HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं: Difference between revisions

 
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सैंडी निक्सन: ठीक है।यह सवाल पूछना मेरे लिए मुश्किल है क्योंकि यह मेरी अज्ञानता को प्रकट करने जैसा है । लेकिन मैं अज्ञानता में यह नहीं पूछ रही हूँ। मैं टेप पर आपका जवाब चाहती हूँ, ठीक है? अंत में क्या कृष्णमय चेतना प्राप्त करने की इच्छा समेत सभी इच्छाओं का अस्तित्व मिट जाना चाहिए ?
सैंडी निक्सन: ठीक है ।यह सवाल पूछना मेरे लिए मुश्किल है क्योंकि यह मेरी अज्ञानता को प्रकट करने जैसा है । लेकिन मैं अज्ञानता में यह नहीं पूछ रही हूँ । मैं टेप पर आपका जवाब चाहती हूँ, ठीक है? अंत में क्या सभी इच्छाओ को मिट जाना चाहिए, कृष्ण भावनामृत को प्राप्त करने की इच्छा समेट ?  


प्रभुपाद : कृष्ण भावना भावित चेतना के बिना आपकी सारी इच्छाएँ निरर्थक होंगी । और जब आप कृष्ण भावना भावित चेतना में रहोगे तब आप सही और सार्थक इच्छा करोगे ।
प्रभुपाद: कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं | और जब आप कृष्ण भावना भावित है, तब आप सही और सार्थक इच्छा करोगे ।  


सैंडी निक्सन: कई आध्यात्मिक मार्गों का लक्ष्य अपनें भीतर के गुरू को खोज निकालना है ।
सैंडी निक्सन: कई आध्यात्मिक मार्गों का लक्ष्य अपनें भीतर के गुरू को खोज निकालना है ।  


प्रभुपाद : अपने भीतर ?
प्रभुपाद: अपने भीतर ?  


सैंडी निक्सन: हाँ अपने भीतर के गुरू को । क्या यह उससे अलग है ?
सैंडी निक्सन: हाँ अपने भीतर के गुरू को । क्या यह उससे अलग है ?  


प्रभुपाद : कौन कहता है के अपने भीतर के गुरू को खोजना है ?
प्रभुपाद: कौन कहता है के अपने भीतर के गुरू को खोजना है ?  


सैंडी निक्सन : हम्म...
सैंडी निक्सन: हम्म...  


जयतीर्थ : क्रुपाल सिंग, वह कहता है ।
जयतीर्थ: किरपाल सिंग, वह कहता है ।  


सैंडी निक्सन : क्षमा करें कौन ?
सैंडी निक्सन : क्षमा करें कौन ?  


जयतीर्थ : क्रुपाल सिंग, वह एक व्यक्ति है जो ऐसा कहता है ।
जयतीर्थ: किरपाल सिंग, वह एक व्यक्ति है जो ऐसा कहता है ।  


गुरुदास : कृष्णमूर्ति भी कहता है ।
गुरुदास: कृष्णमूर्ति भी कहता है ।  


प्रभुपाद : तो फिर वह क्यों सिखा रहा है ? ( हँसी ) यह घटिया आदमी क्यों आ जाता है सिखाने ? यही उत्तर है । ऐसी बातें घटिया लोग बोलते हैं । वह सिखाने आया है और कहता है, " अपने अंदर के गुरू को खोजो ।" फिर तुम्हारी क्या आवश्यकता है सिखाने की ? जनता तो बहुत बुद्धिमान नहीं है, तो वे उसके छल को पकड़ नहीं पाते । वह बेतुकी बातें किए जा रहा है, और वे बस सुनते ही रहते हैं ।
प्रभुपाद: तो फिर वह क्यों सिखा रहा है ? ( हँसी ) यह धूर्त, वो सिखाने क्यों आया है ? यही उत्तर है । ऐसी बातें धूर्त बोलते हैं । वह सिखाने आया है और कहता है, "अपने अंदर के गुरू को खोजो ।" फिर तुम क्यों आये हो सिखाने ? क्योंकि लोग बहुत बुद्धिमान नहीं है, वे उसके छल को पकड़ नहीं पाते । वह बकवास बाते बोलता है, और वे बस सुनते हैं ।  


गुरूदास : " किताबों की कोई आवश्यकता नहीं है ।" इसपर उसने एक किताब भी लिखी है । ( हँसी )
गुरूदास: उसने एक पुस्तक भी लिखी है की "किसी किताब की आवश्यकता नहीं है ।" (हँसी)  


प्रभुपाद : तो अब आप जान सकते हैं के वह कितना धूर्त व्यक्ति है । है के नहीं ? आप मानते हो या नहीं ? वह खुद किताब लिख रहा है और कहता है, " किताबों की जरूरत नहीं है ।" वह खुद सिखाने आया है और कहता है, "गुरू की आवश्यकता नहीं है । गुरू अपने अंदर ही है। " क्या वह धूर्त नहीं है ?
प्रभुपाद: तो अब आप जान सकते हैं के वह कितना धूर्त व्यक्ति है । है के नहीं ? आप मानते हो या नहीं ? वह खुद किताब लिख रहा है, और कहता है, "किताबों की जरूरत नहीं है ।" वह खुद सिखाने आया है, और कहता है, "गुरू की आवश्यकता नहीं है । गुरू अपने अंदर ही है। "क्या वह धूर्त नहीं है ?  


