HI/Prabhupada 0437 - शंख बहुत शुद्ध और दिव्य माना जाता है: Difference between revisions

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अगर हम उपनिषद से संदर्भ दे सकते हैं, तो उसका तर्क बहुत मजबूत है । शब्द प्रमाण । प्रमाण का मतलब है सबूत । सबूत ... अगर तुम पक्ष मज़बूत करना चाहते हो ..... जैसे तुम्हे अदालत में बहुत अच्छा सबूत देना पडता है, इसी तरह, वैदिक संस्कृति के अनुसार, सबूत है प्रमाण । प्रमाण का मतलब है सबूत । शब्द-प्रमाण । वैदिक संस्कृति में विद्वानों द्वारा स्वीकारे जाते तीन प्रकार के सबूत हैं । एक सबूत है प्रत्यक्ष । प्रत्यक्ष का मतलब है प्रत्यक्ष धारणा । जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ, तुम मुझे देख रहे हो । मैं मौजूद हैं, तुम उपस्थित हो । यह प्रत्यक्ष धारणा है । और एक और सबूत है जो कहा जाता है अनुमान । मान लो उस कमरे में, और मैं अभी आ रहा हूँ, मैं नहीं जानता कि कोई व्यक्ति है या नहीं । लेकिन कुछ आवाज अा रही है, तो मैं कल्पना कर सकता हूँ, "ओह, कोई है ।" इसे अनुमान कहा जाता है । तर्क में यह परिकल्पना कहा जाता है । यह भी सबूत है । अगर मेरे सदाशयी सुझावों से मैं सबूत दे सकता हूँ, यह भी स्वीकार किया जाता है । तो प्रत्यक्ष प्रमाण है, और, क्या कहा जाता है, परिकल्पना या सुझाव सबूत । लेकिन पुख्ता सबूत शब्द-प्रमाण है । शब्द, शब्द-ब्रह्मण । इसका मतलब है वेद । अगर हम वेदों के हवाले से सबूत दे सकते हैं, तो इसे स्वीकार करना होगा । कोई भी वैदिक सबूत इनकार नहीं कर सकता । यह प्रणाली है । कैसे होता है? चैतन्य महाप्रभु नें बहुत अच्छा उदाहरण दिया है । यह वेदों में है । जैसे हम अर्च विग्रह के कमरे में शंख रखते हैं । शंख बहुत शुद्ध और दिव्य माना जाता है, अन्यथा हम कैसे अर्च विग्रह के सामने रख सकते हैं, और तुम शंख बजाते हो ? तुम शंख के अंदर पानी डालकर अर्पण करते हो । तुम कैसे अर्पण कर सकते हो ? लेकिन यह शंख क्या है? शंख एक जानवर की हड्डी है । यह कुछ भी नहीं है पर एक जानवर की हड्डी है । लेकिन वैदिक निषेधाज्ञा है कि अगर तुम एक जानवर की हड्डी को छूते हो, तुम्हे तुरंत नहाना पड़ेगा । तुम अशुद्ध हो जाते हो । अब कोई कह सकता है, " ओह, यह विरोधाभास है । " एक स्थान पर यह कहा जाता है कि अगर तुम एक जानवर की हड्डी को छूते