HI/Prabhupada 1013 - अगली मृत्यु से पहले हमें अति शीध्र प्रयास करना चाहिए: Difference between revisions
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रामेश्वर: | रामेश्वर: प्रेस में सभी भक्तों को तक तकअच्छा महसूस नहीं होगा जब तक अापकी सभी किताबें प्रकाशित नहीं हो जाती हैं । | ||
प्रभुपाद: हम्म। यह अच्छा है। (हंसी) | प्रभुपाद: हम्म। यह अच्छा है। (हंसी) | ||
जयतीर्थ : वे अब रात में भी काम कर रहे हैं । | जयतीर्थ: वे अब रात में भी काम कर रहे हैं । | ||
प्रभुपाद: ओह । | प्रभुपाद: ओह । | ||
रामेश्वर : चौबीस घंटे । | रामेश्वर: चौबीस घंटे । | ||
जयतिर्थ : चौबीस घंटे, ताकि हम मशीनों का पूरा लाभ ले सकें । | जयतिर्थ: चौबीस घंटे, ताकि हम मशीनों का पूरा लाभ ले सकें । | ||
प्रभुपाद: और हयग्रीव प्रभु, आप कितने | प्रभुपाद: और हयग्रीव प्रभु, आप कितने लेख खत्म कर रहे हैं ? आप कम से कम पचास लेख खत्म कर सकते हैं । | ||
हयग्रीव: मैं कोशिश कर रहा हूँ । एक घंटे का एक टेप । | हयग्रीव: मैं कोशिश कर रहा हूँ । एक घंटे का एक टेप । | ||
राधा-वल्लभ: हयग्रीव नें आज मध्य-लीला छह को समाप्त किया । | राधा-वल्लभ: हयग्रीव नें आज मध्य-लीला छह को समाप्त किया । | ||
प्रभुपाद: | प्रभुपाद: हु? | ||
राधा-वल्लभ: हयग्रीव ने आज मध्य-लीला छह का संपादन समाप्त किया । | राधा-वल्लभ: हयग्रीव ने आज मध्य-लीला छह का संपादन समाप्त किया । | ||
प्रभुपाद: ओह, चैतन्य-चरितामृत छह ? | प्रभुपाद: ओह, चैतन्य-चरितामृत छह ? | ||
राधा-वल्लभ: हाँ । नौ संस्करणों में से, हयग्रीव नें मध्य-लीला छह समाप्त कर दिया है । | राधा-वल्लभ: हाँ । नौ संस्करणों में से, हयग्रीव नें मध्य-लीला छह समाप्त कर दिया है । | ||
प्रभुपाद: कुल मिलाकर नौ संस्करण थे ? | प्रभुपाद: कुल मिलाकर नौ संस्करण थे ? | ||
रामेश्वर : मध्य-लीला के । | रामेश्वर: मध्य-लीला के । | ||
जयतीर्थ : मध्य-लीला, सभी नौ खंड । | जयतीर्थ: मध्य-लीला, सभी नौ खंड । | ||
राधा-वल्लभ: और चार खंड अन्त्य-लीला । | राधा-वल्लभ: और चार खंड अन्त्य-लीला । | ||
जयतिर्थ : कुल मिलाकर सोलह संस्करण । | जयतिर्थ: कुल मिलाकर सोलह संस्करण । | ||
प्रभुपाद: | प्रभुपाद: हमारे गर्गमुनि कहां है ? | ||
भवानंद: वह पूर्व बफेलो में | भवानंद: वह पूर्व में है, बफेलो में । | ||
प्रभुपाद: प्रचार ? | प्रभुपाद: प्रचार कर रहे है ? | ||
भवानंद: हाँ । | भवानंद: हाँ । | ||
प्रभुपाद: तो तुम उसके साथ हो, सुदामा ? | प्रभुपाद: तो तुम उसके साथ हो, सुदामा ? | ||
सुदामा: हाँ, श्रील प्रभुपाद । | सुदामा: हाँ, श्रील प्रभुपाद । | ||
प्रभुपाद: सब कुछ अच्छा चल रहा है ? | प्रभुपाद: सब कुछ अच्छा चल रहा है ? | ||
