HI/Prabhupada 0238 - भगवान अच्छे हैं, वे सर्व अच्छे हैं: Difference between revisions

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तो अत: श्री कृष्ण-नामािद न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चै च मध्य १७।१३६]]) तो कृष्ण का यह व्यवहार, कैसे आम आदमी समझ सकता है? क्योंकि उनके पास साधारण इन्द्रियॉ हैं, इसलिए वे गलती करते हैं समझने में । क्यों कृष्ण? यहां तक ​​कि कृष्ण के भक्त, वैष्णव । यह भी कहा गया है । वैष्णव क्रिया मुद्रा विज्ञेह ना भुजहय ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चै च मध्य १७।१३६]]) यहां तक ​​कि एक वैष्णव आचार्य, वह क्या कर रहे हैं, यहां तक ​​कि सबसे विशेषज्ञ बुद्धिमान आदमी भी नहीं समझ सकता है कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं । इसलिए हमें उच्च अधिकारियों की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन हमें उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेश, निषेधाज्ञा, का पालन करना चाहिए । यह संभव नहीं है । कृष्ण लड़ने के लिए अर्जुन को उक्सा रहे हैं । इसका मतलब यह नहीं, कि हम भी ऐसा कर सकते हैं, उत्तेजित, नहीं । यह अनैतिक होगा । कृष्ण अनैतिक नहीं है । जो कुछ भी वे करते हैं.... भगवान अच्छे हैं, वे सर्व-अच्छे हैं । हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए । जो भी वे कर रहे हैं, वह सर्व-अच्छा है । यह एक पक्ष है । और जो कुछ मैं प्राधिकार के आदेश के बिना कर रहा हूँ, यह सब बुरा है । उन्हे किसी और से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है । ईश्वर: परम: कृष्ण: ( ब्र स ५।१) । वे सर्वोच्च नियंत्रक हैं । उन्हें किसी के भी निर्देश की आवश्यकता नहीं है । जो कुछ भी वे करते हैं, वह सही है । यह कृष्ण की समझ है । एसा नहीं कि मैं अपने तरीके में कृष्ण का अध्ययन करूँगा । कृष्ण तुम्हारी परीक्षा या तुम्हारे परीक्षण के अधीन नहीं हैं । वे सभी से ऊपर हैं । वे उत्कृष्ट हैं । इसलिए जिनकी दिव्य दृष्टि नहीं है, वे कृष्ण को गलत समझते हैं । यहां वे सीधे फुसला रहे हैं,
तो अत: श्री कृष्ण-नामािद न भवेद् ग्राह्यम इन्द्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६]]) | तो कृष्ण का यह व्यवहार, कैसे आम आदमी समझ सकता है ? क्योंकि उनके पास साधारण इन्द्रियाँ हैं, इसलिए वे गलती करते हैं समझने में । क्यों कृष्ण ? यहाँ तक ​​कि कृष्ण के भक्त, वैष्णव । यह भी कहा गया है । वैष्णव क्रिया मुद्रा विज्ञेह ना बुझाय ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६]]) | यहां तक ​​कि एक वैष्णव आचार्य, वह क्या कर रहे हैं, यहां तक ​​कि सबसे विशेषज्ञ बुद्धिमान आदमी भी नहीं समझ सकता है कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं । इसलिए हमें उच्च अधिकारियों की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन हमें उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेश, आज्ञा का पालन करना चाहिए । यह संभव नहीं है ।  


क्लैब्यम म स्म गम: पार्थ
कृष्ण लड़ने के लिए अर्जुन को उत्तेजित कर रहे हैं । इसका मतलब यह नहीं कि हम भी ऐसा कर सकते हैं, उत्तेजित, नहीं । यह अनैतिक होगा । कृष्ण अनैतिक नहीं है । जो कुछ भी वे करते हैं....  भगवान उत्तम हैं, वे सर्वोत्तम हैं  । हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए । जो भी वे कर रहे हैं, वह सर्वोत्तम है । यह एक पक्ष है । और जो कुछ मैं प्राधिकार के आदेश के बिना कर रहा हूँ, वह सब बुरा है । उन्हे किसी और से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है । ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.) । वे सर्वोच्च नियंत्रक हैं । उन्हें किसी के भी निर्देश की आवश्यकता नहीं है । जो कुछ भी वे करते हैं, वह सही है । यह कृष्ण की समझ है । एेसा नहीं कि मैं अपने तरीके में कृष्ण का अध्ययन करूँगा । कृष्ण तुम्हारी परीक्षा या तुम्हारे परीक्षण के अधीन नहीं हैं । वे सभी से ऊपर हैं । वे उत्कृष्ट हैं । इसलिए जिनकी दिव्य दृष्टि नहीं है, वे कृष्ण को गलत समझते हैं । यहाँ वे सीधे फुसला रहे हैं,
नैतत् तव्यै उपपद्यते
क्षूद्रम ह्रदय-दौर्बल्यम
तक्त्वोत्थिश्ट परन्तप:
:([[Vanisource:BG 2.3|भ गी २।३]])