हो, तो तुम्हे तुरंत स्नान करके अपने आप को शुद्ध करना होगा, और यहाँ, एक जानवर की हड्डी विग्रहों के कमरे में है । तो यह विरोधाभास है कि नहीं? अगर एक जानवर की हड्डी अशुद्ध है, तो तुम कैसे विग्रहों के कमरे में रख सकते हो? अौर एक जानवर की हड्डी शुद्ध है, तो अशुद्ध होने का और नहाने का अर्थ क्या है? " तुम्हे इसी तरह के विरोधाभास मिल जाएँगे वैदिक निर्देशों में । लेकिन क्योंकि यह वेदों में कहा जाता है कि एक जानवर की हड्डी अशुद्ध है, तुम्हे स्वीकार करना होगा । लेकिन इस जानवर की हड्डी, शंख शुद्ध है । जैसे हमारे छात्र उलझन में पड जाते हैं जब हम कहते हैं कि प्याज नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन प्याज एक सब्जी है । तो शब्द प्रमाण का मतलब है, वैदिक सबूत को इस तरह से लिया जाना चाहिए कि कोई तर्क नहीं । जिसका अर्थ है, कोई विरोधाभास नहीं है । अर्थ है । जैसे कई बार मैनें तुम्हे बताया है कि गाय का गोबर । गाय केा गोबर, वैदिक निषेधाज्ञा के अनुसार, शुद्ध है । भारत में यह वास्तव में एंटीसेप्टिक के रूप में प्रयोग किया जाता है । गांवों में विशेष रूप से, वहाँ गोबर बड़ी मात्रा में है, और वे कर रहे हैं, पूरे घर में वे लेप की तरह लगाते है घर को एंटीसेप्टिक बनाने के लिए । और वास्तव में अपने कमरे में गोबर को लगाने के बाद, जब यह सूख जाता है, तुम ताजा महसूस करोगे, सब कुछ एंटीसेप्टिक । यह व्यावहारिक अनुभव है । और एक डॉ. घोष, एक महान रसायनज्ञ, उन्होंने गोबर की जांच की, कि क्यों गोबर इतना वैदिक साहित्य में महत्वपूर्ण है ? उन्होंने पाया कि गाय के गोबर में सब एंटीसेप्टिक गुण हैं ।
अगर हम उपनिषद से संदर्भ दे सकते हैं, तो उसका तर्क बहुत मजबूत है । शब्द प्रमाण । प्रमाण का मतलब है सबूत । सबूत ... अगर तुम पक्ष मज़बूत करना चाहते हो ..... जैसे तुम्हे अदालत में बहुत अच्छा सबूत देना पडता है, इसी तरह, वैदिक संस्कृति के अनुसार, सबूत है प्रमाण । प्रमाण का मतलब है सबूत । शब्द-प्रमाण । वैदिक संस्कृति में विद्वानों द्वारा स्वीकारे जाते तीन प्रकार के सबूत हैं । एक सबूत है प्रत्यक्ष । प्रत्यक्ष का मतलब है प्रत्यक्ष धारणा । जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ, तुम मुझे देख रहे हो । मैं मौजूद हैं, तुम उपस्थित हो । यह प्रत्यक्ष धारणा है ।  
 
