HI/Prabhupada 0456 - जीव, जो शरीर को चला रहा है, वह उच्च शक्ति है: Difference between revisions

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भगवद गीता में यह कहा जाता है,
भगवद गीता में यह कहा गया है,  


:भूमिर अापो अनलो वायु:
:भूमिर अापो अनलो वायु:  
:खम मनो बुद्धिर एव च
:खम मनो बुद्धिर एव च...
:भिनन्ा मे प्रक्रतिर अश्टधा
:भिन्ना मे प्रक्रतिर अष्टधा
:([[Vanisource:BG 7.4|भ गी ७।४]])
:([[HI/BG 7.4|भ.गी. ७.४]])


ये भौतिकवादी व्यक्ति- वैज्ञानिक, भौतिक शास्त्री और अन्य सट्टेबाज - वे इन तत्वों के साथ काम कर रहे हैं, भौतिक -पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, - मन, मनोविज्ञान, या, थोड़ा उन्नत, बद्धिमत्ता तक, लेकिन उससे अागे नहीं । वे अपने विश्वविद्यालय, कॉलेजों, शिक्षण संस्थानों में काम कर रहे हैं । उनका संबंध इन तत्वों के साथ है, भौतिक । उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है ।कृष्ण ने कहा ... हमें भगवद गीता से जानकारी मिलती है, अपरेयम : "ये आठ तत्व, वे निम्न हैं ।" इसलिए, क्योंकि वे इस निम्न प्रकृति के साथ काम कर रहे हैं, उनका ज्ञान निम्न है । यह एक तथ्य है । यह नहीं है कि मैं आरोप लगा रहा हूँ । नहीं, यह है ... उनके पास कोई जानकारी नहीं है । बडे, बड़े प्रोफेसर, वे कहते हैं कि यह शरीर समाप्त ... "शरीर समाप्त" मतलब है पंचत्व-प्राप्त । उन्हे पता नहीं है कि एक और शरीर है, सूक्ष्म शरीर - मन, बुद्धि, अहंकार । वे नहीं जानते । वे सोच रहे हैं यह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, इतना ही ... "यह खत्म हो गया है । मैं देख रहा हूँ, या तो तुम शरीर को जलाते हो या शरीर को दफनाते हो, खत्म, खत्म हो गया, सब कुछ समाप्त हो गया । और दूसरी बात कहाँ है? " तो उन्हे ज्ञान नहीं है । तो उन्हे ज्ञान नहीं है सूक्ष्म शरीर का, पृथ्वी, जल, जो आत्मा को ढोती है, और वे आत्मा के बारे में क्या जानेंगे?
ये भौतिकवादी व्यक्ति - वैज्ञानिक, भौतिक शास्त्री और अन्य सट्टेबाज - वे इन तत्वों के साथ काम कर रहे हैं, भौतिक - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, मनोविज्ञान, या, थोड़ा उन्नत, बद्धिमत्ता तक, लेकिन उससे अागे नहीं । वे अपने विश्वविद्यालय, कॉलेजों, शिक्षण संस्थानों में काम कर रहे हैं । उनका संबंध इन तत्वों के साथ है, भौतिक । उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है । कृष्ण ने कहा ... हमें भगवद गीता से जानकारी मिलती है, अपरेयम: "ये आठ तत्व, वे निम्न हैं ।" इसलिए, क्योंकि वे इस निम्न प्रकृति के साथ काम कर रहे हैं, उनका ज्ञान निम्न है । यह एक तथ्य है ।  


