HI/Prabhupada 0794 - धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0794 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1973 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 6: Line 6:
[[Category:HI-Quotes - in United Kingdom]]
[[Category:HI-Quotes - in United Kingdom]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0793 - शिक्षा में कोई अंतर नहीं है । इसलिए गुरु एक है|0793|HI/Prabhupada 0795 - आधुनिक दुनिया वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता वश सक्रिय हैं, रजस तमस में|0795}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 14: Line 17:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|QVAh8FhrP5w|धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो <br/>- Prabhupāda 0794}}
{{youtube_right|CLgXPmA6k9I|धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो <br/>- Prabhupāda 0794}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>File:730823BG-LONDON_clip1.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/730823BG-LONDON_clip1.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 26: Line 29:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
तो यह कलयुग इतना बलवान है, यहां तक ​​कि वह तथाकथित भक्तों पर हमल करती है । कलयुग बहुत बलवान है। इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें सलाह दी है कि अगर तुम अपने आप को बचाना चाहते हो, अगर तुम रुचि रखते हो अमृत की स्थित पाना, अगर तुम इच्छुक हो, कोई भी दिलचस्पी नहीं रखता है । श्री कृष्ण कहते हैं, स अमृतत्व कल्पते । यही जीवन का उद्देश्य है: कैसे मैं अमर बनूँ । कैसे मैं व्यथित हालत के चार सिद्धांतों के अधीन न रहूँ - जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापा । कोई भी गंभीर नहीं है । वे इतने सुस्त हैं । इसलिए उन्हे वर्णित किया गया है, मंद । मंदा का मतलब है इतना बुरा, इतना धूर्त कि जीवन में कोई महत्वाकांक्षा नहीं है । वे जानते नहीं है कि जीवन का लक्ष्य क्या है । मंद । मंद मतलब है "बुरा " । और सुमंद मतय: । अौर अगर उनमें से कुछ, सिर्फ मान्यता प्राप्त करने के लिए, बहुत धार्मिक होने की, वह किसी धूर्त गुरु को स्वीकार करेगा, जादूगर, और सब कुछ खाएगा, सब कुछ करेगा और अध्यात्मवादी बनेगा, और धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो । धर्म का खाने के साथ कुछ भी लेना देना नहीं है ।" यह चल रहा है । ईसाई लोग, यह स्पष्ट रूप से, स्पष्ट रूप से कहा गया है "तुम मारोगे नहीं " लेकिन वे मार रहे हैं । फिर भी, वे बहुत बहुत गर्व करते हैं, "मैं ईसाई हूं।" और किस तरह के ईसाई हो तुम ? तुम नियमित रूप से मसीह के आदेश की अवहेलना कर रहे हो, और फिर भी भी तुम ईसाई हो ? तो सब कुछ चल रहा है । या ईसाई, मुसलमान या हिंदू, तथाकथित । वे सब धूर्त बन गए हैं । बस । यह कलयुग है । मंद: सुमंद मतय: उन्होंने अपने स्वयं के काल्पनिक धार्मिक सिद्धांत बनाए हैं, और इसलिए वे निंदनीय हैं । वे नहीं जानते । जीवन, जीवन का उद्देश्य है भगवान की प्राप्ति । यह मानव जीवन है । लेकिन वे बेकाबू इन्द्रियों से इतना शर्मिंदा हैं कि वे भौतिक अस्तित्व के अंधेरे क्षेत्र में जा रहे हैं । अदांत गोभि: । अदांत का मतलब है अनियंत्रित । वे इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि साधारण बात थोड़ा प्रयास, थोड़ी तपस्या, इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए । योग प्रक्रिया का मतलब है इंद्रियों को नियंत्रित करना । योग का मतलब नहीं है कि तुम कुछ जादू दिखाअो । जादू, जादूगर भी जादू दिखा सकता है । हमने एक जादूगर को देखा है, उसने तुरंत इतने सिक्के बनाए -टंग टंग टंग टंग । अगले ही पल यह सब खत्म हो गया । तो जीवन, वे जीवन के उद्देश्य को भूल रहे हैं । मंदा: सुमंद मतय" क्यों ? मंदा भाग्या: वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं । तो तुम मान लेते हो । हम कोशिश कर रहे हैं, हमार कृष्ण भावनामृत अंदोलन, हम जगाने की कोशिश कर रहे हैं । फिर भी वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि वे इन्द्रिय संतुष्टि को त्याग नहीं सकते हैं । बहुत दुर्भाग्यपूर्ण । निंदनीय, दुर्भाग्यपूर्ण । बार बार हम खून बहा रहे हैं - "ऐसा मत करो" फिर भी वे कर रहे हैं । यहां तक ​​सोना नहीं छोड़ सकते हैं । इतने निंदनीय । कलयुग । मंदा: सुममद मतय: ।
तो यह कलयुग इतना बलवान है, यहां तक ​​कि वह तथाकथित भक्तों पर हमला करती है । कलयुग बहुत बलवान है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें सलाह दी है कि अगर तुम अपने आप को बचाना चाहते हो, अगर तुम रुचि रखते हो अमृत की स्थित पाने में, अगर तुम इच्छुक हो... कोई भी दिलचस्पी नहीं रखता है । कृष्ण कहते हैं, स अमृतत्वाय कल्पते ([[Vanisource: BG 2.15 (1972) |भ.गी. २.१५]]) । यही जीवन का उद्देश्य है: कैसे मैं अमर बनूँ । कैसे मैं व्यथित हालत के चार सिद्धांतों के अधीन न रहूँ - जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापा । कोई भी गंभीर नहीं है । वे इतने सुस्त हैं । इसलिए उन्हे वर्णित किया गया है, मंद । मंदा का मतलब है इतना बुरा, इतना धूर्त कि जीवन में कोई महत्वाकांक्षा नहीं है । वे जानते नहीं है कि जीवन का लक्ष्य क्या है । मंद ।  
 