सुदामा: हाँ । ( | सुदामा: हाँ । (तोड़) | ||
जयतीर्थ : ... नें मुझे बताया कि पूरा चैतन्य-चरितामृत, संपादन करना, अगस्त के अंत तक खत्म हो जाएगा । | जयतीर्थ:... नें मुझे बताया कि पूरा चैतन्य-चरितामृत, संपादन करना, अगस्त के अंत तक खत्म हो जाएगा । | ||
प्रभुपाद: हम्म ? | प्रभुपाद: हम्म ? | ||
जयतीर्थ: | जयतीर्थ: पूरा चैतन्य-चरितामृत संपादन अगस्त के अंत तक खत्म हो जाएगा । | ||
प्रभुपाद: वे भी आ रहे हैं | प्रभुपाद: वे भी आ रहे हैं, निताई ? | ||
जयतीर्थ : निताई और जगन्नाथ अा रहे हैं ... | जयतीर्थ: निताई और जगन्नाथ अा रहे हैं... | ||
रामेश्वर : तीन दिनों में । | रामेश्वर: तीन दिनों में । | ||
जयतीर्थ: जुलाई के अंत तक वे ... तो यह अब बहुत तेजी से हो रहा है । | जयतीर्थ: जुलाई के अंत तक वे... तो यह अब बहुत तेजी से हो रहा है । | ||
प्रभुपाद: बहुत अच्छा है । तूर्णं यतेत । हमें प्रयास करना चाहिए, | प्रभुपाद: बहुत अच्छा है । तूर्णं यतेत ([[Vanisource:SB 11.9.29|श्रीमद भागवतम ११.९.२९]]) । हमें प्रयास करना चाहिए, अगली मृत्यु से पहले । और मृत्यु तो आएगी । तो हमें इस तरह से तैयार होना है की अगली मृत्यु से पहले, हम अपने कृष्ण भावनामृत के कार्य को समाप्त करें अौर वापस घर जाऍ, भगवद धाम । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति ([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]]) । यही पूर्णता है । क्योंकि अगर हम एक और जन्म का इंतजार करेंगे, वो शायद हमें न मिले । यहां तक कि भरत महाराज, वे भी फिसल गए । वे एक हिरण बन गये । | ||
तो हमें हमेशा सतर्क रहना होगा कि "हमें यह अवसर मिला है, मानव जीवन । हमें पूरी तरह इसका उपयोग करना होगा और भगवद धाम जाने के लिए योग्य बनना होगा ।" यही बुद्धिमत्ता है । यह नहीं कि "ठीक है, मुझे एक अौर मौका मिलेगा, अगला जन्म ।" यह बहुत अच्छी नीति नहीं है । तूर्णम । तूर्णम का अर्थ है जल्द से जल्द समाप्त करना । तूर्णम यतेत अनुमृत्यम पतेद यावत ([[Vanisource:SB 11.9.29|श्रीमद भागवतम ११.९.२९]]) । (सामने वाले स्टूडियो में कराटे का अभ्यास करते हुए पुरुषों की आवाज पूरे कमरे में व्याप्त होती है) ये लोग समय बर्बाद कर रहे हैं, जैसे कि वे हमेशा के लिए जीवित रहेंगे । (हॅसते हुए) इस का उपयोग क्या है कर...? कर ? | |||
जयतीर्थ: कराटे । | |||
प्रभुपाद: कराटे । यह मेक्सिको में बहुत लोकप्रिय है । | |||
जयतीर्थ: हर जगह । | |||
प्रभुपाद: लेकिन क्या यह विधि मौत से बचाएगी ? जब मृत्यु आएगी, क्या यह ध्वनि "गो" (हंसी) उन्हें बचाएगा ? यह मूर्खता है । हरे कृष्ण जपने की बजाय, वे कोई अौर ध्वनि निकाल रहे हैं, यह सोच कर कि वह ध्वनि उसे बचाएगी । यही मूर्खता कहलाती हैं, मूढा । (कराटे पुरुष बहुत जोर से चिल्लाना शुरू करते हैं, श्रद्धालु हँसते हैं) पिशाचि पाईले जने मति छ्न्न हय (प्रेम विवर्त) | अौर अगर तुम उनसे पूछते हो कि "क्यों तुम इतनी जोर से चिल्ला रहे हो ? हरे कृष्ण जपो," वे हँसेंगे । (हॅसते हुए) | |||