परन्तप, यह शब्द, यही शब्द का प्रयोग किया जाता है, " आप एक क्षत्रिय हैं, आप राजा हैं । आपका काम है शरारत तत्वों को दंड देना । यह आपका काम है । आप शरारती तत्वों को माफ नहीं कर सकते हो ।" पूर्व में राजा इतने ... राजा खुद न्याय करते थे । राजा के सामने एक आपराधिक को लाया जाता, और अगर राजा को सही लगता, तो वह अपनी ही तलवार लेकर तुरंत उसका सिर में काट देता । यह राजा का कर्तव्य था । यहां तक ​​कि कई नहीं, कश्मीर में लगभग सौ साल पहले, वह राजा, जैसे ही एक चोर पकड़ा जाता, उसे पहले राजा के सामने लाया जाता, अौर अगर साबित हो जाता कि वह एक चोर था, कि उसने चोरी की है तुरंत राजा व्यक्तिगत रूप से उसके हाथ काट देता, काट देता । यहां तक ​​कि सौ साल पहले । इसलिए अन्य सभी चोरों चेतावनी दी जाती है, "यह तुम्हारी सजा है ।" तो कोई चोरी नहीं होती थी । कोई चोरी नहीं, कोई चोरी नहीं, कश्मीर में । यहां तक कि कोई सड़क पर कुछ खो देता था, वह नीचे ही पडा रहता। कोई भी उसे छूएगा नहीं । आदेश था, राजा का आदेश था, " अगर कुछ लावारिस सड़क पर पडा है तो तुम उसे छू नहीं सकते ।" जो उसे छोड़ गया है, वह आदमी आएगा, वह ले जाएगा । तुम नहीं ले सकते । " ये सौ साल पहले की बात है । तो यह मौत की सज़ा की आवश्यकता है । आजकल मौत की सज़ा माफ़ है । हत्यारों को फांसी पर लटका नहीं जा रहा है । यह सब गलती है, सब धूर्तता । एक कातिल को मार डाला जाना चाहिए । कोई दया नहीं । क्यों एक मानव हत्यारा? यहां तक ​​कि एक पशु के हत्यारे को तुरंत फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए । यही राज्य है । राजा को इतना सख्त होना चाहिए ।
:क्लैब्यम मा स्म गम: पार्थ
:नैतत् तव्यै उपपद्यते
:क्षुद्रम हृदय-दौर्बल्यम
:तक्त्वोतिष्ठ परन्तप:
:([[HI/BG 2.3|भ .गी २.३]])
 
 
परन्तप, यह शब्द, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, "आप एक क्षत्रिय हैं, आप राजा हैं । आपका काम है शरारती तत्वों को दंड देना । यह आपका काम है । आप शरारती तत्वों को माफ नहीं कर सकते हैं ।" पूर्व में राजा इतने ... राजा खुद न्याय करते थे । राजा के सामने एक आपराधी को लाया जाता, और अगर राजा को सही लगता, तो वह अपनी ही तलवार लेकर तुरंत उसका सिर काट देता । यह राजा का कर्तव्य था । यहाँ तक कि ज्यादा नहीं, कश्मीर में लगभग सौ साल पहले, वह राजा, जैसे ही एक चोर पकड़ा जाता, उसे पहले राजा के सामने लाया जाता, अौर अगर साबित हो जाता कि वह एक चोर था, उसने चोरी की है, तुरंत राजा व्यक्तिगत रूप से उसके हाथ काट देता । सौ साल पहले भी ।  
 
इसलिए अन्य सभी चोरों को चेतावनी दी जाती है, "यह तुम्हारी सज़ा है ।" तो कोई चोरी नहीं होती थी । कोई चोरी नहीं, कोई चोरी नहीं, कश्मीर में । यहां तक कि कोई सड़क पर कुछ खो देता था, वह नीचे ही पड़ा रहता। कोई भी उसे छूएगा नहीं । आदेश था, राजा का आदेश था, "अगर कुछ लावारिस सड़क पर पड़ा है तो तुम उसे छू नहीं सकते ।" जिस आदमी ने उसे छोड़ है, वह आएगा, वह ले जाएगा । तुम नहीं ले सकते ।" ये सौ साल पहले की बात है । तो यह मौत की सज़ा की आवश्यकता है । आजकल मौत की सज़ा माफ़ है । हत्यारों को फांसी पर लटकाया नहीं जा रहा । यह सब गलती है, सब धूर्तता । एक कातिल को मार ड़ाला जाना चाहिए । कोई दया नहीं । क्यों एक मानव हत्यारा ? यहाँ तक ​​कि एक पशु के हत्यारे को तुरंत फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए । यही राज्य है । राजा को इतना सख़्त होना चाहिए ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on BG 2.3 -- London, August 4, 1973