मंद मतलब है "बुरा" । और सुमंद मतय: । अौर अगर उनमें से कुछ, सिर्फ मान्यता प्राप्त करने के लिए, बहुत धार्मिक होने की, वह किसी धूर्त गुरु को स्वीकार करेगा, जादूगर, और सब कुछ खाएगा, सब कुछ करेगा और अध्यात्मवादी बनेगा, और धूर्त गुरु कहेगा, "हाँ, तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो । धर्म का खाने के साथ कुछ भी लेना देना नहीं है ।" यह चल रहा है । ईसाई लोग, यह स्पष्ट रूप से, स्पष्ट रूप से कहा गया है "तुम मारोगे नहीं |" लेकिन वे मार रहे हैं । फिर भी, वे बहुत बहुत गर्व करते हैं, "मैं ईसाई हूं ।" और किस तरह के ईसाई हो तुम ? तुम नियमित रूप से मसीह के आदेश की अवहेलना कर रहे हो, और फिर भी भी तुम ईसाई हो ? तो सब कुछ चल रहा है ।  
 
या ईसाई, मुसलमान या हिंदू, तथाकथित । वे सब धूर्त बन गए हैं । बस । यह कलयुग है । मंदा: सुमंद मतय: | उन्होंने अपने स्वयं के काल्पनिक धार्मिक सिद्धांत बनाए हैं, और इसलिए वे निंदनीय हैं । वे नहीं जानते । जीवन, जीवन का उद्देश्य है भगवद साक्षात्कार । यह मानव जीवन है । लेकिन वे बेकाबू इन्द्रियों से इतना शर्मिंदा हैं कि वे भौतिक अस्तित्व के अंधेरे क्षेत्र में जा रहे हैं । अदांत गोभि: । अदांत का मतलब है अनियंत्रित । वे इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि साधारण बात, थोड़ा प्रयास, थोड़ी तपस्या, इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए ।  
 
योग प्रक्रिया का मतलब है इंद्रियों को नियंत्रित करना । योग का मतलब नहीं है कि तुम कुछ जादू दिखाअो । जादू, जादूगर भी जादू दिखा सकता है । हमने एक जादूगर को देखा है, उसने तुरंत इतने सिक्के बनाए - टंग टंग टंग टंग । अगले ही पल यह सब खत्म हो गया । तो जीवन, वे जीवन के उद्देश्य को भूल रहे हैं । मंदा: सुमंद मतय: | क्यों ? मंद भाग्या: | वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं । तो तुम मान लेते हो । हम कोशिश कर रहे हैं, हमारा कृष्ण भावनामृत अंदोलन, हम जगाने की कोशिश कर रहे हैं । फिर भी वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि वे इन्द्रिय संतुष्टि को त्याग नहीं सकते हैं । बहुत दुर्भाग्यपूर्ण । निंदनीय, दुर्भाग्यपूर्ण । बार बार हम खून बहा रहे हैं - "ऐसा मत करो" फिर भी वे कर रहे हैं । यहां तक ​​सोना नहीं छोड़ सकते हैं । इतने निंदनीय । कलियुग । मंदा: सुमंद मतय: ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 2.17 -- London, August 23, 1973

