HI/Prabhupada 0498 - जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाने खतम: Difference between revisions

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तो यहाँ सिफारिश की गई है । श्री कृष्ण के प्रति जागरूक बनने की कोशिश करो । और फिर तुम भौतिक दुनिया के इन सभी बाहरी, अल्पकालिक परिवर्तन से परेशान नहीं रहोगे । न केवल इस शरीर की, व्यावहारिक रूप से जो आध्यात्मिक जीवन में जो उन्नत है, वह तथाकथित राजनीतिक हलचल या सामाजिक गड़बड़ी से उत्तेजित नहीं होता है । नहीं । वह जानता है कि ये सिर्फ बाहरी हैं, बस सपने की तरह । यह भी एक सपना है । हमारा वर्तमान अस्तित्व, यह भी सपना है । एकदम रात में हमारे सपने की तरह । सपने में, हम इतनी सारी चीजें बनाते हैं तो यह भौतिक संसार भी एक स्थूल सपना देखने की तरह है । स्थूल सपना देखना । वह सूक्ष्म सपना देखना है । और यह स्थूल सपना देखना है । यह कार्रवाई है बुद्धिमत्ता की, मन, शरीर, सपनों की । और यहाँ पाँच भौतिक तत्वों की कार्रवाई: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि ... लेकिन उन सभी को, ये आठ, वे केवल भौतिक हैं । तो हम सोच रहे हैं कि "मैंने अब एक बहुत अच्छा घर, गगनचुंबी इमारत का निर्माण किया है ।" लेकिन यह कुछ भी नहीं है केवल एक सपना है । केवल एक सपना है । सपना इस अर्थ में, कि जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाना - खतम । वास्तव में वही सपना । सपना कुछ मिनट के लिए या कुछ घंटों के लिए । और यह कुछ वर्षों के लिए । बस । यह सपना है । तो हमें इस सपने की हालत से परेशान नहीं होना चाहिए । यही आध्यात्मिक जीवन है । हमें परेशान नहीं होना चाहिए । जैसे हम परेशान नहीं होता हैं । मान लीजिए, सपने में, मैं सिंहासन पर बिठाया गया हूँ, और मैं एक राजा की तरह काम कर रहा था और सपना खत्म होने के बाद मैं दुखी नहीं हूँ । इसी तरह, सपने में मुझे लगता है कि बाघ नें मुझ पर हमला किया । मैं वास्तव में रो रहा था "यहाँ बाघ है!! यहां बाघ है! मुझे बचाओ ।" और मेरे पीछे या मेरे बगल में लेटा व्यक्ति, वह कहता है, "ओह, क्यों तुम रो रहे हो? कहाँ बाघ है?" तो जब वह जागता है, वह देखता है कि कोई बाघ नहीं है । तो सब कुछ ऐसा ही है । लेकिन यह सपना, ये स्थूल और सूक्ष्म सपने, बस कुछ विचार हैं । जैसे कि सपना क्या है? पूरे दिन मं, मैं जो सोचता हूँ सपना देख उसका एक प्रतिबिंब है, प्रतिबिंब । मेरे पिता कपड़े का कारोबार कर रहे थे । तो कभी कभी वे सपने में कीमत का हवाला देते थे: "यह मूल्य है ।" तो इसी तरह से यह सब सपना है । यह भौतिक अस्तित्व, इन पांच स्थूल तत्वों और तीन सूक्ष्म तत्वों से बना है, वे वास्तव में सपने की तरह ही हैं । स्मर नित्यम अनित्यम । इसलिए चाण्क्य पंडित कहते हैं, स्मर नित्यम अनित्यम । यह अनित्य, अस्थायी ... सपने देखना हमेशा अस्थायी है ।
तो यहाँ सिफारिश की गई है । कृष्ण भावनाभावित बनने की कोशिश करो । और फिर तुम भौतिक दुनिया के इन सभी बाहरी, अल्पकालिक परिवर्तन से विचलित नहीं होंगे । न केवल इस शरीर की, व्यावहारिक रूप से जो आध्यात्मिक जीवन में उन्नत है, वह तथाकथित राजनीतिक हलचल या सामाजिक गड़बड़ी से उत्तेजित नहीं होता है । नहीं । वह जानता है कि ये सिर्फ बाहरी हैं, बस सपने की तरह । यह भी एक सपना है । हमारा वर्तमान अस्तित्व, यह भी सपना है । बिलकुल रात के हमारे सपने की तरह । सपने में, हम इतनी सारी चीजें बनाते हैं | तो यह भौतिक संसार भी एक स्थूल सपना देखने की तरह है । स्थूल सपना देखना । वह सूक्ष्म सपना देखना है । और यह स्थूल सपना देखना है । ये सपना देखना वो मन, शरीर, बुद्धि का कार्य है | और यहाँ पाँच भौतिक तत्वों के कार्य: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि... लेकिन उन सभी को, ये आठ, वे केवल भौतिक हैं । तो हम सोच रहे हैं कि "मैंने अब एक बहुत अच्छा घर, गगनचुंबी इमारत का निर्माण किया है ।" लेकिन यह कुछ भी नहीं है केवल एक सपना है । केवल एक सपना है ।  


तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे पास जो कुछ भी है, जो कुछ भी हम देख रहे हैं, यह सब सपना है, अस्थायी । इसलिए अगर हम इन अस्थायी बातों में तल्लीन हो जाते हैं तथाकथित समाजवाद, राष्ट्रवाद, परिवार वाद या यह वाद, वह वाद, और अपना समय बर्बाद करते हैं, कृष्ण भावनामृत को न जागृत करते हुए, तो फिर इसे कहा जाता है, श्रम एव हि केवलम ([[Vanisource:SB 1.2.8|श्री भ १।२।८]]) बस अपना समय बर्बाद करना, एक और शरीर की तैयारी करना । हमारा काम है कि हमें यह पता होना चाहिए कि, " मैं यह सपना नहीं हूँ । मैं तथ्य हूँ, आध्यात्मिक तथ्य । तो मेरा एक अलग काम है ।" यही आध्यात्मिक जीवन कहा जाता है । यही आध्यात्मिक जीवन है जब हम समझते हैं कि "मैं ब्रह्म हूं । मैं यह पदार्थ नहीं हूँ ।" ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा ([[Vanisource:BG 18.54|भ गी १८।५४]]) । उस समय हम खुशहाल होंगे । क्योंकि हम भौतिक विशेषताअों के परिवर्तन से पीड़ित हैं, और हम दुखी और खुश हैं, इन सभी बाहरी गतिविधियों से क्लेशित । लेकिन जब हम ठीक से समझते हैं कि "मेरा इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है " तो हम हर्षित हो जाते हैं । "ओह, मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है । कुछ नहीं, मेरा इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है । "
सपना इस अर्थ में, कि जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाना - खतम । वास्तव में वही सपना । सपना कुछ मिनट के लिए या कुछ घंटों के लिए । और यह कुछ वर्षों के लिए । बस । यह सपना है । तो हमें इस सपने की हालत से विचलित नहीं होना चाहिए । यही आध्यात्मिक जीवन है । हमें विचलित नहीं होना चाहिए । जैसे हम विचलित नहीं होते हैं । मान लीजिए, सपने में, मैं सिंहासन पर बिठाया गया हूँ, और मैं एक राजा की तरह काम कर रहा था, और सपना खत्म होने के बाद, मैं दुःखी नहीं हूँ । इसी तरह, सपने में मुझे लगता है कि शेर नें मुझ पर हमला किया  । मैं वास्तव में रो रहा था "यहाँ शेर है! यहां शेर है! मुझे बचाओ ।" और मेरे पीछे या मेरे बगल में लेटा व्यक्ति, वह कहता है, "ओह, क्यों तुम रो रहे हो? कहाँ शेर है?" तो जब वह जागता है, वह देखता है कि कोई शेर नहीं है । तो सब कुछ ऐसा ही है ।
 
