HI/Prabhupada 0881 - यद्यपि भगवान अदृश्य हैं, अब वे दिखाई देने के लिए अवतरित हुए हैं, कृष्ण
730413 - Lecture SB 01.08.21 - New York
अनुवाद: "मुझे इसलिए भगवान को इसलिए दण्डवत प्रणाम करने दो जो वसुदेव के बेटे बने, देवकी का सुख, नंदा और वृन्दावन के अन्य चरवाहे पुरुष के लडक़े, अौर गायों और इंद्रियों को हर्षित करने वाले । " प्रभुपाद: तो शुरुआत में कुंतिदेवी ने कहा कि नमस्ये पुरुषम् त्वाद्यम ईष्वरम् प्रकृते: परम ( श्री भ १।८।१८) "मै दणड़वत प्रणाम करता हूँ उस व्यक्ति को, पुरुषम, जो प्रकृते: परम हैं, जो इस भौतक अभिव्यक्ति से परे हैं ।" श्री कृष्ण पूर्ण अात्मा हैं, परमात्मा । उनका कोई भौतिक शरीर नहीं है। तो शुरुआत में कुंतिदेवी नें हमें यह समझ दी कि भगवान, परम पुरुष ... पुरुष का मतलब है व्यक्ति । वे अव्यक्त नहीं है। पुरुष । लेकिन वे इस भौतिक जगत के एक पुरुष नहीं हैं, इस भौतिक निर्माण के एक व्यक्तित्व नहीं हैं । यह समझा जाना चाहिए । मायावादी ज्ञान की कमी के कारण इसको स्वीकार नहीं कर सकते हैं कि कैसे परम निरपेक्ष सत्य व्यक्ति हो सकता है,
क्योंकि जब भी वे व्यक्ति के बारे में सोचते हैं वे इस भौतिक दुनिया के एक व्यक्ति के बारे में सोचते हैं । यह उनका दोष है। तो उनमें ज्ञान कि कमी है ।
क्यों भगवान को इस भोतिक जगत का एक व्यक्ति होना चाहिए ? तो यह शुरुआत में स्पष्ट किया गया ।
प्रकृते: परम, इस भौतिक सृष्टि से परे, लेकिन वे एक व्यक्ति हैं । तो अब वह व्यक्तित्व, हालांकि अलक्ष्यम, अदृश्य, अब, कुंती की कृपा से, हम समझ सकते हैं कि हालांकि भगवान अदृश्य हैं, अब वे अब अवतरित हुए है दिखाई देने के लिए, श्री कृष्ण । इसलिए वे कहती हैं: कृष्नाय वासुदेवाय ( श्री भ १।८।२१) । वासुदेव विचार । कभी कभी मायावादी, उन्हे वासुदेव विचार है, मतलब सर्वव्यापी । तो कुंतिदेवी बताती हैं "वह वासुदेव श्री कृष्ण, सर्वव्यापी हैं ।" श्री कृष्ण, उनकी वासुदेव रूप से, वे सर्वव्यापी हैं । ईष्वर: सर्व भूतानाम् ह्रद देशे अर्जुन तिष्टथि ( भ गी १८।६१) । श्री कृष्ण का यह रूप ... श्री कृष्ण, मूल व्यक्ति, के तीन रूप हैं : भगवान, सर्वव्यापी परमात्मा, और निराकार ब्रह्म तेज । तो जो भक्ति-योग में रुचि रखते हैं, उनका निराकार ब्रह्म तेज से कोई मतलब नहीं है । यह आम आदमी के लिए है। आम आदमी। जैसे तुम समझने की कोशिश करो : जो सूर्य ग्रह के निवासी हैं उनका धूप से क्या काम ? यह उनके लिए एक तुच्छ बात है, धूप । इसी तरह, आध्यात्मिक जीवन में जो लोग उन्नत हैं वे व्यक्ति में रुचि रखते हैं, वासुदेव । पुरुषम । यह बोध होता है, जैसे कि भगवद गीता में कहा गया है, बहुत, बहुत जन्म के बाद । बहुनाम् जन्मनाम अमते ( भ गी ७।१९) बहुत से, कई जन्मों के अंत में। ये मायावादी वे बहुत ज्यादा ब्रह्म तेज से जुड़े होते हैं ऐसे व्यक्ति, वे ज्ञानी कहे जाते हैं । वे निरपेक्ष सत्य को समझने की कोशिश कर रहे हैं अपने ज्ञान के बल पर लेकिन वे जानते नहीं हैं कि उनका ज्ञान बहुत अपूर्ण और सीमित है । और श्री कृष्ण, निरपेक्ष सत्य, असीमित हैं ।