HI/Prabhupada 0511 - वास्तविक भुखमरी आत्मा की है । आत्मा को आध्यात्मिक भोजन नहीं मिल रहा है: Difference between revisions

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तो जो कोई भी इस भौतिक शरीर को बहुत महत्वपूर्ण स्वीकार कर रहा है ... बस उस दिन की तरह, कुछ दुष्ट अाए । वे इस शरीर को खिलाने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे । भूख से जो मर रहे हैं, भुखमरी ... जीवन की शारीरिक अवधारणा की भुखमरी । लेकिन आध्यात्मिक भुखमरी भी है । हम उसकी देखभाल नहीं कर रहे हैं । भौतिक भुखमरी हो सकती है, लेकिन वास्तव में यह समस्या नहीं है क्योंकि इस भौतिक शरीर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है । वास्तविक भुखमरी आत्मा की है । आत्मा को आध्यात्मिक भोजन नहीं मिल रहा है । इधर, इस बैठक में, इसका मकसद है भूख से पीडित आत्मा को देना । और जैसे ही तुम्हे कुछ आध्यात्मिक खाना मिलता है, तो हम खुश हो जाते हैं । यही स्थिति है । ययात्मा सुप्रसीदति । जब तक तुम्हे आध्यात्मिक खाना नहीं मिलता है असली आत्मा की संतुष्टि नहीं हो सकती है । वही उदाहरण, पिंजरे के भीतर पक्षी है । अगर तुम बस बहुत अच्छी तरह से पिंजरे को धोअो और उसे ढको और रंग दो, और पिंजरे के भीतर पक्षी रो रहा है, भूख से मर रहा है, यह सभ्यता क्या है? इसी तरह, हम आत्मा हैं, हमें इस शरीर के भीतर कैद किया गया है, तो हमारी प्राकृतिक आकांक्षा है इस कैद से मुक्ति पाना । जितना पक्षी पिंजरे से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा है । इसी तरह, हम भी, हम भी खुश नहीं हैं कैद होकर । कल हमने सीखा है, भगवद गीता से, आत्मा की स्थिति सर्व-गत: है । आत्मा कहीं भी जा सकता है । यानि कि उसे आजादी है । जो आध्यात्म में उन्नत हैं योग रहस्यवादी शक्ति से, वे भी कहीं भी जा सकते हैं । अनिमा, लघिमा, सिद्धि । भारत में अभी भी योगि हैं जो सुबह में, चार धाम में स्नान कर लेते हैं, हरिद्वार, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, और द्वारका । एसे योगि अभी भी मौजूद हैं । एक घंटे के भीतर, वे चार स्थानों में स्नान लेते हैं । सर्व-गत: , गति । वे एक स्थान पर बैठ जाऍगे अौर कुछ ही मिनटों के भीतर, योग प्रक्रिया से, उठेंगे अौर यहॉ पानी में डुबकी लगाऍगे । मान लीजिए तुमने डुबकी लंदन में लगाई , टेम्स नदी में, और जब तुम उठो तुम कलकत्ता की गंगा को देखते हो । एसी योग प्रक्रिया है । सर्व-गत: । तो आत्मा को इतनी आजादी मिलि है, सर्व-गत:, कहीं भी वह जा सकता है अपनी मर्ज़ी से । लेकिन यह बाधा जो हमारी स्वतंत्रता को रोक रही है वह है यह शरीर । तो अगर तुम इस भौतिक शरीर से छुटकारा पाते हो और आध्यात्मिक शरीर में स्थित हो, तो ... जैसे नारद मुनि की तरह, वे कहीं भी जा सकते हैं, वे जा रहे हैं, उनका काम है घूमते रहना । कभी कभी वे वैकुणठलोक जा रहे हैं या कभी कभी वे इस भौतिक में अाते हैं । उनका आध्यात्मिक शरीर है, वे कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है, अंतरिक्ष यात्री । वे मशीन द्वारा अंतरिक्ष में उड़ान भरने की कोशिश कर रहे हैं । मशीन की कोई जरूरत नहीं है । यंत्ररूढानी मायया ([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]]) । मशीन माया से बनी है । लेकिन तुम्हारी अपनी खुद की ताकत है । यह बहुत तेज़ है । तो यह रोकी जा रही है । इसलिए हमें बहुत ज्यादा सावधान रहना चाहिए कि कैसे आत्मा को इस भौतिक शरीर के इस कैद से बाहर करें । यह हमारी पहली चिंता का विषय होना चाहिए । लेकिन जो केवल इस शरीर की चिंता करते हैं, वे पशुओं, गायों और गधों से बेहतर नहीं हैं । स एव गो- खर: ([[Vanisource:SB 10.84.13|श्री भ १०।८४।१३]])
तो जो कोई भी इस भौतिक शरीर को बहुत महत्वपूर्ण स्वीकार कर रहा है... बस उस दिन की तरह, कुछ दुष्ट अाए । वे इस शरीर को खिलाने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे । भूख से जो मर रहे हैं, भुखमरी... जीवन की शारीरिक अवधारणा की भुखमरी । लेकिन आध्यात्मिक भुखमरी भी है । हम उसकी देखभाल नहीं कर रहे हैं । भौतिक भुखमरी हो सकती है, लेकिन वास्तव में यह समस्या नहीं है क्योंकि इस भौतिक शरीर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है । वास्तविक भुखमरी आत्मा की है । आत्मा को आध्यात्मिक भोजन नहीं मिल रहा है । इधर, इस बैठक में, इसका मकसद है भूख से पीडित आत्मा को देना । और जैसे ही तुम्हे कुछ आध्यात्मिक खाना मिलता है, तो हम खुश हो जाते हैं । यही स्थिति है । ययात्मा सुप्रसीदति ।  
 
