HI/BG 18.43: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:36, 18 August 2020
श्लोक 43
- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् ।
- दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥४३॥
शब्दार्थ
शौर्यम्—वीरता; तेज:—शक्ति; धृति:—संकल्प, धैर्य; दाक्ष्यम्—दक्षता; युद्धे—युद्ध में; च—तथा; अपि—भी; अपलायनम्—विमुख न होना; दानम्—उदारता; ईश्वर—नेतृत्व का; भाव:—स्वभाव; च—तथा; क्षात्रम्—क्षत्रिय का; कर्म—कर्तव्य; स्वभावजम्—स्वभाव से उत्पन्न, स्वाभाविक।
अनुवाद
वीरता, शक्ति, संकल्प, दक्षता, युद्ध में धैर्य, उदारता तथा नेतृत्व –ये क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण हैं |