HI/Prabhupada 0353 कृष्णके बारेमें लिखो, पढो, बात,चिन्तन करो,पूजा करो, भोजन बनाओ, ग्रहण करो,ये कृष्ण कीर्तन है

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Lecture on SB 2.1.2 -- Vrndavana, March 17, 1974

प्रभुपाद: तो हमें तथाकथित गोस्वामियों से अलग होना चाहिए । वृन्दावन में जो रहेंगे......हर जगह । हर जगह वृन्दावन है । जहाँ भी श्री कृष्ण का मंदिर है, श्री कृष्ण का संकीर्तन, वहीं वृन्दावन है । चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि, "मेरा मन सदैव वृन्दावन में है ।" क्योंकि वे सदैव श्री कृष्ण के बारे में चिन्तन करते हैं । श्री कृष्ण हैं - वे स्वयं श्री कृष्ण हैं - केवल हमें सिखाने के लिए ।

तो इसी तरह, जहाँ भी तुम रहो, अगर तुम वास्तव में श्री कृष्ण की शिक्षा के अनुयायी हो, जैसा कि श्री कृष्ण कहते हैं, मन मना भव मद भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५), तो फिर वहीं वृन्दावन है । तुम जहाँ भी रहते हो । एेसा मत सोचो कि, "क्योंकि मेलबोर्न में हमारा एक मंदिर है, मेलबर्न के अर्चा विग्रह यहाँ हैं, तो यह वृन्दावन नहीं है ।" यह भी वृन्दावन ही है। अगर तुम धोरणो को बनाए रखते हो अर्चा-विग्रह की पूजा में, नियमों और विनियमों का पालन करते हुए, तो वही वृन्दावन है । विशेष रूप से यह वृन्दावन धाम, जहाँ श्री कृष्ण वास्तव में अवतरित हुए । तो यह वृन्दावन है, गोलोक वृन्दावन ।

इधर, जो इस संस्था को चलाएँगे, उन्हें प्रथम श्रेणी का गोस्वामी होना होगा । यह मेरा प्रस्ताव है । गृहमेधी नहीं । गृहमेधी नहीं । गोस्वामी । क्योंकि......यह स्थान गोस्वामियों द्वारा ढूंढा गया था । सनातन गोस्वामी यहाँ आए थे, रूप गोस्वामी यहाँ आए थे । और फिर अन्य गोस्वामी, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी, सभी एक साथ शामिल हो गए श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश को क्रियान्वित करने के लिए - श्री कृष्ण के बारे में साहित्य लिखने के लिए, उनकी लीलाएँ; बहुत, मेरे कहने का मतलब है, अत्यधिक आध्यात्मिक समझ की किताबें उन्होंने लिखीं । नाना शास्त्र विचारणैक निपुणौ सद्-धर्म संस्थापकौ । यह गोस्वामियों का काम है, लक्षण । पहला लक्षण है, कृष्णोत्कीर्तन गान-नर्तन परौ । वे सदैव व्यस्त रहते थे - कृष्ण-कीर्तन में ।

कृष्ण-कीर्तन का मतलब है....। जैसे हम कीर्तन करते हैं खोल, करताल के साथ, यह भी कृष्ण-कीर्तन है । और साहित्य लिखना, यह भी कृष्ण-कीर्तन है । और साहित्य पढ़ना, यह भी कृष्ण-कीर्तन है । ऐसा नहीं है कि केवल यह कीर्तन ही कीर्तन है । अगर तुम कृष्ण के बारे में साहित्य लिखते हो, अगर तुम कृष्ण के बारे में साहित्य पढ़ते हो, अगर तुम कृष्ण के बारे में बात करते हो, तुम कृष्ण के बारे में चिन्तन करते हो, तुम कृष्ण की पूजा करते हो, तुम कृष्ण के लिए भोजन बनाते हो, तुम कृष्ण के लिए भोजन ग्रहण करते हो - यह भी कृष्ण-कीर्तन है । इसलिए गोस्वामी का अर्थ है श्री कृष्ण-कीर्तन में लगे रहना चौबीस घंटे किसी न किसी तरह से । कृष्णोकीर्तन गान-नर्तन परौ । कैसे ? प्रेमामृताम्भो निधी । क्योंकि वे कृष्ण-प्रेम के सागर में विलय थे ।