और एक और सबूत है जो कहा जाता है अनुमान । मान लो उस कमरे में, और मैं अभी आ रहा हूँ, मैं नहीं जानता कि कोई व्यक्ति है या नहीं । लेकिन कुछ आवाज अा रही है, तो मैं कल्पना कर सकता हूँ, "ओह, कोई है ।" इसे अनुमान कहा जाता है । तर्क में यह परिकल्पना कहा जाता है । यह भी सबूत है । अगर मेरे प्रामाणिक सुझावों से मैं सबूत दे सकता हूँ, यह भी स्वीकार किया जाता है । तो प्रत्यक्ष प्रमाण है, और, क्या कहा जाता है, परिकल्पना या सुझाव सबूत । लेकिन पुख्ता सबूत शब्द-प्रमाण है । शब्द, शब्द-ब्रह्मण । इसका मतलब है वेद । अगर हम वेदों के हवाले से सबूत दे सकते हैं, तो इसे स्वीकार करना ही होगा । कोई भी वैदिक सबूत का इनकार नहीं कर सकता । यह प्रणाली है । कैसे होता है? चैतन्य महाप्रभु नें बहुत अच्छा उदाहरण दिया है । यह वेदों में है ।  
 
जैसे हम अर्च विग्रह के कमरे में शंख रखते हैं । शंख बहुत शुद्ध और दिव्य माना जाता है, अन्यथा हम कैसे अर्च विग्रह के सामने रख सकते हैं, और तुम शंख बजाते हो ? तुम शंख के अंदर पानी डालकर अर्पण करते हो । तुम कैसे अर्पण कर सकते हो ? लेकिन यह शंख क्या है? शंख एक जानवर की हड्डी है । यह कुछ भी नहीं है पर एक जानवर की हड्डी है । लेकिन वैदिक आज्ञा है कि अगर तुम एक जानवर की हड्डी को छूते हो, तुम्हे तुरंत नहाना पड़ेगा । तुम अशुद्ध हो जाते हो । अब कोई कह सकता है, "ओह, यह विरोधाभास है । " एक स्थान पर यह कहा जाता है कि अगर तुम एक जानवर की हड्डी को छूते हो, तो तुम्हे तुरंत स्नान करके अपने आप को शुद्ध करना होगा, और यहाँ, एक जानवर की हड्डी विग्रहों के कमरे में है । तो यह विरोधाभास है कि नहीं? अगर एक जानवर की हड्डी अशुद्ध है, तो तुम कैसे विग्रहों के कमरे में रख सकते हो? अौर एक जानवर की हड्डी शुद्ध है, तो अशुद्ध होने का और नहाने का अर्थ क्या है? " तुम्हे इसी तरह के विरोधाभास मिलेंगे वैदिक निर्देशों में । लेकिन क्योंकि यह वेदों में कहा जाता है कि एक जानवर की हड्डी अशुद्ध है, तुम्हे स्वीकार करना होगा । लेकिन इस जानवर की हड्डी, शंख शुद्ध है ।  
 
जैसे हमारे छात्र उलझन में पड जाते हैं जब हम कहते हैं कि प्याज नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन प्याज एक सब्जी है । तो शब्द प्रमाण का मतलब है, वैदिक सबूत को इस तरह से लिया जाना चाहिए कि कोई तर्क नहीं । जिसका अर्थ है, कोई विरोधाभास नहीं है । अर्थ है । जैसे कई बार मैनें तुम्हे बताया है कि गाय का गोबर । गाय का गोबर, वैदिक आज्ञा के अनुसार, शुद्ध है । भारत में यह वास्तव में एंटीसेप्टिक के रूप में प्रयोग किया जाता है । गांवों में विशेष रूप से, वहाँ गोबर बड़ी मात्रा में है, और वे कर रहे हैं, पूरे घर में वे लेप की तरह लगाते है घर को एंटीसेप्टिक बनाने के लिए । और वास्तव में अपने कमरे में गोबर को लगाने के बाद, जब यह सूख जाता है, तुम ताजा महसूस करोगे, सब कुछ एंटीसेप्टिक । यह व्यावहारिक अनुभव है । और एक डॉ. घोष, एक महान रसायनज्ञ, उन्होंने गोबर की जांच की, कि क्यों गोबर इतना वैदिक साहित्य में महत्वपूर्ण है ? उन्होंने पाया कि गाय के गोबर में सब एंटीसेप्टिक गुण हैं ।  
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Latest revision as of 17:26, 10 October 2018



Lecture on BG 2.8-12 -- Los Angeles, November 27, 1968

अगर हम उपनिषद से संदर्भ दे सकते हैं, तो उसका तर्क बहुत मजबूत है । शब्द प्रमाण । प्रमाण का मतलब है सबूत । सबूत ... अगर तुम पक्ष मज़बूत करना चाहते हो ..... जैसे तुम्हे अदालत में बहुत अच्छा सबूत देना पडता है, इसी तरह, वैदिक संस्कृति के अनुसार, सबूत है प्रमाण । प्रमाण का मतलब है सबूत । शब्द-प्रमाण । वैदिक संस्कृति में विद्वानों द्वारा स्वीकारे जाते तीन प्रकार के सबूत हैं । एक सबूत है प्रत्यक्ष । प्रत्यक्ष का मतलब है प्रत्यक्ष धारणा । जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ, तुम मुझे देख रहे हो । मैं मौजूद हैं, तुम उपस्थित हो । यह प्रत्यक्ष धारणा है ।