सैंडी निक्सन : खैर वे कहते हैं... वे लोग...
सैंडी निक्सन : खैर, वे कहते हैं... वे लोग...  


प्रभुपाद : पहले आप मेरी बात का उत्तर दीजिए । अगर वह दो विरोधी बातें बता रहा है, तो क्या वह धूर्त नहीं है ?
प्रभुपाद: नहीं, पहले आप मेरी बात का उत्तर दीजिए । अगर वह दो विरोधी बातें बता रहा है, तो क्या वह धूर्त नहीं है ?  


सैंडी निक्सन : वैसे वह जरूर अपने बात के विरुद्ध कर रहा है ।
सैंडी निक्सन: वैसे वह जरूर विरोधाभास कर रहा है ।  


प्रभुपााद : इसीलिए वह कपटी है । वह अपने विचारों के विरुद्ध तर्क नहीं कर सकता ।
प्रभुपाद : इसीलिए वह धूर्त है । वो जानता नहीं है की ख़ुदका बचाव कैसे करे |


सैंडी निक्सन : क्या वेदों को काव्यास्पद अर्थ युक्त तथा यथारूप दोनों ही तरह से समझा जा सकता है ?
सैंडी निक्सन: क्या वेदों को काव्यास्पद अर्थ युक्त तथा यथारूप दोनों ही तरह से समझा जा सकता है ?  


प्रभुपाद : यथारूप । हम भगवत् गीता को यथारूप प्रस्तुत कर रहे हैं, किसी काल्पनिक गौण रूप में नहीं ।
प्रभुपाद : यथारूप । हम भगवद गीता को यथारूप प्रस्तुत कर रहे हैं, किसी काल्पनिक गौण रूप में नहीं ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



750713 - Conversation B - Philadelphia

सैंडी निक्सन: ठीक है ।यह सवाल पूछना मेरे लिए मुश्किल है क्योंकि यह मेरी अज्ञानता को प्रकट करने जैसा है । लेकिन मैं अज्ञानता में यह नहीं पूछ रही हूँ । मैं टेप पर आपका जवाब चाहती हूँ, ठीक है? अंत में क्या सभी इच्छाओ को मिट जाना चाहिए, कृष्ण भावनामृत को प्राप्त करने की इच्छा समेट ?

प्रभुपाद: कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं | और जब आप कृष्ण भावना भावित है, तब आप सही और सार्थक इच्छा करोगे ।

सैंडी निक्सन: कई आध्यात्मिक मार्गों का लक्ष्य अपनें भीतर के गुरू को खोज निकालना है ।

प्रभुपाद: अपने भीतर ?

सैंडी निक्सन: हाँ अपने भीतर के गुरू को । क्या यह उससे अलग है ?

प्रभुपाद: कौन कहता है के अपने भीतर के गुरू को खोजना है ?

सैंडी निक्सन: हम्म...

जयतीर्थ: किरपाल सिंग, वह कहता है ।

सैंडी निक्सन : क्षमा करें कौन ?

जयतीर्थ: किरपाल सिंग, वह एक व्यक्ति है जो ऐसा कहता है ।

गुरुदास: कृष्णमूर्ति भी कहता है ।

प्रभुपाद: तो फिर वह क्यों सिखा रहा है ? ( हँसी ) यह धूर्त, वो सिखाने क्यों आया है ? यही उत्तर है । ऐसी बातें धूर्त बोलते हैं । वह सिखाने आया है और कहता है, "अपने अंदर के गुरू को खोजो ।" फिर तुम क्यों आये हो सिखाने ? क्योंकि लोग बहुत बुद्धिमान नहीं है, वे उसके छल को पकड़ नहीं पाते । वह बकवास बाते बोलता है, और वे बस सुनते हैं ।

गुरूदास: उसने एक पुस्तक भी लिखी है की "किसी किताब की आवश्यकता नहीं है ।" (हँसी)

प्रभुपाद: तो अब आप जान सकते हैं के वह कितना धूर्त व्यक्ति है । है के नहीं ? आप मानते हो या नहीं ? वह खुद किताब लिख रहा है, और कहता है, "किताबों की जरूरत नहीं है ।" वह खुद सिखाने आया है, और कहता है, "गुरू की आवश्यकता नहीं है । गुरू अपने अंदर ही है। "क्या वह धूर्त नहीं है ?

सैंडी निक्सन : खैर, वे कहते हैं... वे लोग...

प्रभुपाद: नहीं, पहले आप मेरी बात का उत्तर दीजिए । अगर वह दो विरोधी बातें बता रहा है, तो क्या वह धूर्त नहीं है ?

सैंडी निक्सन: वैसे वह जरूर विरोधाभास कर रहा है ।

प्रभुपाद : इसीलिए वह धूर्त है । वो जानता नहीं है की ख़ुदका बचाव कैसे करे |

सैंडी निक्सन: क्या वेदों को काव्यास्पद अर्थ युक्त तथा यथारूप दोनों ही तरह से समझा जा सकता है ?

प्रभुपाद : यथारूप । हम भगवद गीता को यथारूप प्रस्तुत कर रहे हैं, किसी काल्पनिक गौण रूप में नहीं ।