लेकिन यह सपना, ये स्थूल और सूक्ष्म सपने, बस कुछ विचार हैं । जैसे कि सपना क्या है? पूरे दिन में, मैं जो सोचता हूँ सपना देखना उसका एक प्रतिबिंब है, प्रतिबिंब । मेरे पिता कपड़े का कारोबार कर रहे थे । तो कभी कभी वे सपने में कीमत का हवाला देते थे: "यह मूल्य है ।" तो इसी तरह से यह सब सपना है । यह भौतिक अस्तित्व, इन पांच स्थूल तत्वों और तीन सूक्ष्म तत्वों से बना है, वे वास्तव में सपने की तरह ही हैं । स्मर नित्यम अनित्यम । इसलिए चाण्क्य पंडित कहते हैं, स्मर नित्यम अनित्यम । यह अनित्य, अस्थायी... सपने देखना हमेशा अस्थायी है ।
 
तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे पास जो कुछ भी है, जो कुछ भी हम देख रहे हैं, यह सब सपना है, अस्थायी । इसलिए अगर हम इन अस्थायी बातों में तल्लीन हो जाते हैं, तथाकथित समाजवाद, राष्ट्रवाद, परिवार वाद या यह वाद, वह वाद, और अपना समय बर्बाद करते हैं, कृष्ण भावनामृत को न जागृत करते हुए, तो फिर इसे कहा जाता है, श्रम एव हि केवलम ([[Vanisource:SB 1.2.8|श्रीमद भागवतम १.२.८]]), बस अपना समय बर्बाद करना, एक और शरीर की तैयारी करना । हमारा काम है कि हमें यह पता होना चाहिए कि, "मैं यह सपना नहीं हूँ । मैं तथ्य हूँ, आध्यात्मिक तथ्य । तो मेरा एक अलग काम है ।" यही आध्यात्मिक जीवन कहा जाता है ।  
 
यही आध्यात्मिक जीवन है जब हम समझते हैं कि "मैं ब्रह्म हूं । मैं यह पदार्थ नहीं हूँ ।" ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा ([[HI/BG 18.54|भ.गी. १८.५४]]) । उस समय हम खुशहाल होंगे । क्योंकि हम भौतिक विशेषताअों के परिवर्तन से पीड़ित हैं, और हम दुःखी और सुखी हैं, इन सभी बाहरी गतिविधियों से क्लेशित । लेकिन जब हम ठीक से समझते हैं कि "मेरा इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है," तो हम हर्षित हो जाते हैं । "ओह, मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है । कुछ नहीं, मेरा इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है ।"  
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Latest revision as of 18:45, 17 September 2020



Lecture on BG 2.15 -- Hyderabad, November 21, 1972

तो यहाँ सिफारिश की गई है । कृष्ण भावनाभावित बनने की कोशिश करो । और फिर तुम भौतिक दुनिया के इन सभी बाहरी, अल्पकालिक परिवर्तन से विचलित नहीं होंगे । न केवल इस शरीर की, व्यावहारिक रूप से जो आध्यात्मिक जीवन में उन्नत है, वह तथाकथित राजनीतिक हलचल या सामाजिक गड़बड़ी से उत्तेजित नहीं होता है । नहीं । वह जानता है कि ये सिर्फ बाहरी हैं, बस सपने की तरह । यह भी एक सपना है । हमारा वर्तमान अस्तित्व, यह भी सपना है । बिलकुल रात के हमारे सपने की तरह । सपने में, हम इतनी सारी चीजें बनाते हैं | तो यह भौतिक संसार भी एक स्थूल सपना देखने की तरह है । स्थूल सपना देखना । वह सूक्ष्म सपना देखना है । और यह स्थूल सपना देखना है । ये सपना देखना वो मन, शरीर, बुद्धि का कार्य है | और यहाँ पाँच भौतिक तत्वों के कार्य: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि... लेकिन उन सभी को, ये आठ, वे केवल भौतिक हैं । तो हम सोच रहे हैं कि "मैंने अब एक बहुत अच्छा घर, गगनचुंबी इमारत का निर्माण किया है ।" लेकिन यह कुछ भी नहीं है केवल एक सपना है । केवल एक सपना है ।