जब तक तुम्हे आध्यात्मिक खाना नहीं मिलता है असली आत्मा की संतुष्टि नहीं हो सकती है । वही उदाहरण, पिंजरे के भीतर पक्षी है । अगर तुम बस बहुत अच्छी तरह से पिंजरे को धोअो और उसे ढको और रंग दो, और पिंजरे के भीतर का पक्षी रो रहा है, भूख से मर रहा है, यह सभ्यता क्या है? इसी तरह, हम आत्मा हैं, हमें इस शरीर के भीतर कैद किया गया है, तो हमारी प्राकृतिक आकांक्षा है इस कैद से मुक्ति पाना । जितना पक्षी पिंजरे से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा है । इसी तरह, हम भी, हम भी खुश नहीं हैं कैद होकर । कल हमने सीखा है, भगवद गीता से, आत्मा की स्थिति सर्व-गत: है । आत्मा कहीं भी जा सकता है । यानि कि उसे स्वतंत्रता है ।  
 
जो आध्यात्म में उन्नत हैं योग रहस्यवादी शक्ति से, वे भी कहीं भी जा सकते हैं । अनिमा, लघिमा सिद्धि । भारत में अभी भी योगी हैं जो सुबह में, चार धाम में स्नान कर लेते हैं: हरिद्वार, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, और द्वारका । एसे योगी अभी भी मौजूद हैं । एक घंटे के भीतर, वे चार स्थानों में स्नान लेते हैं । सर्व-गत:, गति । वे एक स्थान पर बैठ जाऍगे अौर कुछ ही मिनटों के भीतर, योग प्रक्रिया से, उठेंगे अौर यहॉ पानी में डुबकी लगाऍगे । मान लीजिए तुमने डुबकी लंडन में लगाई, थेम्स नदी में, और जब तुम उठो तुम कलकत्ता की गंगा को देखते हो । एसी योग प्रक्रिया है । सर्व-गत: । तो आत्मा को इतनी स्वतंत्रता मिली है, सर्व-गत:, कहीं भी वह जा सकता है अपनी मर्ज़ी से । लेकिन यह बाधा जो हमारी स्वतंत्रता को रोक रही है वह है यह शरीर । तो अगर तुम इस भौतिक शरीर से छुटकारा पाते हो और आध्यात्मिक शरीर में स्थित होते हो, तो... जैसे नारद मुनि की तरह, वे कहीं भी जा सकते हैं, वे जा रहे हैं, उनका काम है घूमते रहना । कभी कभी वे वैकुण्ठलोक जा रहे हैं या कभी कभी वे इस भौतिक लोक में अाते हैं । उनका आध्यात्मिक शरीर है, वे कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है, अंतरिक्ष यात्री । वे मशीन द्वारा अंतरिक्ष में उड़ान भरने की कोशिश कर रहे हैं । मशीन की कोई जरूरत नहीं है ।  
 
यंत्रारूढानी मायया ([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]]) । यंत्र माया से बना है । लेकिन तुम्हारी अपनी खुद की ताकत है । यह बहुत तेज़ है । तो यह रोकी जा रही है । इसलिए हमें बहुत ज्यादा सावधान रहना चाहिए कि कैसे आत्मा को इस भौतिक शरीर के इस कैद से बाहर करें । यह हमारी पहली चिंता का विषय होना चाहिए । लेकिन जो केवल इस शरीर की चिंता करते हैं, वे पशुओं, गायों और गधों से बेहतर नहीं हैं । स एव गो-खर: ([[Vanisource:SB 10.84.13|श्रीमद भागवतम १०.८४.१३]]) |
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Latest revision as of 18:47, 17 September 2020



