HI/Prabhupada 0651 - पूरी योग प्रणाली का मतलब है मन को हमारा दोस्त बनाना: Difference between revisions
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भक्त: श्लोक छह । | भक्त: श्लोक छह । | ||
भक्त: " जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है किन्तु जो एसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा ([[ | भक्त: "जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है | किन्तु जो एसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा ([[HI/BG 6.6|भ.गी. ६.६]]) ।" | ||
प्रभुपाद: हाँ | प्रभुपाद: हाँ | यह मन, वे मन की बात कर रहे हैं । पूरी योग प्रणाली का मतलब है मन को हमारा दोस्त बनाना । मन, भौतिक संपर्क में... जैसे एक व्यक्ति शराबी हालत में, उसका मन ही दुश्मन है । चैतन्य-चरितामृत में एक अच्छा श्लोक है । | ||
:कृष्ण भुलिया जीव भोगा वांछा करे | :कृष्ण भुलिया जीव भोगा वांछा करे | ||
: | :पाशते माया तारे जापटिया धरे | ||
:(प्रेमा-विवर्त) | :(प्रेमा-विवर्त) | ||
मन ... मैं अात्मा हूँ, परम भगवान का अंग हूँ । जैसे ही मन दूषित होता है, मैं विद्रोह करता हूँ, क्योंकि थोड़ी | मन... मैं अात्मा हूँ, परम भगवान का अंग हूँ । जैसे ही मन दूषित होता है, मैं विद्रोह करता हूँ, क्योंकि थोड़ी स्वतंत्रता मिली है । "मैं क्यों कृष्ण या भगवान की सेवा करूँ ? मैं परमेश्वर हूं ।" यह केवल मन का एक हुक्म है । और पूरी स्थिति बदल जाती है । वह गलत धारणा में रहता है, भ्रम में, और पूरा जीवन खराब हो जाता है । अौर जो ऐसा करने में नाकाम रहा है, अगर हम मन को जीतने में असफल होते हैं, हम बहुत सारी चीज़ो को, साम्राज्य को, जीतने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अगर हम अपने मन को जीतने में असफल होते हैं, तो अगर तुम एक साम्राज्य को जीत भी लो, तो वह एक विफलता है । उसका मन ही सबसे बड़ा दुश्मन हो जाएगा । अागे पढो । | ||
भकत : जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है । एसे पुरूष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं | भकत: जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है । एसे पुरूष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं ([[HI/BG 6.7|भ.गी. ६.७]]) ।" | ||
प्रभुपाद : अागे पढो । | प्रभुपाद: अागे पढो । | ||
भक्त : " वह व्यक्ति अात्म-साक्षात्कार को प्राप्त तथा योगी कहलाता है जो अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया सन्तुष्ट रहता है । एसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेन्द्रिय कहलाता है । वह सभी वस्तुअों को - चाहे वे कंकड़ हो, पत्थर हों या | भक्त: "वह व्यक्ति अात्म-साक्षात्कार को प्राप्त तथा योगी कहलाता है, जो अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया सन्तुष्ट रहता है । एसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेन्द्रिय कहलाता है । वह सभी वस्तुअों को - चाहे वे कंकड़ हो, पत्थर हों या की सोना - एकसमान देखता है ([[HI/BG 6.8|भ.गी. ६.८]]) ।" | ||
प्रभुपाद : हाँ । जब मन संतुलन में रहता है, तब यह स्थिति अाती है । कंकड़, पत्थर या सोना, एक समान । | प्रभुपाद: हाँ । जब मन संतुलन में रहता है, तब यह स्थिति अाती है । कंकड़, पत्थर या सोना, एक समान । | ||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
Lecture on BG 6.6-12 -- Los Angeles, February 15, 1969
प्रभुपाद: सभी एकत्रित भक्तों की जय हो ।
भक्त: प्रभुपाद की जय हो ।
प्रभुपाद: पृष्ठ?
भक्त: श्लोक छह ।
भक्त: "जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है | किन्तु जो एसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा (भ.गी. ६.६) ।"
प्रभुपाद: हाँ | यह मन, वे मन की बात कर रहे हैं । पूरी योग प्रणाली का मतलब है मन को हमारा दोस्त बनाना । मन, भौतिक संपर्क में... जैसे एक व्यक्ति शराबी हालत में, उसका मन ही दुश्मन है । चैतन्य-चरितामृत में एक अच्छा श्लोक है ।
- कृष्ण भुलिया जीव भोगा वांछा करे
- पाशते माया तारे जापटिया धरे
- (प्रेमा-विवर्त)
मन... मैं अात्मा हूँ, परम भगवान का अंग हूँ । जैसे ही मन दूषित होता है, मैं विद्रोह करता हूँ, क्योंकि थोड़ी स्वतंत्रता मिली है । "मैं क्यों कृष्ण या भगवान की सेवा करूँ ? मैं परमेश्वर हूं ।" यह केवल मन का एक हुक्म है । और पूरी स्थिति बदल जाती है । वह गलत धारणा में रहता है, भ्रम में, और पूरा जीवन खराब हो जाता है । अौर जो ऐसा करने में नाकाम रहा है, अगर हम मन को जीतने में असफल होते हैं, हम बहुत सारी चीज़ो को, साम्राज्य को, जीतने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अगर हम अपने मन को जीतने में असफल होते हैं, तो अगर तुम एक साम्राज्य को जीत भी लो, तो वह एक विफलता है । उसका मन ही सबसे बड़ा दुश्मन हो जाएगा । अागे पढो ।
भकत: जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है । एसे पुरूष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं (भ.गी. ६.७) ।"
प्रभुपाद: अागे पढो ।
भक्त: "वह व्यक्ति अात्म-साक्षात्कार को प्राप्त तथा योगी कहलाता है, जो अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया सन्तुष्ट रहता है । एसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेन्द्रिय कहलाता है । वह सभी वस्तुअों को - चाहे वे कंकड़ हो, पत्थर हों या की सोना - एकसमान देखता है (भ.गी. ६.८) ।"
प्रभुपाद: हाँ । जब मन संतुलन में रहता है, तब यह स्थिति अाती है । कंकड़, पत्थर या सोना, एक समान ।