HI/680829 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680829SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|तो कोई भी जीवित संस्था जो इस भौतिक दुनिया के भीतर है, वे यहाँ उस दो सिद्धांतों- इच्छा, द्वेष के साथ आए हैं। इच्छा का अर्थ है कि वे भौतिक भोग से खुश होना चाहते हैं और "क्या भगवान हैं? मैं भगवान हूँ।" ये दो बातें पूरी बीमारी इन दो सिद्धांतों पर है - प्रभु के अस्तित्व को नकारना और भौतिक समायोजन से खुश रहने की कोशिश करना। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। यह बस परेशान कर रहा है। बस परेशान कर रहा है।|Vanisource:680829 - Lecture SB 07.09.13-14 - Montreal|680829 - प्रवचन SB 07.09.13-14 - मॉन्ट्रियल}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680829SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|तो कोई भी जीवित संस्था जो इस भौतिक दुनिया के भीतर है, वे यहाँ उस दो सिद्धांतों- इच्छा, द्वेष के साथ आए हैं। इच्छा का अर्थ है कि वे भौतिक भोग से खुश होना चाहते हैं और "क्या भगवान हैं? मैं भगवान हूँ।" ये दो बातें पूरी बीमारी इन दो सिद्धांतों पर है - प्रभु के अस्तित्व को नकारना और भौतिक समायोजन से खुश रहने की कोशिश करना। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। यह बस परेशान कर रहा है। बस परेशान कर रहा है।|Vanisource:680829 - Lecture SB 07.09.13-14 - Montreal|680829 - प्रवचन SB 07.09.13-14 - मॉन्ट्रियल}} |
Revision as of 00:40, 9 January 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
तो कोई भी जीवित संस्था जो इस भौतिक दुनिया के भीतर है, वे यहाँ उस दो सिद्धांतों- इच्छा, द्वेष के साथ आए हैं। इच्छा का अर्थ है कि वे भौतिक भोग से खुश होना चाहते हैं और "क्या भगवान हैं? मैं भगवान हूँ।" ये दो बातें पूरी बीमारी इन दो सिद्धांतों पर है - प्रभु के अस्तित्व को नकारना और भौतिक समायोजन से खुश रहने की कोशिश करना। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। यह बस परेशान कर रहा है। बस परेशान कर रहा है। |
680829 - प्रवचन SB 07.09.13-14 - मॉन्ट्रियल |