तो कृष्ण भगवद गीता में जानकारी देते हैं, अपरेयम: "ये तत्व, यहां तक ​​कि मन, बुद्धि, अहंकार, तक," भिन्ना, "वे मेरी अलग शक्ति, अलग शक्ति और, "अपरेयम" यह निम्न है । और दूसरी, वरिष्ठ प्रकृति है ।" अपरेयम इतस तु विद्धी मे प्रकृतिम् परा । परा का मतलब है "वरिष्ठ' अब, वे पूछ सकते हैं , " यह क्या है?" हमें इन तत्वों का ही पता है । वह दूसरी, वरिष्ठ शक्ति क्या है? " जीव भूत: महा बाहो, स्पष्ट रूप से कहा: "वो जो जीवित ..." और वे सोच रहे हैं कि कोई अन्य वरिष्ठ शक्ति नहीं है इन आठ भौतिक तत्वों या पांच तत्वों के अलावा इसलिए वे अज्ञान में हैं । पहली बार उन्हें कुछ ज्ञान मिल रहा है, भगवद गीता यथार्थ, और उस से उन्हे पता लगता है कि एक दूसरी वरिष्ठ शक्ति है, जो है जीव-भूत: जीव जो शरीर को चला रहा है, वह वरिष्ठ शक्ति है तो उनके पास कोई जानकारी नहीं है कि उस वरिष्ठ शक्ति को समझने का प्रयास हो रहा है उनके विश्वविद्यालयों या संस्थाअों में इसलिए वे मूढा हैं, मूढा । वे अपने तथाकथित ज्ञान के कारण बहुत ज्यादा फूले हुए हैं, लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार वे मूढा हैं । और जब हम वरिष्ठ शक्ति, प्रकृति, को समझ नहीं सकते हैं तो कैसे भगवान को समझ सकते हैं? यह संभव नहीं है । अौर फिर, भगवान और वरिष्ठ शक्ति के बीच लेन - देन, यही भक्ति है । यह बहुत मुश्किल है । मनुष्यानाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये ([[Vanisource:BG 7.3|भ गी ७।३]]) यही सिद्धये का मतलब है वरिष्ठ शक्ति को समझना । यही सिद्धि है और उसके बाद, हम कृष्ण को समझ सकते हैं ।
यह नहीं है कि मैं आरोप लगा रहा हूँ नहीं, यह है ... उनके पास कोई जानकारी नहीं है । बडे, बड़े प्रोफेसर, वे कहते हैं कि यह शरीर समाप्त... "शरीर समाप्त"  मतलब है पंचत्व-प्राप्त । उन्हे पता नहीं है कि एक और शरीर है, सूक्ष्म शरीर - मन, बुद्धि, अहंकार वे नहीं जानते । वे सोच रहे हैं यह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, इतना ही... "यह खत्म हो गया है । मैं देख रहा हूँ, या तो तुम शरीर को जलाते हो या शरीर को दफनाते हो, खत्म, खत्म हो गया, सब कुछ समाप्त हो गया । और दूसरी बात कहाँ है? " तो उन्हे ज्ञान नहीं है । तो उन्हे ये ज्ञान भी नहीं है की सूक्ष्म शरीर, जो पृथ्वी, जल, जो आत्मा को ले जाता है, और वे आत्मा के बारे में क्या जानेंगे?


इसलिए यह बहुत मुश्किल है, विशेष रूप से इस युग में । मंदा: सुमंद-मतयो ([[Vanisource:SB 1.1.10|श्री भ १।१।१०]]) वे हैं ... मंदा: इसका मतलब है वे दिलचस्पी नहीं रखते हैं , या अगर वे थोडी बहुत रुचि रखते हैं, तो वे बहुत धीमे हैं । वे समझ नहीं पाते हैं कि यह प्रधान ज्ञान है । और सब से पहले तुम्हे यह पता होना चाहिए., अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, वह वरिष्ठ ज्ञान । यही आवश्यक है । लेकिन हर कोई उपेक्षा कर रहा है । कोई जिज्ञासा नहीं है इस बात की भी कि क्या इस शरीर को चला रहा है । कोई जांच नहीं है । वे सोचते हैं स्वचालित रूप से, भौतिक बातों का संयोजन, वे अभी भी इस मुद्दे पर अडे हुए हैं, और जब तुम चुनौती देते हो "तुम इस रासायनिक पदार्थ को लो और जीव की अत्पत्ति करो ।" वे कहते हैं, "मैं ऐसा नहीं कर सकता ।" यह क्या है? अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते हो, तो तुम क्यों बकवास बोल रहे हो, कि " रसायन पदार्थ के संयोजन से जीव अाता है"? तुम रसायन पदार्थ लो ... हमारे डा. स्वरूप दामोदर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में एक बड़े प्रोफेसर रासायनिक विकास पर व्याख्यान के लिए आए थे और उन्होंने तुरंत चुनौती दी कि "अगर मैं अापको रसायन दूँ, तो क्या आप जीवन का निर्माण कर सकते हैं?" उन्होंने कहा, "यह मैं नहीं कर सकता हूँ ।" (हंसते हुए) तो यह उनकी स्थिति है । वे यह साबित नहीं कर सकते । वे यह नहीं कर सकते ।
तो कृष्ण भगवद गीता में जानकारी देते हैं, अपरेयम: "ये तत्व, यहां तक ​​कि मन, बुद्धि, अहंकार, तक," भिन्ना, "वे मेरी अलग शक्ति, अलग शक्ति है। और, "अपरेयम" यह निम्न है । और दूसरी, वरिष्ठ प्रकृति है ।" अपरेयम इतस तु विद्धी मे प्रकृतिम परा । परा का मतलब है "उच्च" | अब, वे पूछ सकते हैं, " यह क्या है?" हमें इन तत्वों का ही पता है । वह दूसरी, उच्च शक्ति क्या है? " जीव भूत: महा बाहो, स्पष्ट रूप से कहा: "वो जो जीवित..." और वे सोच रहे हैं  कि कोई अन्य वरिष्ठ शक्ति नहीं है इन आठ भौतिक तत्वों या पांच तत्वों के अलावा । इसलिए वे अज्ञान में हैं ।
 
