HI/Prabhupada 0069 - मैं मरने नहीं वाला
Conversation Pieces -- May 27, 1977, Vrndavana
कीर्तनानन्द: हम खुश नहीं रह सकते हैं यदि अापकी सेहत अच्छी नहीं है ।
प्रभुपाद: मैं हमेशा अच्छा हूँ ।
कीर्तनानन्द: अाप हमें अपना बुढ़ापा क्यों नहीं दे सकते हैं ?
प्रभुपाद: जब मैं देखता हूँ कि चीजें अच्छी तरह से चल रही हैं, तो मैं प्रसन्न होता हूँ । इस शरीर का क्या है ? शरीर तो शरीर है । हम यह शरीर नहीं हैं । कीर्तनानन्द: क्या वह पुरुदास नहीं था जिसने अपने पिता को अपना यौवन दिया था ?
प्रभुपाद: हम् ?
रामेश्व्र: ययाति । राजा ययाति उसने अपने बुढ़ापे की अदला-बदली की ।
कीर्तनानन्द: अपने पुत्र के साथ । आप ऐसा कर सकते हैं ।
प्रभुपाद: (हँसते हुए) किसने किया ?
रामेश्व्र: राजा ययाति ।
प्रभुपाद: आह । ययाति । नहीं, क्यों ? तुम मेरा शरीर हो । तो तुम जीवित रहो । कोई अंतर नहीं है । जैसे मैं कार्य कर रहा हूँ, तो मेरे गुरु महाराज यहाँ हैं, भक्तिसिद्धान्त सरस्वती । शारीरिक रूप से वे उपस्थित नहीं हैं, लेकिन हर कार्य में वे हैं । मुझे लगता है कि मैंने यह लिखा है ।
तमाल कृष्ण: हाँ, यह भागवतम् में है कि, "वह जो उनके साथ रहता है, वह शाश्वत है ।" वह जो उनके शब्दों को याद रखता है, वह शाश्वत है ।"
प्रभुपाद: तो मैं मरने वाला नहीं हूँ । कीर्तिर यस्य जीवति: "जिसने कुछ ठोस किया है, वह हमेशा के लिए जीवित रहता है ।" वह मरता नहीं है । यहाँ तक कि हमारे व्यावहारिक जीवन में... बेशक, यह भौतिक है, कर्म-फल । व्यक्ति को अपने कर्म के अनुसार दूसरा शरीर स्वीकारना पड़ता है। लेकिन भक्त के लिए ऐसी कुछ नहीं है । वह हमेशा कृष्ण की सेवा के लिए शरीर स्वीकार करता है । इसलिए कोई कर्म-फल नहीं है ।