तो यह कलयुग इतना बलवान है, यहां तक ​​कि वह तथाकथित भक्तों पर हमला करती है । कलयुग बहुत बलवान है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें सलाह दी है कि अगर तुम अपने आप को बचाना चाहते हो, अगर तुम रुचि रखते हो अमृत की स्थित पाने में, अगर तुम इच्छुक हो... कोई भी दिलचस्पी नहीं रखता है । कृष्ण कहते हैं, स अमृतत्वाय कल्पते (भ.गी. २.१५) । यही जीवन का उद्देश्य है: कैसे मैं अमर बनूँ । कैसे मैं व्यथित हालत के चार सिद्धांतों के अधीन न रहूँ - जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापा । कोई भी गंभीर नहीं है । वे इतने सुस्त हैं । इसलिए उन्हे वर्णित किया गया है, मंद । मंदा का मतलब है इतना बुरा, इतना धूर्त कि जीवन में कोई महत्वाकांक्षा नहीं है । वे जानते नहीं है कि जीवन का लक्ष्य क्या है । मंद ।

मंद मतलब है "बुरा" । और सुमंद मतय: । अौर अगर उनमें से कुछ, सिर्फ मान्यता प्राप्त करने के लिए, बहुत धार्मिक होने की, वह किसी धूर्त गुरु को स्वीकार करेगा, जादूगर, और सब कुछ खाएगा, सब कुछ करेगा और अध्यात्मवादी बनेगा, और धूर्त गुरु कहेगा, "हाँ, तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो । धर्म का खाने के साथ कुछ भी लेना देना नहीं है ।" यह चल रहा है । ईसाई लोग, यह स्पष्ट रूप से, स्पष्ट रूप से कहा गया है "तुम मारोगे नहीं |" लेकिन वे मार रहे हैं । फिर भी, वे बहुत बहुत गर्व करते हैं, "मैं ईसाई हूं ।" और किस तरह के ईसाई हो तुम ? तुम नियमित रूप से मसीह के आदेश की अवहेलना कर रहे हो, और फिर भी भी तुम ईसाई हो ? तो सब कुछ चल रहा है ।

या ईसाई, मुसलमान या हिंदू, तथाकथित । वे सब धूर्त बन गए हैं । बस । यह कलयुग है । मंदा: सुमंद मतय: | उन्होंने अपने स्वयं के काल्पनिक धार्मिक सिद्धांत बनाए हैं, और इसलिए वे निंदनीय हैं । वे नहीं जानते । जीवन, जीवन का उद्देश्य है भगवद साक्षात्कार । यह मानव जीवन है । लेकिन वे बेकाबू इन्द्रियों से इतना शर्मिंदा हैं कि वे भौतिक अस्तित्व के अंधेरे क्षेत्र में जा रहे हैं । अदांत गोभि: । अदांत का मतलब है अनियंत्रित । वे इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि साधारण बात, थोड़ा प्रयास, थोड़ी तपस्या, इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए ।

योग प्रक्रिया का मतलब है इंद्रियों को नियंत्रित करना । योग का मतलब नहीं है कि तुम कुछ जादू दिखाअो । जादू, जादूगर भी जादू दिखा सकता है । हमने एक जादूगर को देखा है, उसने तुरंत इतने सिक्के बनाए - टंग टंग टंग टंग । अगले ही पल यह सब खत्म हो गया । तो जीवन, वे जीवन के उद्देश्य को भूल रहे हैं । मंदा: सुमंद मतय: | क्यों ? मंद भाग्या: | वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं । तो तुम मान लेते हो । हम कोशिश कर रहे हैं, हमारा कृष्ण भावनामृत अंदोलन, हम जगाने की कोशिश कर रहे हैं । फिर भी वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि वे इन्द्रिय संतुष्टि को त्याग नहीं सकते हैं । बहुत दुर्भाग्यपूर्ण । निंदनीय, दुर्भाग्यपूर्ण । बार बार हम खून बहा रहे हैं - "ऐसा मत करो" फिर भी वे कर रहे हैं । यहां तक ​​सोना नहीं छोड़ सकते हैं । इतने निंदनीय । कलियुग । मंदा: सुमंद मतय: ।