पहली बार उन्हें कुछ ज्ञान मिल रहा है, भगवद गीता यथार्थ, और उस से उन्हे पता लगता है कि एक दूसरी उच्च शक्ति है, जो है जीव-भूत: | जीव जो शरीर को चला रहा है, वह उच्च शक्ति है । तो उनके पास कोई जानकारी नहीं है कि उस उच्च शक्ति को समझने का प्रयास हो रहा है उनके विश्वविद्यालयों या संस्थाअों में । इसलिए वे मूढा हैं, मूढा । वे अपने तथाकथित ज्ञान के कारण बहुत ज्यादा फूले हुए हैं, लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार वे मूढा हैं । और जब हम उच्च शक्ति, प्रकृति, को समझ नहीं सकते हैं, तो कैसे भगवान को समझ सकते हैं? यह संभव नहीं है । अौर फिर, भगवान और उच्च शक्ति के बीच लेन-देन, यही भक्ति है । यह बहुत मुश्किल है । मनुष्याणाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये ([[HI/BG 7.3|भ.गी. ७.३]]) | यही सिद्धये का मतलब है उच्च शक्ति को समझना । यही सिद्धि है । और उसके बाद, हम कृष्ण को समझ सकते हैं ।
 
इसलिए यह बहुत मुश्किल है, विशेष रूप से इस युग में । मंदा: सुमंद-मतयो ([[Vanisource:SB 1.1.10|श्रीमद भागवतम १.१.१०]]) | वे हैं ... मंदा: इसका मतलब है वे दिलचस्पी नहीं रखते हैं, या अगर वे थोडी बहुत रुचि रखते हैं, तो वे बहुत धीमे हैं । वे समझ नहीं पाते हैं कि यह प्रधान ज्ञान है । और सब से पहले तुम्हे यह पता होना चाहिए, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, वह उच्च ज्ञान । यही आवश्यक है । लेकिन हर कोई उपेक्षा कर रहा है । कोई जिज्ञासा नहीं है इस बात की भी कि क्या चीज़ इस शरीर को चला रही है । कोई पृच्छा नहीं है । वे सोचते हैं स्वचालित रूप से, भौतिक बातों का संयोजन...
 
वे अभी भी इस मुद्दे पर अडे हुए हैं, और जब तुम चुनौती देते हो, "तुम इस रासायनिक पदार्थ को लो और जीव की उत्पत्ति करो ।" वे कहते हैं, "मैं ऐसा नहीं कर सकता ।" और यह क्या है? अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते हो, तो तुम क्यों बकवास बोल रहे हो, कि " रसायण या पदार्थ के संयोजन से जीव अाता है"? तुम रसायण लो ... हमारे डा. स्वरूप दामोदर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में, एक बड़े प्रोफेसर रासायणिक विकास पर व्याख्यान के लिए आए थे और उन्होंने तुरंत चुनौती दी, कि "अगर मैं अापको रसायण दूँ, तो क्या आप जीवन का निर्माण कर सकते हैं?" उन्होंने कहा, "वो मैं नहीं कर सकता हूँ ।" (हंसते हुए) तो यह उनकी स्थिति है । वे यह साबित नहीं कर सकते । वे यह नहीं कर सकते ।  
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Latest revision as of 18:41, 17 September 2020



Lecture on SB 7.9.6 -- Mayapur, February 26, 1977

भगवद गीता में यह कहा गया है,

भूमिर अापो अनलो वायु:
खम मनो बुद्धिर एव च...
भिन्ना मे प्रक्रतिर अष्टधा
(भ.गी. ७.४)

ये भौतिकवादी व्यक्ति - वैज्ञानिक, भौतिक शास्त्री और अन्य सट्टेबाज - वे इन तत्वों के साथ काम कर रहे हैं, भौतिक - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, मनोविज्ञान, या, थोड़ा उन्नत, बद्धिमत्ता तक, लेकिन उससे अागे नहीं । वे अपने विश्वविद्यालय, कॉलेजों, शिक्षण संस्थानों में काम कर रहे हैं । उनका संबंध इन तत्वों के साथ है, भौतिक । उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है । कृष्ण ने कहा ... हमें भगवद गीता से जानकारी मिलती है, अपरेयम: "ये आठ तत्व, वे निम्न हैं ।" इसलिए, क्योंकि वे इस निम्न प्रकृति के साथ काम कर रहे हैं, उनका ज्ञान निम्न है । यह एक तथ्य है ।