जब तक हम में कृष्ण प्रेम न हो, कृष्ण के लिए प्रेम, कैसे हम श्री कृष्ण की सेवा में संतुष्ट रह सकते हैं ? यह संभव नहीं है । जिन्होंने कृष्ण के लिए प्रेम नहीं विकसित किया है, वे श्री कृष्ण की सेवा में चौबीस घंटे लगे नहीं रह सकते हैं । हमें यह विचार करना चाहिए ... हमें समय को बचाना है, श्री कृष्ण की सेवा में अवशोषित होने के लिए । जितनी हम निद्रा करते हैं, यह व्यर्थ है । यह व्यर्थ है । तो हमें समय बचाने की कोशिश करनी चाहिए । कीर्तनीय: सदा हरि: (चैतन्य चरितामृत अादि १७. ३१)। हरि कृष्ण का दूसरा नाम है । सदा, चौबीस घंटे । एेसा गोस्वामी करते थे । वे हमारे आदर्श हैं । वे दो घंटे या ज्यादा से ज्यादा तीन घंटे सोते थे ।

तो निद्राहार विहारकादि विजितौ । उन्होंने विजय प्राप्त की । यही गोस्वामी है । उन्होंने इन चीज़ों पर विजय प्राप्त की । वो क्या है ? निद्राहार, निद्रा, अाहार, विहार । विहार का अर्थ है इन्द्रिय तृप्ति, और अाहार का अर्थ है भोजन या एकत्र करना । आम तौर पर, भोजन, अाहार । और निद्रा । निद्राहार विहारकादि विजितौ । विजय प्राप्त की। यही वैष्णव है । यह नहीं कि चौबीस घंटे में, छत्तीस घंटे सोना । (हँसी) अौर उसी समय में, अपने को गोस्वामी कहलाना । यह क्या है गो ...? गो-दास । वे गो-दास हैं । गो मतलब इन्द्रियाँ और दास का अर्थ है सेवक ।

तो हमारी नीति होनी चाहिए, इंद्रियों का दास बनने की बजाय, हमें कृष्ण का दास बनना चाहिए । यह गोस्वामी है । लेकिन जब तक तुम विजय प्राप्त नहीं करते हो, इन्द्रियाँ माँग करेंगी । "कृपया भोजन करो, कृपया निद्रा करो, कृपया संभोग करो । कृपया यह लो, वह लो।" यही भौतिक जीवन है । यही भौतिक जीवन है, इंद्रियों के अधीन । यही भौतिक जीवन है । और हमें बनना है ... गोस्वामी का अर्थ है, मन हुक्म चला रहा है, "कृपा अधिक भोजन करो, कृपया अधिक निद्रा करो, कृपया अधिक यौन सम्बन्ध करो, कृपया अधिक रक्षा कोष रखो ... " तो यह भौतिकतावाद है । सुरक्षा कोष मतलब पैसा रखना । यह रक्षा कोष है । तो ... तो यह भौतिकतावाद है । अध्यात्मवाद का अर्थ है, "नहीं, वह नहीं ।" निद्राहार ।

इन्द्रियाँ हुक्म करती हैं, "यह करो, वह करो, यह करो" और तुम्हें मज़बूत बनना होगा, कि तुम ठीक से जवाब दो, "नहीं, यह नहीं।" तब गोस्वामी। यही गोस्वामी है । और वह गृहमेधि, गृहमेधि भी वही दिखता है । लेकिन गृहस्थ का अर्थ है इन्द्रियों की माँग नहीं । तो फिर तुम गोस्वामी बन जाते हो । फिर, जैसे नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं, गृहे वा बनेते थाके हा गौरंग बोले डाके । हा गौरंग, "हमेशा निताई-गौर का कीर्तन करते हुए, और निताई-गौर के बारे में चिन्तन करते हुए," ऐसे व्यक्ति, नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं ...गृहे वा.... "वह एक सन्यासी हो सकता है, या वह एक गृहस्थ हो सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । क्योंकि वह निताई-गौर के चिन्तन में मग्न रहता है । "

