HI/Prabhupada 0545 - असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना



His Divine Grace Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Gosvami Prabhupada's Appearance Day, Lecture -- Mayapur, February 21, 1976

प्रभुपाद: तो जब चैतन्य महाप्रभु कुछ परोपकार करना चाहते थे...

भारत भूमिते मनुष्य-जन्म हइल यार
मनुष्य जन्म सार्थक करी कर पर-उपकार
(चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१)

इन कल्याणकारी कार्यों का मतलब शारीरिक कल्याण नहीं है । यह आत्मा के लिए था, वही चीज़ जो कृष्ण अर्जुन को सिखाना चाहते थे, कि, "तुम यह शरीर नहीं हो । तुम आत्मा हो ।" अंतवंत इमे देहा: नित्यस्योक्ता: शरीरिण: न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०) । तो असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना । तो आत्मा का हित क्या है? आत्मा का हित है, आत्मा कृष्ण, भगवान, का अभिन्न अंग है । जैसे आग की छोटी-सी चिंगारी बड़े आग का अभिन्न अंग है, इसी तरह, हम जीव, हम बहुत ही छोटे हैं, छोटी-सी चिंगारी परम ब्रह्म की, पर-ब्रह्म या कृष्ण की । तो जैसे चिंगारी आग के भीतर बहुत सुंदर लगती है, तो अग्नि भी सुंदर लगती है, और चिंगारी भी सुंदर लगती है, लेकिन जैसे ही चिंगारी आग से नीचे गिरती है, तो वह बुझ जाती है ।

तो हमारी हालत है कि... हमारी वर्तमान स्थिति यह है कि हम पूर्ण आग, कृष्ण, से नीचे गिर गए हैं | यह साधारण बंगाली भाषा में समझाया गया है: कृष्ण भुलिया जीव भोग वांछा करे पाशेते माया तारे जापटिया धरे माया का मतलब है अंधकार, अज्ञानता । तो यह उदाहरण बहुत अच्छा है । आग की चिंगारी आग के साथ बहुत अच्छी तरह से नृत्य करती है, यह रोशनी भी देती है । लेकिन जैसे ही वह ज़मीन पर गिरती है, यह राख हो जाती है, काली राख, फिर उग्र गुणवत्ता नहीं रहती । इसी तरह, हम नृत्य के लिए हैं, और खेलना और चलना और रहना कृष्ण के साथ । यही हमारी असली स्थिति है । यही वृन्दावन है ।

हर कोई... हर कोई कृष्ण के साथ जुड़ा हुआ है । वहाँ पेड़, फूल, पानी, गाऍ, बछड़े, चरवाहे लड़के, या बुज़ूर्ग चरवाहे पुरुष, नंद महाराज, उनकी उम्र के अन्य व्यक्ति, फिर यशोदामायी, माँ, फिर गोपियाँ - इस तरह से, वृन्दावन का जीवन, वृन्दावन की तस्वीर । कृष्ण आते हैं पूर्ण वृन्दावन दृश्य के साथ और वह अपने वृन्दावन जीवन को दर्शाते हैं, चिन्तामणि-प्रकर-सद्मसु, सिर्फ हमें आकर्षित करने के लिए, कि "तुम इस भौतिक संसार में आनंद लेने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन यहाँ तुम आनंद नहीं उठा सकते, क्योंकि तुम शाश्वत हो । तुम यहाँ शाश्वत जीवन प्राप्त नहीं कर सकते । तो तुम मेरे पास आओ । तुम मेरे पास आओ । "

त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय (भ.गी. ४.९) । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । (एक तरफ:) उन्हें प्रसादम के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहो । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति । यह निमंत्रण है । माम एति: "वह घर को वापस आ जाता है, वापस परम को।" यही भगवद गीता की पूरी शिक्षा है । और अंत में वे कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) । क्यों तुम अपने अाप को परेशान कर रहे हो, भौतिक जीवन को समायोजित करने के लिए कई योजनाओं का निर्माण करके ? यह संभव नहीं है । यहाँ यह संभव नहीं है । यहाँ जब तक तुम भौतिक संग में हो, तो तुम्हें शरीर को बदलना होगा । प्रकृते: क्रियमाणानि (भ.गी. ३.२७) | प्रकृति स्थो । यह श्लोक क्या है ? पुरुष: प्रकृति स्थो अपि...

हृदयानन्द: भुन्जते प्रकृति-जान गुणान ।

प्रभुपाद: हाँ । भुन्जते प्रकृति-जान गुणान ।