यह नहीं है कि मैं आरोप लगा रहा हूँ । नहीं, यह है ... उनके पास कोई जानकारी नहीं है । बडे, बड़े प्रोफेसर, वे कहते हैं कि यह शरीर समाप्त... "शरीर समाप्त" मतलब है पंचत्व-प्राप्त । उन्हे पता नहीं है कि एक और शरीर है, सूक्ष्म शरीर - मन, बुद्धि, अहंकार । वे नहीं जानते । वे सोच रहे हैं यह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, इतना ही... "यह खत्म हो गया है । मैं देख रहा हूँ, या तो तुम शरीर को जलाते हो या शरीर को दफनाते हो, खत्म, खत्म हो गया, सब कुछ समाप्त हो गया । और दूसरी बात कहाँ है? " तो उन्हे ज्ञान नहीं है । तो उन्हे ये ज्ञान भी नहीं है की सूक्ष्म शरीर, जो पृथ्वी, जल, जो आत्मा को ले जाता है, और वे आत्मा के बारे में क्या जानेंगे?

तो कृष्ण भगवद गीता में जानकारी देते हैं, अपरेयम: "ये तत्व, यहां तक ​​कि मन, बुद्धि, अहंकार, तक," भिन्ना, "वे मेरी अलग शक्ति, अलग शक्ति है। और, "अपरेयम" यह निम्न है । और दूसरी, वरिष्ठ प्रकृति है ।" अपरेयम इतस तु विद्धी मे प्रकृतिम परा । परा का मतलब है "उच्च" | अब, वे पूछ सकते हैं, " यह क्या है?" हमें इन तत्वों का ही पता है । वह दूसरी, उच्च शक्ति क्या है? " जीव भूत: महा बाहो, स्पष्ट रूप से कहा: "वो जो जीवित..." और वे सोच रहे हैं कि कोई अन्य वरिष्ठ शक्ति नहीं है इन आठ भौतिक तत्वों या पांच तत्वों के अलावा । इसलिए वे अज्ञान में हैं ।

पहली बार उन्हें कुछ ज्ञान मिल रहा है, भगवद गीता यथार्थ, और उस से उन्हे पता लगता है कि एक दूसरी उच्च शक्ति है, जो है जीव-भूत: | जीव जो शरीर को चला रहा है, वह उच्च शक्ति है । तो उनके पास कोई जानकारी नहीं है कि उस उच्च शक्ति को समझने का प्रयास हो रहा है उनके विश्वविद्यालयों या संस्थाअों में । इसलिए वे मूढा हैं, मूढा । वे अपने तथाकथित ज्ञान के कारण बहुत ज्यादा फूले हुए हैं, लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार वे मूढा हैं । और जब हम उच्च शक्ति, प्रकृति, को समझ नहीं सकते हैं, तो कैसे भगवान को समझ सकते हैं? यह संभव नहीं है । अौर फिर, भगवान और उच्च शक्ति के बीच लेन-देन, यही भक्ति है । यह बहुत मुश्किल है । मनुष्याणाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये (भ.गी. ७.३) | यही सिद्धये का मतलब है उच्च शक्ति को समझना । यही सिद्धि है । और उसके बाद, हम कृष्ण को समझ सकते हैं ।

इसलिए यह बहुत मुश्किल है, विशेष रूप से इस युग में । मंदा: सुमंद-मतयो (श्रीमद भागवतम १.१.१०) | वे हैं ... मंदा: इसका मतलब है वे दिलचस्पी नहीं रखते हैं, या अगर वे थोडी बहुत रुचि रखते हैं, तो वे बहुत धीमे हैं । वे समझ नहीं पाते हैं कि यह प्रधान ज्ञान है । और सब से पहले तुम्हे यह पता होना चाहिए, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, वह उच्च ज्ञान । यही आवश्यक है । लेकिन हर कोई उपेक्षा कर रहा है । कोई जिज्ञासा नहीं है इस बात की भी कि क्या चीज़ इस शरीर को चला रही है । कोई पृच्छा नहीं है । वे सोचते हैं स्वचालित रूप से, भौतिक बातों का संयोजन...

वे अभी भी इस मुद्दे पर अडे हुए हैं, और जब तुम चुनौती देते हो, "तुम इस रासायनिक पदार्थ को लो और जीव की उत्पत्ति करो ।" वे कहते हैं, "मैं ऐसा नहीं कर सकता ।" और यह क्या है? अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते हो, तो तुम क्यों बकवास बोल रहे हो, कि " रसायण या पदार्थ के संयोजन से जीव अाता है"? तुम रसायण लो ... हमारे डा. स्वरूप दामोदर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में, एक बड़े प्रोफेसर रासायणिक विकास पर व्याख्यान के लिए आए थे और उन्होंने तुरंत चुनौती दी, कि "अगर मैं अापको रसायण दूँ, तो क्या आप जीवन का निर्माण कर सकते हैं?" उन्होंने कहा, "वो मैं नहीं कर सकता हूँ ।" (हंसते हुए) तो यह उनकी स्थिति है । वे यह साबित नहीं कर सकते । वे यह नहीं कर सकते ।