तो नरोत्तम मागे तान्र संग : "नरोत्तम हमेशा ऐसे व्यक्ति के साथ संग करने के लिए इच्छुक हैं ।" गृहे वा बनेते थाके, हा गौरंग बोले डाके, नरोत्तम मागे तान्र संग । नरोत्तम हमेशा ऐसे व्यक्ति के संग की इच्छा करते हैं । कृष्णोकीर्तन गान-नर्तन परौ प्रेमामृतांभो निधी धीरा-धीर जन प्रियौ, और गोस्वामी को पुरुषों के सभी वर्गों का बहुत प्रिय बनना होता है । पुरुषों के दो वर्ग हैं: धीर अौर अधीर । धीर का अर्थ है जिसकी इन्द्रियाँ नियंत्रित हैं और अधीर जो यह नहीं कर सकता । गोस्वामी पुरुषों के सभी वर्गों के लिए बहुत दयालु हैं । धीराधीर-जन-प्रियौ । तो तुम कैसे कर सकते हो ...? गोस्वामी कैसे कर सकता है ...? जब छह गोस्वामी वृन्दावन में थे, वे सभी लोगों में बहुत लोकप्रिय थे । यहाँ तक ​​कि इस वृन्दावन धाम में, गाँव के लोग, अगर पति और पत्नी में कुछ झगड़ा होता था, तो वे सनातन गोस्वामी के पास जाते, "श्रीमान, हम दोनों के बीच कुछ मतभेद हैं। आप सुलझा दें ।"

और सनातन गोस्वामी अपना फैसला सुनाते, "तुम गलत हो ।" बस। वे स्वीकार करते । ज़रा देखो वे कितने लोकप्रिय थे । सनातन गोस्वामी उनके परिवार के झगड़े के लिए भी निर्णय देते । तो धीराधीर जन प्रियौ । ये आम आदमी, वे साधु नहीं थे, लेकिन वे सनातन गोस्वामी के प्रति समर्पित थे । इसलिए उनका जीवन सफल था। क्योंकि वे सनातन गोस्वामी के आदेशों का पालन करते, इसलिए वे भी मुक्त हो गए । वे व्यक्तिगत रूप से गलत हो सकते हैं, लेकिन वे सनातन गोस्वामी का अनुसरण करते । और सनातन गोस्वामी उनके प्रति दयालु थे । यही गोस्वामी है । तुम भी उन्हें बुला सकते हो, प्रसादम् दे सकते हो, उनका सम्मान कर सकते हो: "केवल हरे कृष्ण का श्रवण करो । तुम यहाँ आअो । हरे कृष्ण महामंत्र का जप करो । प्रसादम् लो ।" वे तुम्हारे... तुम्हारे नियंत्रण में । वे तुम्हारे नियंत्रण में होंगे । और जैसे ही वे तुम्हारे नियंत्रण में अाते हैं, वे प्रगति करते हैं, तुरंत । क्योंकि वैष्णव के अाश्रय में, अगर वे अनुसरण के लिए सहमत होते हैं, तो वह बन जाता है ... यही अज्ञात सुकृति कही जाती है। क्योंकि वह तुम्हें प्रदान करता है ......जैसे जब हम चलते हैं, वे कहते हैं, "हरे कृष्ण। जय राधे ।" यही सम्मान देने की प्रकिया है । तो अगर ये आम लोग वैष्णव को सम्मान प्रदान करते हैं, तो वे प्रगति करते हैं । तो तुम्हें वैष्णव बनना होगा । अन्यथा वे क्यों तुम्हें सम्मान देंगे ? सम्मान माँगा नहीं जा सकता । यह कमाना पड़ता है । तुम्हारा अाचरण देख कर, वे तुम्हें सम्मान देंगे । फिर धीराधीर जन प्रियौ । यही गोस्वामी है ।

बहुत-बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।