । "ओह, आप हैं ...? कृष्ण, आप इन भौतिकवादी वैज्ञानिकों के बारे में बुरी बात कर रहे हैं? तो कई दार्शनिक हैं । वे सभी नराधमा: हैं?" "हाँ, वे नराधमा: हैं ।" "लेकिन वे शिक्षित हैं ।" "हाँ, यह भी है ..." लेकिन किस तरह की शिक्षा? मायया अपह्रत-ज्ञान: "उनकी शिक्षा का परिणाम - ज्ञान को माया नें ले लिया है । " जो जितना अधिक शिक्षित है, वह उतना ही नास्तिक है । वर्तमान समय में ... बेशक, शिक्षा का मतलब यह नहीं है ... शिक्षा का मतलब है समझना । ज्ञानी ।
शिक्षित, शिक्षित मतलब है बुद्धिमान व्यक्ति, शिक्षित व्यक्ति, ज्ञानी । वास्तविक ज्ञानी मतलब माम प्रद्यन्ते । बहूनाम जन्मनाम अंते ज्ञानवान माम प्रद्यन्ते (भ.गी. ७.१९) । यही शिक्षा है । शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि नास्तिक बनना " कोई भगवान नहीं है । मैं भगवान हूँ, आप भगवान हैं, हर कोई भगवान है ।" यह शिक्षा नहीं है । यह अज्ञान है । मायावादी, उन्हे लगता है कि वे भगवान के साथ एक हो गए हैं । यह शिक्षा नहीं है ।