और एक और सबूत है जो कहा जाता है अनुमान । मान लो उस कमरे में, और मैं अभी आ रहा हूँ, मैं नहीं जानता कि कोई व्यक्ति है या नहीं । लेकिन कुछ आवाज अा रही है, तो मैं कल्पना कर सकता हूँ, "ओह, कोई है ।" इसे अनुमान कहा जाता है । तर्क में यह परिकल्पना कहा जाता है । यह भी सबूत है । अगर मेरे प्रामाणिक सुझावों से मैं सबूत दे सकता हूँ, यह भी स्वीकार किया जाता है । तो प्रत्यक्ष प्रमाण है, और, क्या कहा जाता है, परिकल्पना या सुझाव सबूत । लेकिन पुख्ता सबूत शब्द-प्रमाण है । शब्द, शब्द-ब्रह्मण । इसका मतलब है वेद । अगर हम वेदों के हवाले से सबूत दे सकते हैं, तो इसे स्वीकार करना ही होगा । कोई भी वैदिक सबूत का इनकार नहीं कर सकता । यह प्रणाली है । कैसे होता है? चैतन्य महाप्रभु नें बहुत अच्छा उदाहरण दिया है । यह वेदों में है ।

जैसे हम अर्च विग्रह के कमरे में शंख रखते हैं । शंख बहुत शुद्ध और दिव्य माना जाता है, अन्यथा हम कैसे अर्च विग्रह के सामने रख सकते हैं, और तुम शंख बजाते हो ? तुम शंख के अंदर पानी डालकर अर्पण करते हो । तुम कैसे अर्पण कर सकते हो ? लेकिन यह शंख क्या है? शंख एक जानवर की हड्डी है । यह कुछ भी नहीं है पर एक जानवर की हड्डी है । लेकिन वैदिक आज्ञा है कि अगर तुम एक जानवर की हड्डी को छूते हो, तुम्हे तुरंत नहाना पड़ेगा । तुम अशुद्ध हो जाते हो । अब कोई कह सकता है, "ओह, यह विरोधाभास है । " एक स्थान पर यह कहा जाता है कि अगर तुम एक जानवर की हड्डी को छूते हो, तो तुम्हे तुरंत स्नान करके अपने आप को शुद्ध करना होगा, और यहाँ, एक जानवर की हड्डी विग्रहों के कमरे में है । तो यह विरोधाभास है कि नहीं? अगर एक जानवर की हड्डी अशुद्ध है, तो तुम कैसे विग्रहों के कमरे में रख सकते हो? अौर एक जानवर की हड्डी शुद्ध है, तो अशुद्ध होने का और नहाने का अर्थ क्या है? " तुम्हे इसी तरह के विरोधाभास मिलेंगे वैदिक निर्देशों में । लेकिन क्योंकि यह वेदों में कहा जाता है कि एक जानवर की हड्डी अशुद्ध है, तुम्हे स्वीकार करना होगा । लेकिन इस जानवर की हड्डी, शंख शुद्ध है ।

जैसे हमारे छात्र उलझन में पड जाते हैं जब हम कहते हैं कि प्याज नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन प्याज एक सब्जी है । तो शब्द प्रमाण का मतलब है, वैदिक सबूत को इस तरह से लिया जाना चाहिए कि कोई तर्क नहीं । जिसका अर्थ है, कोई विरोधाभास नहीं है । अर्थ है । जैसे कई बार मैनें तुम्हे बताया है कि गाय का गोबर । गाय का गोबर, वैदिक आज्ञा के अनुसार, शुद्ध है । भारत में यह वास्तव में एंटीसेप्टिक के रूप में प्रयोग किया जाता है । गांवों में विशेष रूप से, वहाँ गोबर बड़ी मात्रा में है, और वे कर रहे हैं, पूरे घर में वे लेप की तरह लगाते है घर को एंटीसेप्टिक बनाने के लिए । और वास्तव में अपने कमरे में गोबर को लगाने के बाद, जब यह सूख जाता है, तुम ताजा महसूस करोगे, सब कुछ एंटीसेप्टिक । यह व्यावहारिक अनुभव है । और एक डॉ. घोष, एक महान रसायनज्ञ, उन्होंने गोबर की जांच की, कि क्यों गोबर इतना वैदिक साहित्य में महत्वपूर्ण है ? उन्होंने पाया कि गाय के गोबर में सब एंटीसेप्टिक गुण हैं ।