HI/Prabhupada 0545 - असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना
प्रभुपाद: तो जब चैतन्य महाप्रभु कुछ पर-उपकार करना चाहते थे...
- भारत भूमिते मनुष्य-जन्म होइल यार
- मनुष्य जन्म सार्थक करी कर पर उपकार
- (चै च अादि ९।४१)
इन कल्याणकारी कार्यों का मतलब नहीं है शारीरिक कल्याण । यह आत्मा के लिए था, वही जो कृष्ण अर्जुन पर प्रभावित करना चाहते थे कि "तुम यह शरीर नहीं हो । तुम आत्मा हो ।" अंतवंत इमे देहा: नित्यस्योक्ता: शरीरिन: न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ गी २।२०) तो असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना । तो आत्मा का हित क्या है? आत्मा का हित है, आत्मा कृष्ण का अभिन्न अंग है, भगवान । जैसे आग की छोटी सी चिंगारी बड़े आग का अभिन्न अंग है इसी तरह, हम जीव, हम बहुत ही छोटे हैं छोटी सी चिंगारी पर ब्रह्मण की, पर ब्रह्मण या कृष्ण । तो जैसे चिंगारी आग के भीतर बहुत सुंदर लगती है, तो आग भी सुंदर लगती है, और चिंगारी भी सुंदर लगती है लेकिन जैसे ही चिंगारी आग से नीचे गिरती है, तो वह बुझा जाती है । तो हमारी हालत है, कि ... हमारी वर्तमान स्थिति यह है कि हम पूरी आग से नीचे गिर गए हैं, कृष्ण यह साधारण बंगाली भाषा में समझाया गया है: कृष्ण भुलिया जीव भोग वांछा करे पाशेते माया तारे जापटिया धरे । माया का मतलब है अंधकार, अज्ञानता । तो यह उदाहरण बहुत अच्छा है । आग की चिंगारी आग के साथ बहुत अच्छी तरह से नृत्य करती है, यह रोशनी भी देता है । लेकिन जैसे ही वह जमीन पर गिरती है, यह राख हो जाती है, काली राख, फिर उग्र गुणवत्ता नहीं रहती । इसी तरह, हम नृत्य के लिए हैं और खेलना और चलना और रहना कृष्ण के साथ । यही हमारी असली स्थिति है । यही वृन्दावन है । हर कोई ... हर कोई कृष्ण के साथ जुड़ा हुआ है । वहाँ पेड़, फूल, पानी, गाऍ, बछड़े, चरवाहे लड़के, या बुजुर्ग चरवाहे पुरुष, नंद महाराज, उनकी उम्र के अन्य व्यक्ति, फिर यशोदामयी माँ, फिर गोपियॉ - इस तरह से, वृन्दावन का जीवन, वृन्दावन की तस्वीर । कृष्ण आते हैं पूर्ण वृन्दावन तस्वीर के साथ और वह अपने वृन्दावन जीवन को दर्शाते हैं, चिन्तामनि-प्रकर-सद्मशू, सिर्फ हमें आकर्षित करने के लिए, कि "तुम इस भौतिक संसार में आनंद लेने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन यहाँ तुम आनंद नहीं उठा सकते हो, क्योंकि तुम अनन्त हो । तुम यहाँ अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर सकते । तो तुम मेरे पास आओ । तुम मेरे पास आओ । " त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय (भ गी ४।९) यह कृष्ण चेतना आंदोलन है । (एक तरफ :) उन्हे प्रसादम् के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहो । त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म नैति माम एति । यह निमंत्रण है । माम एतिi: "वह घर को वापस आ जाता है, वापस देवत्व को।" यही भगवद गीता की पूरी शिक्षा है । और अंत में वे कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ गी १८।६६) क्यों तुम अपने अाप को परेशान कर रहे हो, भौतिक जीवन को समायोजित करने के लिए कई योजनाओं का निर्माण करके ? यह संभव नहीं है । यहाँ यह संभव नहीं है । यहाँ तो जब तक तुम भौतिक संग में हो, तो तुम्हे शरीर को बदलना होगा । प्रकृते: क्रियमानानि (भ गी ३।२७) प्रकृति स्थो । यह श्लोक क्या है? पुरुष: प्रकृति स्थो अपि...
ह्रदयानन्द : भुन्जते प्रकृति-जान गुणाण ।
प्रभुपाद: हा ।भुन्जते प्रकृति-जान गुणाण ।