HI/Prabhupada 0547 - मैंने यह सोचा था कि "मैं सबसे पहले बहुत अमीर आदमी बनूँगा, फिर मैं प्रचार करूँगा

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Lecture -- New York, April 17, 1969

प्रभुपाद: सब कुछ ठीक है?

भक्त: जय ।

प्रभुपाद: हरे कृष्ण । (हॅसते हुए) अाराधितो यदि हरिस तपसा तत: किम (नारद पंचरात्र) गोविन्दम आदि-पुरुष, हरि के रूप में जाना जाते हैं । हरि का मतलब है "जो तुम्हारे सभी दुखों को हर लेता है ।" यही हरि है । हर । हर का मतलब है हर लेना । हरते । तो जैसे चोर भी ले लेता है, लेकिन वह कीमती चीजें ले लेता है, भौतिक विचार, कभी कभी कृष्ण भी भौतिक मूल्यवान वस्तुएँ ले लेता है सिर्फ तुम्हे विशेष कृपा दिखाने के लिए । यस्याहम् अनुगृहणामि हरिश्ये तद-धनम शनै: (श्री भ १०।८८।८) युधिष्ठिर महाराजा नें कृष्ण से पूछा कि "हम बहुत धर्मपरायण माने जाते हैं । मेरे भाई महान योद्धा हैं, मेरी पत्नी बिल्कुल भाग्य की देवी है, और इन सबसे ऊपर, आप हमारे व्यक्तिगत दोस्त हैं । तो कैसे हमने सब कुछ खो दिया है? (हँसते हुए) हमने अपने राज्य को खो दिया है, पत्नी को खो दिया है, सम्मान खो दिया है, - सब कुछ ।" तो इस के जवाब में, कृष्ण ने कहा: यस्याहम् अनुगृहणामि हरिश्ये तद-धनम शनै: "मेरी पहली कृपा यह है कि मैं अपने भक्त के सभी धन को हर लेता हूँ ।" इसलिए लोग बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं होते हैं कृष्ण भावनामृत में आने के लिए । लेकिन वे करते हैं । जैसे शुरुआत में पांडवों को कठिनाई में डाल दिया गया लेकिन बाद में वे सबसे महान व्यक्तित्व बन गए पूरे इतिहास में । यह कृष्ण की कृपा है । शुरुआत में वे एसा कर सकते हैं क्योंकि हम अासक्त हैं हमारे भौतिक अजि॔त पदार्थों के लिए । तो यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है । जब शुरुआत में मेरे गुरु महाराज नें मुझे आदेश दिया, मैंने यह सोचा था कि "मैं सबसे पहले बहुत अमीर आदमी बनूँगा, फिर मैं प्रचार करूँगा । (हंसते हुए) तो मैं व्यापार में बहुत अच्छा कर रहा था । व्यापार क्षेत्र में, मेरा बहुत अच्छा नाम हुअा, और जिससे भी मैं व्यापार कर रहा था, वे बहुत संतुष्ट थे । लेकिन कृष्ण नें एसी चाल चली कि उन्होंने सब कुछ तोड़ दिया, और उन्होंने मुझे बाध्य किया कि मै सन्नयास लूँ । तो यह हरि हैं । तो मुझे केवल सात डॉलर के साथ तुम्हारे देश में आना पड़ा । इसलिए वे आलोचना कर रहे हैं "स्वामी बिना पैसे के यहां आए थे । अब वे इतने भव्य हैं । " (हँसते हुए) इसलिए वे काला पक्ष ले रहे हैं, तुम देखते हो ? लेकिन बात यह है ......निश्चित रूप से, मुझे फायदा हुअा है, लाभदायक, या मैंनें लाभ प्राप्त किया है । मैं अपने घर छोड़ा, अपने बच्चों को और सब कुछ । मैं एक भिखारी के रूप में यहां आए था, सात डॉलर के साथ । यह कोई पैसा नहीं है । लेकिन अब मेरे पास बडी बडी संपत्ति है, सैकड़ों बच्चे । (हंसी) और मुझे उनके रख रखाव के लिए सोचना नहीं पडता है । वे मेरे बारे में सोच रहे हैं । तो यह कृष्ण की कृपा है । शुरुआत में, यह बहुत ही कड़वा लगता है । जब मैंने सन्यास लिया, जब मैं अकेला रह रहा था, मैं बहुत कड़वा महसूस कर रहा था । मैं, कभी कभी मैं सोचता था, "मैंने स्वीकार करके कुछ गलत तो नहीं किया है न ?" तो मैं जब दिल्ली से "बैक टू गोडहेड" का प्रकाशन कर रहा था, एक दिन एक बैल नें मुझे मारा, और मैं पगडंडी पर नीचे गिर गया और मैंझे गंभीर चोट अाई । मैं अकेला था । तो मैं सोच रहा था, "यह क्या है?" तो मैंने बहुत, बहुत क्लेश के दिन देखे हैं, लेकिन यह सब अच्छे के लिए था । तो कष्टों से डरना नहीं है । तुम देखते हो ? आगे बढ़ो । कृष्ण तुम्हे संरक्षण देंगे । यह भगवद गीता में श्री कृष्ण का वादा है । कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति (भ गी ९।३१) "कौन्तेय, मेरे प्यारे कुंती के पुत्र, अर्जुन, तुम दुनिया भर में घोषणा कर सकते हो कि मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता । तुम यह घोषणा कर सकते हो । " और क्यों वे अर्जुन को घोषित करने के लिए कह रहे हैं ? क्यों वे खुद घोषित नहीं करते हैं ? वजह है । क्योंकि अगर वे वादा करते हैं, एसे मौके हुए हैं जब उन्होंने कभी कभी अपना वादा तोड़ दिया है । लेकिन अगर एक भक्त वादा करता है, यह कभी नहीं टूटेगा । कृष्ण संरक्षण देंगे, इसलिए वे अपने भक्त से कहते हैं, कि "तुम घोषणा करो ।" टूटने की कोई संभावना नहीं है । कृष्ण इतने दयालु कि कभी कभी वे अपने वादे को तोड़ते हैं, लेकिन अगर उनका भक्त वादा करता है वे बहुत ध्यान देते हैं कि उनके भक्त का वादा न टूटे । यह श्री कृष्ण की कृपा है