तो अत: श्री कृष्ण-नामािद न भवेद् ग्राह्यम इन्द्रियै: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६) | तो कृष्ण का यह व्यवहार, कैसे आम आदमी समझ सकता है ? क्योंकि उनके पास साधारण इन्द्रियाँ हैं, इसलिए वे गलती करते हैं समझने में । क्यों कृष्ण ? यहाँ तक ​​कि कृष्ण के भक्त, वैष्णव । यह भी कहा गया है । वैष्णव क्रिया मुद्रा विज्ञेह ना बुझाय (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६) | यहां तक ​​कि एक वैष्णव आचार्य, वह क्या कर रहे हैं, यहां तक ​​कि सबसे विशेषज्ञ बुद्धिमान आदमी भी नहीं समझ सकता है कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं । इसलिए हमें उच्च अधिकारियों की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन हमें उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेश, आज्ञा का पालन करना चाहिए । यह संभव नहीं है ।

कृष्ण लड़ने के लिए अर्जुन को उत्तेजित कर रहे हैं । इसका मतलब यह नहीं कि हम भी ऐसा कर सकते हैं, उत्तेजित, नहीं । यह अनैतिक होगा । कृष्ण अनैतिक नहीं है । जो कुछ भी वे करते हैं.... भगवान उत्तम हैं, वे सर्वोत्तम हैं । हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए । जो भी वे कर रहे हैं, वह सर्वोत्तम है । यह एक पक्ष है । और जो कुछ मैं प्राधिकार के आदेश के बिना कर रहा हूँ, वह सब बुरा है । उन्हे किसी और से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है । ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) । वे सर्वोच्च नियंत्रक हैं । उन्हें किसी के भी निर्देश की आवश्यकता नहीं है । जो कुछ भी वे करते हैं, वह सही है । यह कृष्ण की समझ है । एेसा नहीं कि मैं अपने तरीके में कृष्ण का अध्ययन करूँगा । कृष्ण तुम्हारी परीक्षा या तुम्हारे परीक्षण के अधीन नहीं हैं । वे सभी से ऊपर हैं । वे उत्कृष्ट हैं । इसलिए जिनकी दिव्य दृष्टि नहीं है, वे कृष्ण को गलत समझते हैं । यहाँ वे सीधे फुसला रहे हैं,

क्लैब्यम मा स्म गम: पार्थ
नैतत् तव्यै उपपद्यते
क्षुद्रम हृदय-दौर्बल्यम
तक्त्वोतिष्ठ परन्तप:
(भ .गी २.३)


परन्तप, यह शब्द, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, "आप एक क्षत्रिय हैं, आप राजा हैं । आपका काम है शरारती तत्वों को दंड देना । यह आपका काम है । आप शरारती तत्वों को माफ नहीं कर सकते हैं ।" पूर्व में राजा इतने ... राजा खुद न्याय करते थे । राजा के सामने एक आपराधी को लाया जाता, और अगर राजा को सही लगता, तो वह अपनी ही तलवार लेकर तुरंत उसका सिर काट देता । यह राजा का कर्तव्य था । यहाँ तक कि ज्यादा नहीं, कश्मीर में लगभग सौ साल पहले, वह राजा, जैसे ही एक चोर पकड़ा जाता, उसे पहले राजा के सामने लाया जाता, अौर अगर साबित हो जाता कि वह एक चोर था, उसने चोरी की है, तुरंत राजा व्यक्तिगत रूप से उसके हाथ काट देता । सौ साल पहले भी ।

इसलिए अन्य सभी चोरों को चेतावनी दी जाती है, "यह तुम्हारी सज़ा है ।" तो कोई चोरी नहीं होती थी । कोई चोरी नहीं, कोई चोरी नहीं, कश्मीर में । यहां तक कि कोई सड़क पर कुछ खो देता था, वह नीचे ही पड़ा रहता। कोई भी उसे छूएगा नहीं । आदेश था, राजा का आदेश था, "अगर कुछ लावारिस सड़क पर पड़ा है तो तुम उसे छू नहीं सकते ।" जिस आदमी ने उसे छोड़ है, वह आएगा, वह ले जाएगा । तुम नहीं ले सकते ।" ये सौ साल पहले की बात है । तो यह मौत की सज़ा की आवश्यकता है । आजकल मौत की सज़ा माफ़ है । हत्यारों को फांसी पर लटकाया नहीं जा रहा । यह सब गलती है, सब धूर्तता । एक कातिल को मार ड़ाला जाना चाहिए । कोई दया नहीं । क्यों एक मानव हत्यारा ? यहाँ तक ​​कि एक पशु के हत्यारे को तुरंत फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए । यही राज्य है । राजा को इतना सख़्त होना चाहिए ।