प्रभुपाद | विष्णुजन: श्रील प्रभुपाद, भक्तिविनोद ठाकुर का क्या मतलब था जब उन्होंने कहा, "मैं जा रहा हूं, मेरा काम अधूरा है ?' | ||
प्रभुपाद: हम्म ? | |||
प्रभुपाद: तो हमें खत्म करना होगा । हम भक्तिविनोद ठाकुर के वंशज हैं । तो उन्होंने अधूरा छोडा ताकि | विष्णुजन: जब भक्तिविनोद ठाकुर ने कहा कि वे इस लोक से जा रहे हैं अपना अधूरा काम छोड कर ? | ||
प्रभुपाद: तो हमें खत्म करना होगा । हम भक्तिविनोद ठाकुर के वंशज हैं । तो उन्होंने अधूरा छोडा ताकि हमें इसे खत्म करने का मौका मिले । यह उनकी दया है । वे तुरंत समाप्त कर सकते थे । वे वैष्णव हैं; वे सर्व शक्तिशाली हैं । लेकिन उन्होंने हमें मौका दिया है, "तुम मूर्ख लोग, तुम सभी भी काम करो ।" यह उनकी दया है । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
750620c - Arrival - Los Angeles
रामेश्वर: प्रेस में सभी भक्तों को तक तकअच्छा महसूस नहीं होगा जब तक अापकी सभी किताबें प्रकाशित नहीं हो जाती हैं ।
प्रभुपाद: हम्म। यह अच्छा है। (हंसी)
जयतीर्थ: वे अब रात में भी काम कर रहे हैं ।
प्रभुपाद: ओह ।
रामेश्वर: चौबीस घंटे ।
जयतिर्थ: चौबीस घंटे, ताकि हम मशीनों का पूरा लाभ ले सकें ।
प्रभुपाद: और हयग्रीव प्रभु, आप कितने लेख खत्म कर रहे हैं ? आप कम से कम पचास लेख खत्म कर सकते हैं ।
हयग्रीव: मैं कोशिश कर रहा हूँ । एक घंटे का एक टेप ।
राधा-वल्लभ: हयग्रीव नें आज मध्य-लीला छह को समाप्त किया ।
प्रभुपाद: हु?
राधा-वल्लभ: हयग्रीव ने आज मध्य-लीला छह का संपादन समाप्त किया ।
प्रभुपाद: ओह, चैतन्य-चरितामृत छह ?
राधा-वल्लभ: हाँ । नौ संस्करणों में से, हयग्रीव नें मध्य-लीला छह समाप्त कर दिया है ।
प्रभुपाद: कुल मिलाकर नौ संस्करण थे ?
रामेश्वर: मध्य-लीला के ।
जयतीर्थ: मध्य-लीला, सभी नौ खंड ।
राधा-वल्लभ: और चार खंड अन्त्य-लीला ।
जयतिर्थ: कुल मिलाकर सोलह संस्करण ।
प्रभुपाद: हमारे गर्गमुनि कहां है ?
भवानंद: वह पूर्व में है, बफेलो में ।
प्रभुपाद: प्रचार कर रहे है ?
भवानंद: हाँ ।
प्रभुपाद: तो तुम उसके साथ हो, सुदामा ?
सुदामा: हाँ, श्रील प्रभुपाद ।
प्रभुपाद: सब कुछ अच्छा चल रहा है ?
सुदामा: हाँ । (तोड़)
जयतीर्थ:... नें मुझे बताया कि पूरा चैतन्य-चरितामृत, संपादन करना, अगस्त के अंत तक खत्म हो जाएगा ।
प्रभुपाद: हम्म ?
जयतीर्थ: पूरा चैतन्य-चरितामृत संपादन अगस्त के अंत तक खत्म हो जाएगा ।
प्रभुपाद: वे भी आ रहे हैं, निताई ?
