HI/680626 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680626IP-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|शारीरिक रोगों को ठीक करने के लिए कई अस्पताल हैं, लेकिन आत्मा की बीमारी का इलाज करने के लिए कोई अस्पताल नहीं है । इसलिए आत्मा की बीमारी को ठीक करने के लिए यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । आत्मा की बीमारी । प्रत्येक आत्मा, प्रत्येक व्यक्ति, इस शरीर को या मन को अपने स्वयं के रूप में स्वीकार करने की गलती करता है । यह अंतर है । यस्यात्म-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके, स एव गो खरः ([[:Vanisource:SB 10.84.13| श्री.भा. १०.८४.१३]]) । जो कोई भी इस शरीर को स्वयं के रूप में स्वीकार कर रहा है, वह या तो एक गधा या एक गाय है । गलत धारणा तो लोगों को कोई दिलचस्पी नहीं है ।|Vanisource:680626 - Lecture - Montreal|680626 - प्रवचन - मॉन्ट्रियल}}
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Latest revision as of 07:44, 7 June 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
शारीरिक रोगों को ठीक करने के लिए कई अस्पताल हैं, परंतु आत्मा की बीमारी का इलाज करने के लिए कोई अस्पताल नहीं है। इसलिए आत्मा की बीमारी को ठीक करने के लिए यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। आत्मा की बीमारी। प्रत्येक आत्मा, प्रत्येक व्यक्ति, इस शरीर को या मन को अपने स्वयं के रूप में स्वीकार करने की गलती करता है। यह अंतर है। यस्यात्म-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके, स एव गो खरः ( श्री.भा. १०.८४.१३)। जो कोई भी इस शरीर को स्वयं के रूप में स्वीकार कर रहा है, वह या तो एक गधा या एक गाय है। स्वयं की शरीर के रूप में पहचान गलत धारणा है। तो लोगों को वास्तविकता समझने में कोई रुचि नहीं है।
680626 - प्रवचन - मॉन्ट्रियल