Lecture on BG 2.25 -- London, August 28, 1973

तो जो कोई भी इस भौतिक शरीर को बहुत महत्वपूर्ण स्वीकार कर रहा है... बस उस दिन की तरह, कुछ दुष्ट अाए । वे इस शरीर को खिलाने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे । भूख से जो मर रहे हैं, भुखमरी... जीवन की शारीरिक अवधारणा की भुखमरी । लेकिन आध्यात्मिक भुखमरी भी है । हम उसकी देखभाल नहीं कर रहे हैं । भौतिक भुखमरी हो सकती है, लेकिन वास्तव में यह समस्या नहीं है क्योंकि इस भौतिक शरीर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है । वास्तविक भुखमरी आत्मा की है । आत्मा को आध्यात्मिक भोजन नहीं मिल रहा है । इधर, इस बैठक में, इसका मकसद है भूख से पीडित आत्मा को देना । और जैसे ही तुम्हे कुछ आध्यात्मिक खाना मिलता है, तो हम खुश हो जाते हैं । यही स्थिति है । ययात्मा सुप्रसीदति ।

जब तक तुम्हे आध्यात्मिक खाना नहीं मिलता है असली आत्मा की संतुष्टि नहीं हो सकती है । वही उदाहरण, पिंजरे के भीतर पक्षी है । अगर तुम बस बहुत अच्छी तरह से पिंजरे को धोअो और उसे ढको और रंग दो, और पिंजरे के भीतर का पक्षी रो रहा है, भूख से मर रहा है, यह सभ्यता क्या है? इसी तरह, हम आत्मा हैं, हमें इस शरीर के भीतर कैद किया गया है, तो हमारी प्राकृतिक आकांक्षा है इस कैद से मुक्ति पाना । जितना पक्षी पिंजरे से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा है । इसी तरह, हम भी, हम भी खुश नहीं हैं कैद होकर । कल हमने सीखा है, भगवद गीता से, आत्मा की स्थिति सर्व-गत: है । आत्मा कहीं भी जा सकता है । यानि कि उसे स्वतंत्रता है ।

जो आध्यात्म में उन्नत हैं योग रहस्यवादी शक्ति से, वे भी कहीं भी जा सकते हैं । अनिमा, लघिमा सिद्धि । भारत में अभी भी योगी हैं जो सुबह में, चार धाम में स्नान कर लेते हैं: हरिद्वार, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, और द्वारका । एसे योगी अभी भी मौजूद हैं । एक घंटे के भीतर, वे चार स्थानों में स्नान लेते हैं । सर्व-गत:, गति । वे एक स्थान पर बैठ जाऍगे अौर कुछ ही मिनटों के भीतर, योग प्रक्रिया से, उठेंगे अौर यहॉ पानी में डुबकी लगाऍगे । मान लीजिए तुमने डुबकी लंडन में लगाई, थेम्स नदी में, और जब तुम उठो तुम कलकत्ता की गंगा को देखते हो । एसी योग प्रक्रिया है । सर्व-गत: । तो आत्मा को इतनी स्वतंत्रता मिली है, सर्व-गत:, कहीं भी वह जा सकता है अपनी मर्ज़ी से । लेकिन यह बाधा जो हमारी स्वतंत्रता को रोक रही है वह है यह शरीर । तो अगर तुम इस भौतिक शरीर से छुटकारा पाते हो और आध्यात्मिक शरीर में स्थित होते हो, तो... जैसे नारद मुनि की तरह, वे कहीं भी जा सकते हैं, वे जा रहे हैं, उनका काम है घूमते रहना । कभी कभी वे वैकुण्ठलोक जा रहे हैं या कभी कभी वे इस भौतिक लोक में अाते हैं । उनका आध्यात्मिक शरीर है, वे कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है, अंतरिक्ष यात्री । वे मशीन द्वारा अंतरिक्ष में उड़ान भरने की कोशिश कर रहे हैं । मशीन की कोई जरूरत नहीं है ।

यंत्रारूढानी मायया (भ.गी. १८.६१) । यंत्र माया से बना है । लेकिन तुम्हारी अपनी खुद की ताकत है । यह बहुत तेज़ है । तो यह रोकी जा रही है । इसलिए हमें बहुत ज्यादा सावधान रहना चाहिए कि कैसे आत्मा को इस भौतिक शरीर के इस कैद से बाहर करें । यह हमारी पहली चिंता का विषय होना चाहिए । लेकिन जो केवल इस शरीर की चिंता करते हैं, वे पशुओं, गायों और गधों से बेहतर नहीं हैं । स एव गो-खर: (श्रीमद भागवतम १०.८४.१३) |