जयतीर्थ: निताई और जगन्नाथ अा रहे हैं...
रामेश्वर: तीन दिनों में ।
जयतीर्थ: जुलाई के अंत तक वे... तो यह अब बहुत तेजी से हो रहा है ।
प्रभुपाद: बहुत अच्छा है । तूर्णं यतेत (श्रीमद भागवतम ११.९.२९) । हमें प्रयास करना चाहिए, अगली मृत्यु से पहले । और मृत्यु तो आएगी । तो हमें इस तरह से तैयार होना है की अगली मृत्यु से पहले, हम अपने कृष्ण भावनामृत के कार्य को समाप्त करें अौर वापस घर जाऍ, भगवद धाम । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति (भ.गी. ४.९) । यही पूर्णता है । क्योंकि अगर हम एक और जन्म का इंतजार करेंगे, वो शायद हमें न मिले । यहां तक कि भरत महाराज, वे भी फिसल गए । वे एक हिरण बन गये ।
तो हमें हमेशा सतर्क रहना होगा कि "हमें यह अवसर मिला है, मानव जीवन । हमें पूरी तरह इसका उपयोग करना होगा और भगवद धाम जाने के लिए योग्य बनना होगा ।" यही बुद्धिमत्ता है । यह नहीं कि "ठीक है, मुझे एक अौर मौका मिलेगा, अगला जन्म ।" यह बहुत अच्छी नीति नहीं है । तूर्णम । तूर्णम का अर्थ है जल्द से जल्द समाप्त करना । तूर्णम यतेत अनुमृत्यम पतेद यावत (श्रीमद भागवतम ११.९.२९) । (सामने वाले स्टूडियो में कराटे का अभ्यास करते हुए पुरुषों की आवाज पूरे कमरे में व्याप्त होती है) ये लोग समय बर्बाद कर रहे हैं, जैसे कि वे हमेशा के लिए जीवित रहेंगे । (हॅसते हुए) इस का उपयोग क्या है कर...? कर ?
जयतीर्थ: कराटे ।
प्रभुपाद: कराटे । यह मेक्सिको में बहुत लोकप्रिय है ।
जयतीर्थ: हर जगह ।
प्रभुपाद: लेकिन क्या यह विधि मौत से बचाएगी ? जब मृत्यु आएगी, क्या यह ध्वनि "गो" (हंसी) उन्हें बचाएगा ? यह मूर्खता है । हरे कृष्ण जपने की बजाय, वे कोई अौर ध्वनि निकाल रहे हैं, यह सोच कर कि वह ध्वनि उसे बचाएगी । यही मूर्खता कहलाती हैं, मूढा । (कराटे पुरुष बहुत जोर से चिल्लाना शुरू करते हैं, श्रद्धालु हँसते हैं) पिशाचि पाईले जने मति छ्न्न हय (प्रेम विवर्त) | अौर अगर तुम उनसे पूछते हो कि "क्यों तुम इतनी जोर से चिल्ला रहे हो ? हरे कृष्ण जपो," वे हँसेंगे । (हॅसते हुए)
विष्णुजन: श्रील प्रभुपाद, भक्तिविनोद ठाकुर का क्या मतलब था जब उन्होंने कहा, "मैं जा रहा हूं, मेरा काम अधूरा है ?'
प्रभुपाद: हम्म ?
विष्णुजन: जब भक्तिविनोद ठाकुर ने कहा कि वे इस लोक से जा रहे हैं अपना अधूरा काम छोड कर ?
प्रभुपाद: तो हमें खत्म करना होगा । हम भक्तिविनोद ठाकुर के वंशज हैं । तो उन्होंने अधूरा छोडा ताकि हमें इसे खत्म करने का मौका मिले । यह उनकी दया है । वे तुरंत समाप्त कर सकते थे । वे वैष्णव हैं; वे सर्व शक्तिशाली हैं । लेकिन उन्होंने हमें मौका दिया है, "तुम मूर्ख लोग, तुम सभी भी काम करो ।" यह उनकी दया है ।