सपना इस अर्थ में, कि जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाना - खतम । वास्तव में वही सपना । सपना कुछ मिनट के लिए या कुछ घंटों के लिए । और यह कुछ वर्षों के लिए । बस । यह सपना है । तो हमें इस सपने की हालत से विचलित नहीं होना चाहिए । यही आध्यात्मिक जीवन है । हमें विचलित नहीं होना चाहिए । जैसे हम विचलित नहीं होते हैं । मान लीजिए, सपने में, मैं सिंहासन पर बिठाया गया हूँ, और मैं एक राजा की तरह काम कर रहा था, और सपना खत्म होने के बाद, मैं दुःखी नहीं हूँ । इसी तरह, सपने में मुझे लगता है कि शेर नें मुझ पर हमला किया । मैं वास्तव में रो रहा था "यहाँ शेर है! यहां शेर है! मुझे बचाओ ।" और मेरे पीछे या मेरे बगल में लेटा व्यक्ति, वह कहता है, "ओह, क्यों तुम रो रहे हो? कहाँ शेर है?" तो जब वह जागता है, वह देखता है कि कोई शेर नहीं है । तो सब कुछ ऐसा ही है ।

लेकिन यह सपना, ये स्थूल और सूक्ष्म सपने, बस कुछ विचार हैं । जैसे कि सपना क्या है? पूरे दिन में, मैं जो सोचता हूँ सपना देखना उसका एक प्रतिबिंब है, प्रतिबिंब । मेरे पिता कपड़े का कारोबार कर रहे थे । तो कभी कभी वे सपने में कीमत का हवाला देते थे: "यह मूल्य है ।" तो इसी तरह से यह सब सपना है । यह भौतिक अस्तित्व, इन पांच स्थूल तत्वों और तीन सूक्ष्म तत्वों से बना है, वे वास्तव में सपने की तरह ही हैं । स्मर नित्यम अनित्यम । इसलिए चाण्क्य पंडित कहते हैं, स्मर नित्यम अनित्यम । यह अनित्य, अस्थायी... सपने देखना हमेशा अस्थायी है ।

तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे पास जो कुछ भी है, जो कुछ भी हम देख रहे हैं, यह सब सपना है, अस्थायी । इसलिए अगर हम इन अस्थायी बातों में तल्लीन हो जाते हैं, तथाकथित समाजवाद, राष्ट्रवाद, परिवार वाद या यह वाद, वह वाद, और अपना समय बर्बाद करते हैं, कृष्ण भावनामृत को न जागृत करते हुए, तो फिर इसे कहा जाता है, श्रम एव हि केवलम (श्रीमद भागवतम १.२.८), बस अपना समय बर्बाद करना, एक और शरीर की तैयारी करना । हमारा काम है कि हमें यह पता होना चाहिए कि, "मैं यह सपना नहीं हूँ । मैं तथ्य हूँ, आध्यात्मिक तथ्य । तो मेरा एक अलग काम है ।" यही आध्यात्मिक जीवन कहा जाता है ।

यही आध्यात्मिक जीवन है जब हम समझते हैं कि "मैं ब्रह्म हूं । मैं यह पदार्थ नहीं हूँ ।" ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा (भ.गी. १८.५४) । उस समय हम खुशहाल होंगे । क्योंकि हम भौतिक विशेषताअों के परिवर्तन से पीड़ित हैं, और हम दुःखी और सुखी हैं, इन सभी बाहरी गतिविधियों से क्लेशित । लेकिन जब हम ठीक से समझते हैं कि "मेरा इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है," तो हम हर्षित हो जाते हैं । "ओह, मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है । कुछ नहीं, मेरा इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है ।"